मन में उल्लास होगा तभी भाव आएगा….श्री हर्षित मुनि जी

प्रदीप चोपड़ा द्वारा

चित्त में एकाग्रता हो.. भाव धरा जगे.. धार्मिक क्रिया में सुधार की जरूरत.. सारी ताकत आत्मा में हैं मन में नहीं
भूत की चिंता, भविष्य की कल्पना में व्यक्ति का वर्तमान बिगड़ रहा है

बालोद (छत्तीसगढ़) 28 मार्च। समता भवन बालोद में शासन दीपक परम पूज्य श्री हर्षित मुनि जी मसा ने फरमाया कि चलते जाएये मंजिल नीचे आती जाएगी, भावना की चरम सीमा उल्लास भाव में होता है, धार्मिक आध्यात्मिक क्षेत्र में उल्लास गुन होता है…
मुनि श्री ने आगे फरमाया कि भय भीतर की संज्ञा है परिवार, संसार , भविष्य के लिए यह सोचकर ही दिन भर में भय का वातावरण बना रहता है ..व्यक्ति के भीतर कई भय बने रहते हैं व्यक्ति को पाप से भय रहना चाहिए
व्यक्ति आज के दौर में पाप से नहीं डरता, जिसको छोड़ना चाहते हैं उसके प्रति भय बनाएं तभी उससे छुटकारा मिल पाएगा
पाप भीरूता बने. व्यक्ति में एकाग्रता के गुण है , सत्य बोलते हुए जीभ लड़खडाती है , लेकिन झूठ बोलते हुए नहीं
झूठ बोलते समय मानव सीमा लांघ देते हैं ,कर्म का भय व्यक्ति को नहीं रहता ..धार्मिक क्रिया करने के बाद भी हम बदले नहीं है …व्यक्ति पाप करते समय बिल्कुल नहीं डरते यह सोचनीय विषय हैं ?? व्यक्ति को मृत्यु का भय , अपमान का भय लगा रहता है ? जीवन एक पाठशाला है , पाप से भय उत्पन्न हो ऐसा करें..
श्री हर्षित मुनि जी ने आगे कहा कि हमें मिलने वाली हर चीज, वस्तु , भावना हमारे द्वारा निकट भूत में इच्छा प्रकट की थी तभी वह आज सामने आ रही है.. प्रकृति का नियम है कि बुलाने पर ही आता है.. जीवन में प्रत्येक दिन बिन बुलाए मेहमान आते हैं वह हैं हमारे मन के भीतर के विचार …

जैन धर्म के कर्म सिद्धांत को अक्षरश: को स्वीकार कर ले, थोड़ा सा अध्ययन कर लें
जो स्वीकार करता है वह व्यक्ति सुखी रहता है.. व्यक्ति के मन में शीतलता नहीं है ..जीवन में गुणों का विकास होना चाहिए अपना निरीक्षण स्वयं करें दूसरे को परखे नहीं…… मुझे अपने आप को सुधारना है ..सुधारकर नकारात्मकता से दूर रहें, अकृतज्ञता को पहचाने
जो व्यक्ति जितना दुखी रहेगा उतना ही कर्म बंध बनेगा ..प्रसन्न व्यक्ति के मन में चित्त समाधान होता है विचारों से कर्म बंध को देखते रहे ..आदत बदलना बहुत ही कठिन कार्य है ? स्वभाव नहीं बिगड़ना चाहिए.. अवगुण दृष्टि को देखने से बचें याद रहे कि जीवन में हमेशा दो पहलू होते हैं… आज व्यक्ति की भूत की चिंता , भविष्य की कल्पना में वर्तमान बिगड़ रहा है….
सारी ताकत आत्मा में है मन में नहीं मुनि श्री ने फरमाया कि जैन धर्म में ताकत है ,शक्ती है मिच्छामि दुक्कड़म करने से …व्यक्ति को वृत्ति बदलना चाहिए.. जैन धर्म का सिद्धांत है ..ना कि बदला लेना
व्यक्ति को स्वयं की गलती, गलती नहीं दिखाई देती है .. सभ्य व्यक्ति की पहचान है गलती पहचानना सीखे ..
दिन भर में हुए प्रत्येक पाप को सामने लेकर प्रत्येक पाप के लिए मिच्छामी दु्कडम् याने कि क्षमा मांगना… अपमान होता है तब व्यक्ति अपमान समझता है लेकिन व्यक्ति यह समझे कि किसी में ताकत नहीं है कि अपमान करें …व्यक्ति खुद अपमानित महसूस करता है.. परिवर्तन की गुंजाइश मन में हैं…

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