कही-सुनी @ रवि भोई
मरवाही के रिजल्ट से जुड़ा अमित का भाग्य
मरवाही विधानसभा उपचुनाव में कौन जीतता और कौन हारता है, यह तो 10 नवंबर को पता चलेगा, पर एक बात साफ़ है कि इस उपचुनाव के नतीजे से छत्तीसगढ़ की राजनीतिक दिशा तय होगी। मरवाही में कांग्रेस जीतती है तो जोगी परिवार का गढ़ ध्वस्त हो जाएगा और परिवार के राजनीतिक भविष्य और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ( छजका) में अँधेरा छा जाएगा। अगर भाजपा की जीत हो जाती है तो जोगी परिवार की दीवाली चार दिन पहले आ जाएगी, वहीँ अमित जोगी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर चुन-चुनकर तीर तो छोड़ेंगे ही, साथ में भाजपा और बघेल के विरोधियों को नया अस्त्र मिल जाएगा। मरवाही का चुनाव भाजपा से कहीं ज्यादा अमित जोगी और उनकी माँ डॉ. रेणु जोगी के लिए जीवन- मरण का प्रश्न है। अमित और रेणु दोनों ने यहाँ खुलकर कांग्रेस की मुखालफत की है। दोनों ने कांग्रेस को हराने के लिए भाजपा से ज्यादा पसीना बहाया है। चुनाव मैदान में प्रत्याशियों के चेहरे और मुद्दे की जगह भूपेश बघेल बनाम जोगी परिवार की लड़ाई दिख रही थी। वहीँ कांग्रेस की जीत से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राजनीतिक कद को पार्टी के भीतर और राहुल गाँधी के सामने नए पंख लग जाएंगे। इस कारण भूपेश बघेल ने चुनाव मैदान में पूरी ताकत झोंक दी और खुद मरवाही की जनता को साधते रहे। मरवाही में भाजपा ने प्रत्याशी उतारे और प्रचार भी किया, लेकिन जोगी परिवार का साथ मिलने से उनका गुब्बारा फुल गया। यहाँ भाजपा के लिए खोने के लिए तो कुछ नहीं था। जीत से जोश जरूर बढ़ेगा। सब कुछ नतीजे पर निर्भर करेगा। मरवाही के रिजल्ट का बेसब्री से इंतजार सबको है। हर कोई जानना चाहता है मरवाही में कौन जीतेगा ?
संसदीय सचिव के बुरे दिन
कहते हैं बुरे दिन आता है , तो हर दांव उल्टा पड़ जाता है, ऐसा कुछ राज्य के एक संसदीय सचिव के साथ हो गया। मैदानी इलाके का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संसदीय सचिव चुनाव प्रचार के लिए बिहार गए, लेकिन उन्हें उलटे पांव लौटना पड़ा। इस संसदीय सचिव को न तो वहां के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने रिस्पांस दिया और न ही जनता ने सुना। कहा जाता है यह संसदीय सचिव महोदय अपने को मंत्री से कम नहीं समझते हुए अपने से अटैच विभाग के अधिकारियों को तलब कर स्टाफ और सुविधाओं की मांग करने लगे, तो वहां भी झटका खा गए। एक विभागाध्यक्ष ने स्टाफ और सुविधाएँ देने से मनाकर दिया। नाराज संसदीय सचिव ने मुख्यमंत्री से अफसर की शिकायत कर उन्हें हटाने का आग्रह किया। मुख्यमंत्री ने संसदीय सचिव की शिकायत के बाद अफसर को एचओडी के पद से तो नहीं हटाया, उल्टे उन्हें एक चार्ज और दे दिया। कहते हैं अफसर एक कांग्रेस सांसद का रिश्तेदार है।
कांग्रेस नेता का भाजपा प्रेम
कहते हैं कि कांग्रेस के एक बड़े नेता आजकल भाजपा से जुड़े लोगों से प्रेम के चलते राज्य के मंत्रियों के निशाने पर आ गए हैं। चर्चा है कि पिछले दिनों एक कार्यक्रम के दौरान कुछ मंत्री बड़े नेता जी पर बरस पड़े। मामला फर्नीचर खरीदी से जुड़ा है। कहा जाता है सरगुजा और दुर्ग को छोड़कर बाकी जिलों में फर्नीचर सप्लाई का ठेका पुराने लोगों को ही मिल गया, जिन्हें भाजपा से जुड़े कहा जा रहा है। कहते हैं कार्यक्रम में फर्नीचर सप्लाई से जुड़े विभाग के मंत्री का आमना-सामना दूसरे मंत्रियों से हो गया। मंत्रियों ने पुराने लोगों को ही ठेका देने पर आपत्ति की। इस पर फर्नीचर सप्लाई से जुड़े विभाग के मंत्री ने पल्ला झाड़ते हुए नेताजी के निर्देश पर ही ठेके देने की बात कह दी। कार्यक्रम में नेताजी भी मौजूद थे। भड़के मंत्रियों ने सप्लाई से जुड़े विभाग के मंत्री को लेकर नेताजी के पास पहुँच गए। फेस-टू-फेस चर्चा के बाद सारी चीजों का खुलासा हुआ। फिर तय हुआ कि पुराने लोगों का कुछ काम कम कर कांग्रेस से जुड़े और नए लोगों को दिया जायेगा।
मुसीबत में फंसे एक आईएएस
चर्चा है कि अपने को ईमानदार बताने वाले एक आईएएस गड़बड़ी के आरोप में उलझ गए हैं। वर्तमान में साहब एक सार्वजनिक उपक्रम के प्रबंध संचालक हैं। कहते हैं आईएएस के खिलाफ गड़बड़ियों की कई शिकायतें सरकार को मिली है, जिसकी जांच के लिए अफसरों की एक समिति बना दी गई है। बताया जाता है कि साहब ने अपनी संस्था के उत्पादों के प्रमोशन के लिए अपने विभागीय मंत्री और प्रमुख सचिव की मंजूरी के बिना ही एक वाहन चलवा दिया। वाहन को उपक्रम के अध्यक्ष ने हरी झंडी दिखाई थी। इससे बवाल मच गया है। प्रमुख सचिव और मंत्री नाराज बताये जाते हैं। स्वयंसेवी संस्थाओं पर कुछ ज्यादा ही भरोसा करने वाले इन साहब के बारे में सरकार अब क्या राय बनाती है देखते हैं ?
धंधा होटल का, काम खेती का
खेती-किसानी भले घाटे का सौदा हो, लेकिन खेती के लिए इस्तेमाल होने वाले सामान और खाद-बीज की सप्लाई बड़ा चोखा काम है। इस कारण कृषि उपकरण व खाद-बीज सप्लायर मालामाल हो जाते हैं। फायदे का काम देखकर कई लोगों का आकर्षित होना स्वाभाविक है। कहते हैं इस काम में मुनाफा ही मुनाफा देख-सुनकर एक होटल व्यवसायी खाद-बीज की सप्लाई में कूद पड़ा है। चर्चा है कि वह इतना तेज निकला कि पहली ही बार में पुराने खिलाडियों को धूल चटा दिया। कहते हैं नई सरकार में नए आगाज के लिए हॉस्पिटिलिटी उद्योग के व्यक्ति को खेती के सामानों की सप्लाई का काम दे दिया गया।
मंडल को एक्सटेंशन की चर्चा
चर्चा है मुख्य सचिव आरपी मंडल को कम से कम तीन महीने की सेवावृद्धि मिल जाएगी। मंडल इस महीने 60 साल के हो जाएंगे। इस नाते नवंबर के आखिर में उनका रिटायरमेंट है। छत्तीसगढ़ सरकार ने आरपी मंडल को छह महीने की सेवावृद्धि के लिए भारत सरकार को प्रस्ताव काफी पहले भेज दिया है। पहले लग रहा था कि मंडल को सेवावृद्धि नहीं मिलेगी, लेकिन फिर उन्हें सेवावृद्धि मिलने की बात होने लगी है। कहते हैं मंडल का कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों के नेताओं से मधुर संबंध है और शहरों को चकाचक बनाने में मंडल की कोई सानी नहीं है। बताते हैं मंडल को सेवावृद्धि दिलाने में सरकार और कांग्रेस नेताओं के साथ-साथ भाजपा के नेता भी लगे हैं। कोरोनाकाल को आधार मानकर कई राज्यों के मुख्य सचिव को भारत सरकार ने एक्सटेंशन दिया है। वैसे खबर है कि मुख्य सचिव के एक दावेदार दिल्ली में लॉबिंग कर आये हैं। अब देखते हैं छत्तीसगढ़ में क्या होता है ? इसके लिए 28 नवंबर तक इंतजार करना होगा ।
जीएडी से ड्राइवरों की भर्ती पर सवाल
छत्तीसगढ़ में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की भर्ती के लिए व्यावसायिक परीक्षा मंडल है, लेकिन ड्राइवरों की भर्ती के लिए सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा भर्ती परीक्षा का आयोजन किया जाना लोगों को चकित कर रहा है। राज्य के लिए नियम -कानून के परिपालन के जिम्मेदार और शीर्ष प्रशासन के संचालन के दायित्व का निर्वाह करने वाला यह विभाग ड्राइवरों की भर्ती के चक्कर क्यों और कैसे फंस गया। कहते हैं कुछ साल पहले जजों की भर्ती की जिम्मेदारी हाईकोर्ट ने ले ली थी , लेकिन एक ही बार के बाद यह बोझ पीएससी को लौटा दिया। ड्राइवरों की भर्ती के लिए सोमवार को परीक्षा होनी है। अब नजर है, जीएडी किस तरह और कैसे विवादों से दूर रहकर एक दर्जन से भी कम ड्राइवरों की नियुक्ति करता है।
समय के फेर में आईएफएस
छत्तीसगढ़ के एक आईएफएस अधिकारी विभाग से बाहर चले गए हैं और फिलहाल उनकी वापसी की कोई संभावना भी नजर नहीं आ रही है, लेकिन विभाग के बड़े पद पर उन्होंने नजर हटाना बंद नहीं किया है। पिछले दिनों वन विभाग के एक अधिकारी को बड़ा तमगा मिला , उस पर भी उन्होंने गैरवाजिब आपत्ति की। पिछली सरकार में मलाईदार पदों पर और चहेते रहे आईएफएस अफसर भारत सरकार में ऊँची कुर्सी के लिए जुगाड़ की कोशिश कर चुके हैं , लेकिन किस्मत साथ नहीं दे रहा है। कहते हैं न समय बड़ा बलवान होता। शायद अफसर का समय अच्छा चल नहीं रहा है , पर उनका मन वन विभाग को छोड़ नहीं पा रहा है। वैसे आईएफएस अधिकारी अगले साल रिटायर हो जायेंगे। लगता है तब तक उम्मीद की किरण को छोड़ना नहीं चाहते हैं।
(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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