कही-सुनी @ रवि भोई
कही-सुनी ( 29 sept 2024 ) रवि भोई
नड्डा की चार घंटे की यात्रा के मायने क्या ?
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगतप्रकाश नड्डा 26 सितंबर को चार घंटे की यात्रा पर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर आए। जेपी नड्डा की यात्रा से लोगों के मन में कई सवाल और जिज्ञासा उठने लगे हैं। पहला सवाल तो क्या मंत्रियों को कोई संदेश दे गए और क्या जल्दी ही मंत्रियों के विभागों में हेरफेर या मंत्रिमडल के चेहरे में बदलाव होगा ? दूसरा क्या रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव के लिए प्रत्याशी के बारे में कुछ विचार-विमर्श करने आए थे ? जेपी नड्डा ने चार घंटे की यात्रा में कई काम निपटाए। करीब 85 साल के आरएसएस प्रचारक और पूर्व राज्यसभा सांसद श्रीगोपाल व्यास को भाजपा की सदस्यता दिलाई। नालंदा परिसर जाकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं से मिले। भाजपा की सदस्यता अभियान की समीक्षा की और नया टारगेट दिया। कुछ सांसद-विधायकों से भी चर्चा की, पर सबसे महत्वपूर्ण और गूढ़ रहस्य वाली बात उनकी दो बैठकों को बताया जा रहा है। कहते हैं बंद कमरे में पहली बैठक उन्होंने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, प्रदेश अध्यक्ष किरण देव, विधानसभा अध्यक्ष डॉ रमन सिंह, छत्तीसगढ़ प्रभारी नितिन नबीन और प्रदेश संगठन महामंत्री पवन साय के साथ की। चर्चा है की बंद कमरे में सरकार के कामकाज और छवि पर बात हुई। बताते हैं कुछ मंत्रियों के परफॉर्मेंस की समीक्षा भी की गई और उनको या विभाग बदलने पर भी मंथन हुआ। इसके बाद जेपी नड्डा ने विष्णुदेव साय और डॉ रमन सिंह के साथ बैठक की। खबर है कि यह बैठक सरकार के कामकाज पर फोकस रहा। चर्चा है कि नड्डा ने मुख्यमंत्री को सरकार के संचालन में डॉ रमन सिंह की सलाह लेने का सुझाव दिया। अब देखते हैं नड्डा जी की नसीहत का क्या परिणाम आता है ?
रिटायर्ड अफसर भाजपा के द्वार
छत्तीसगढ़ में कलेक्टर-कमिश्नर और अन्य बड़े पदों पर रहकर सत्ता का आनंद लेने वाले अफसरों का भगवा प्रेम आजकल चर्चा का विषय है। कुछ अफसर पहले से ही भाजपा के सदस्य हैं, तो कुछ अब भाजपा के सदस्य बनने लगे हैं। हाल ही में रिटायर्ड आईएएस अशोक अग्रवाल भाजपा के सदस्य बने हैं। रिटायर्ड आईएएस गणेशशंकर मिश्रा और आरपीएस त्यागी पहले से ही भाजपा में हैं। त्यागी जी कांग्रेस से भाजपा में पहुंचे हैं। कुछ महीने पहले भूपेश बघेल की सरकार में छत्तीसगढ़ वन विभाग के मुखिया रहे राकेश चतुर्वेदी भी भाजपाई बने। सीसीएफ रहे एसएसडी बड़गैया रिटायरमेंट के बाद भाजपा की सदस्यता लेकर विधानसभा टिकट की मांग की थी। कहते हैं भाजपाई बनने वाले कुछ रिटायर्ड अफसर निगम-मंडल में पद की जुगाड़ में भी हैं। अब देखते हैं जमीन से जुड़े भाजपाइयों पर ये कितने भारी पड़ते हैं। वैसे भी भाजपा व्यूरोक्रेट्स पर मेहरबान होती है। कुछ रिटायर्ड व्यूरोक्रेट्स केंद्र में मंत्री हैं, तो छत्तीसगढ़ में आईएएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आने वाले ओपी चौधरी वित्त मंत्री और नीलकंठ टेकाम विधायक हैं।
क्या छत्तीसगढ़ भाजपा में मार्गदर्शक मंडल बनाने की तैयारी में ?
कहते हैं पिछले दिनों रायपुर में भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश और आरएसएस के राष्ट्रीय पदाधिकारी दीपक विस्पुते ने बैठक ली तो पांच मंत्रियों के साथ पार्टी के सेकेंड लाइन के नेताओं को बुलाया गया। संघ की बैठक में बड़े और कद्दावर माने जाने वाले नेताओं को नहीं बुलाया गया। इस कारण चर्चा शुरू हो गई है कि क्या छत्तीसगढ़ भाजपा में मार्गदर्शक मंडल बनाने की तैयारी शुरू हो गई है। वैसे भी विष्णुदेव साय की सरकार में अधिकांश मंत्री पहली बार के विधायक हैं। रामविचार नेताम और केदार कश्यप को छोड़कर कोई पुराने मंत्री साय कैबिनेट का हिस्सा नहीं हैं। राज्य में मंत्री के दो पद खाली हैं। उसके भरने की चर्चा हो रही है, पर अब तक नहीं भरा गया है। अब मंत्री के रिक्त पदों को पुराने विधायकों से भरा जाता है या नए से, यह भी बड़ा संदेश होगा।
कौन होगा राजस्व मंडल का अध्यक्ष
राजस्व मंडल की वर्तमान अध्यक्ष रीता शांडिल्य 30 सितंबर को रिटायर हो जाएंगी। ऐसे में अब चर्चा शुरू हो गई है कि राजस्व मंडल का अगला अध्यक्ष कौन होगा ? राजस्व मंडल के अध्यक्ष का पद मुख्य सचिव के स्तर का है, लेकिन भूपेश सरकार के कार्यकाल से इस पद पर सचिव स्तर के अधिकारी को पदस्थ करने की परंपरा चल पड़ी है। मुख्य सचिव अमिताभ जैन के अलावा सुब्रत साहू और रेणु पिल्लै मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी हैं। सुब्रत साहू प्रशासन अकादमी में महानिदेशक और रेणु पिल्लै माध्यमिक शिक्षा मंडल व व्यवसायिक परीक्षा मंडल की अध्यक्ष हैं। अब देखते हैं सरकार मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी को राजस्व मंडल का अध्यक्ष बनाती है या फिर सचिव स्तर के अफसर को। वैसे राजस्व मंडल के अध्यक्ष के लिए सुब्रत साहू के नाम की कयास है।
संविदा वालों के भरोसे जल संसाधन विभाग
कहते हैं प्रदेश का जल संसाधन विभाग संविदा अफसरों के भरोसे चल रहा है। विभाग में ऊपर से नीचे तक संविदा वाले भरे हैं। दागी और संविदा अफसरों को विभाग में वित्तीय अधिकार भी दिया गया है। कहा जा रहा है कि विभाग में नियमित नियुक्ति नहीं होने से ऐसे हालात बने हैं। बताते है कि संविदा में नियुक्त अधिकरियों को वित्तीय अधिकार नहीं दिए जाते, पर जल संसाधन विभाग में नियम को दरकिनार कर दिया गया है। खबर है कि जल संसाधन विभाग के सभी बड़े निर्णय इन दिनों संविदा में नियुक्त अधिकारी ही ले रहे हैं। अब देखते हैं विभाग में ऐसा कितने दिन चलता है और राज्य में सिंचाई सुविधाएं कैसे बढ़ पाती हैं।
भूपेश के फैसले का क्रियान्वयन साय के राज में
कहते हैं स्वैच्छिक सेवानिवृति मामले में भूपेश सरकार के फैसले का क्रियान्वयन विष्णुदेव साय की सरकार में करने का आदेश जारी हुआ है। भूपेश सरकार ने चुनाव के कुछ महीने पहले 14 अगस्त 2023 को स्वैच्छिक सेवानिवृति के लिए सेवा अवधि न्यूनतम 20 वर्ष से घटाकर 17 वर्ष और छह माह की सूचना की जगह छह माह के वेतन जमा करवाने का प्रावधान किया था। इस आशय की अधिसूचना राजपत्र में तब प्रकाशित भी हो गई थी। अब वित्त विभाग ने 12 सितंबर 2024 को पत्र जारी कर सभी विभागों को फैसले के परिपालन के लिए निर्देशित किया है। सरकारी नौकरी 17 साल तक कर लेने वाले भी अब वीआरएस ले सकते हैं। कहा जा रहा है कि इस फैसले का लाभ इस्तीफा देकर चुनाव लड़ने वाले सरकारी अधिकारी- कर्मचारियों को होगा।
केबल कारोबारी को भाजपा नेता का साथ
कहते हैं कई मामले में उलझे रायपुर के एक केबल कारोबारी को भाजपा के एक वरिष्ठ नेता संरक्षण देने में लगे हैं। बताते हैं पुलिस जब भी केबल कारोबारी को दबोचने की कोशिश करती है, भाजपा नेता उसका ढाल बन जाते हैं। खबर है जमीन से लेकर शराब घोटाले में केबल कारोबारी का नाम है। जमीन पर बेजा कब्जे को लेकर केबल कारोबारी के खिलाफ जनता सड़क पर उतर चुकी है। केबल कारोबारी पिछली सरकारों में खेल संघों में कब्जा जमाए हुए थे। इस बार फिर कब्जा जमाना चाहते हैं, पर उनकी दाल नहीं गल नहीं पा रही है।
भाजपा सरकार को हिलाने में लगे बैज
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज धरना-प्रदर्शन के बाद अब न्याय यात्रा के जरिये प्रदेश की विष्णुदेव साय सरकार को हिलाने में लग गए हैं। कांग्रेस को भाजपा सरकार को हिलाने के लिए मुद्दा भी मिल गया है। बलौदाबाजार कांड से लेकर कवर्धा कांड का अस्त्र कांग्रेस को भाजपा सरकार के विरुद्ध हाथ लग गया है। सरकार के खिलाफ दीपक बैज को आक्रामक रुख अपनाना मज़बूरी भी है। कहा जा रहा है दीपक बैज सरकार के खिलाफ आक्रामक होकर ही पद पर बने रह सकते हैं। दीपक बैज के नेतृत्व में कांग्रेस विधानसभा और लोकसभा में कोई अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई। विधानसभा चुनाव में सत्ता हाथ से चली गई और लोकसभा में एक सीट से आगे गाड़ी नहीं बढ़ पाई।
(लेखक पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)