डेक्कन – डायरी @ डॉ. सुधीर सक्सेना
तमिलनाडु में तल्ख-तरानों का दौर
देश का धुर दक्षिणी – प्रदेश तमिलनाडु अशांत है और गौर करें तो उथलपुथल का केन्द्र भी। सियासी परखनली में क्रियाएं – प्रतिक्रियाएं लगातार जारी है और इन मुसलसल वाकयों का अवक्षेपण शीघ्र देखने को मिलेगा। फिलवक्त तमिलनाडु तल्ख सियासी तरानों के दिलचस्प दौर से गुजर रहा है। इसका मकसद है मतदाताओं को लुभाना और नये समीकरणों की रचना। बिला शक यह घटनाक्रम आसन्न लोकसभा और अगले साल विधान सभा चुनावों को गहरे प्रभावित करेगा।
राजनीति की तुलना अगर नाट्य- शाला से करें तो मंच पर घट रही घटनाओं से अधिक प्रभावी और परिणाम मूलक घटनाएं नेपथ्य में घट रही हैं। तमिल फिल्मों
के लोकप्रिय, अग्रणी सितारे विजय का नई पार्टी का गठन इसी का ताजातरीन उदाहरण है।
तमिल – फिल्मों के लोकप्रियतम अभिनेता दलपति विजय के दो फरवरी को पार्टी के गठन के ऐलान के साथ ही तमिलनाडु में अटकलों का नया दौर शुरू हो गया है। तमिलनाडु में राजनीति में फिल्मी हस्तियों के दखल की लंबी और समृद्ध परंपरा रही है। 43 वर्षीय विजय ने इस चमकीली श्रृंखला में नयी कड़ी जोड़ी है। भारतीय सिनेमा उद्योग के सुपर स्टार रजनीकांत ने विजय को बधाई दी है
और शुभकामनाएं भी। विजय द्वारा तमिल वेत्रि कषगम की स्थापना के साथ ही तमिलनाडु की राजनीति में एक नयी देहरी उभर आई है और राजनीति की दरो-दीवार
पर नये सब्जों के उगने का दिलचस्प दौर शुरू हो गया है। कौन है दलपति विजय? और क्या है उनकी रणनीति ? उत्तर बहुत सीधा है। दलपति तमिल- फिल्मों के समकाल में सबसे चहेते और सबसे महंगे सितारे हैं। पूरा
नाम जोसेफ विजय चंद्रशेखर, लेकिन ख्याति विजय नाम से। कई कंपनियों में प्रवक्ता और पार्श्व गायक भी। तमिल जन उनकी फिल्मों के दीवाने हैं। इन दिनों वह वेंकट प्रभु की अनटाइटल्ड फिल्म जिसे ‘द ग्रेटेस्टआफ आल टाइम’
में व्यस्त हैं। माना जा रहा है कि यह दलपति की आखिरी फिल्म होगी। जुलाई में इस फिल्म की रिलीज के साथ ही दलपति फिल्मों से संन्यास की घोषणा कर पूर्णकालिक राजनीति में उतर सकते हैं। ‘लियो’ जैसी धमाकेदार फिल्म दे चुके विजय को यकीन है कि युवाओं में उनका जबर्दस्त क्रेज राजनीति में सफलता के लिए बेहतरीन ‘जंपिंग बोर्ड’ साबित होगा। अलबता जाने माने
अभिनेता अरविन्द स्वामी ने यह कह कर तालाब के पानी में कंकड़ उछाल दिया है कि वह रजनीकांत, कमल हासन और विजय के प्रशंसक हैं, किंतु उन्हें वोट
नहीं देंगे। क्योंकि नेक नीयत होने के बावजूद सिने – सितारों की शासन करने और योजनाओं को साकार करने की क्षमता संदेहास्पद रहती है।
कहना कठिन है कि विजय का सियासी – तराना तमिल जनों को कितना रास आयेगा, किंतु उन्होंने अपना रोड मैप तैयार कर लिया है। उन्होंने ऐलान कर दिया है
कि उनकी पार्टी लोक सभा का चुनाव नहीं लड़ेगी, लेकिन अगले वर्ष सन् 25 में विधानसभा – चुनावों में पूरे दमखम से उतरेगी। उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने
की मंशा जतायी है। निस्वार्थ, पारदर्शी, ईमानदार और जाति-धर्म से परे की राजनीति की हिमायत करते हुए दलपति ने कहा है कि तमिलनाडु की समानता की
गौरवशाली परंपरा के अनुरूप वह संविधान के दायरे में प्रगति के पक्षधर हैं। उन्होंने यह भी कहा कि तमिलनाडु कुशासन और भ्रष्टाचार से त्रस्त है। घृणा और विभाजन की राजनीति हावी है। मेलमिलाप की संभावनाओं को उन्होंने यह कह कर खारिज करने की कोशिश की है कि उनकी नवोदित पार्टी किसी का समर्थन नहीं करेगी।
समीकरण कैसे भी बनें – बिगड़े, लेकिन यह तय है कि दलपति अपने फैसले से स्तालिन के नेतृत्व में सत्तारुढ़ द्रमुक के लिये नयी चुनौती बनकर उभरे हैं। उन्होंने द्रमुक की राजनीति को निशाना बनाया है। एक कयास यह भी है कि दलपति की पार्टी तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के पराभव से उत्पन्न वैक्यूम को भर सकती है। जहाँ तक इस दक्खिनी सूबे में पांव पसारने की भाजपा की बलवती इच्छा का प्रश्न है, उसे ठौर मिलना कठिन दीखता है। यद्यपि बीजेपी तमिलनाडू में दाखिले और दखल की पुरजोर कोशिश कर रही है। किन्तु
उसके लिए अंगूरों के खट्टे रहने का ही अंदेशा है। अन्ना-द्रमुक से संबंध-विच्छेद के बाद बीजेपी दलपति के ‘मूव’ को एक नयी संभावना के रूप में ले सकती है। बीजेपी को तमिलनाडु की महत्ता का एहसास है। यही वजह है
कि अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह की पूर्व वेला में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी रामेश्वरम और धनुषकोटि गये। उन्होंने रामकृष्ण मठ में रात बितायी। उन्होंने मंदिरों में पूजार्चन किया। यह बात दीगर है कि द्रमुक कार्यकर्ता उन्हें काले- झंडे दिखाने से नहीं चूके। उधर उनकी वित्तमंत्री सुश्री सीतारमन ने पोस्ट डालकर स्तालिन – सरकार को 22 जनवरी को पूजन, अनुष्ठान और प्रसाद वितरण पर पांबदी को आड़े हाथों लिया। इस पर स्तालिन सरकार में मंत्री पीके शेखरबाबू ने मोर्चा संभाला और सूश्री सीतारमण, की तोहमत को ‘सफेद झूठ’ निरूपित किया। दिल्ली और चेन्नै में तल्खी बढ़ने का
सबूत यह भी है कि सांसद टी. आर. बालू ने लोकसभा में कहा कि तमिलनाडु के राज्यपाल के मन में संविधान के प्रति आदर नहीं है। इसमें शक नहीं है कि इधर द्रमुक और अन्नाद्रमुक के रिश्तों में भी खटास बढ़ी है। इसकी पुष्टि अन्नाद्रमुक के महासचिव के पन्नी स्वामी के बयान से होती है। मुख्यमंत्री स्तालिन ने फिर से दोहराया है कि तमिल जन विगत दो चुनावों में बीजेपी को वोट न देने की परंपरा का आगे भी निर्वाह करेंगे। उन्होंने सलेम में युवा
सम्मेलन में कहा कि मोदी यूं तो सीएम रहे हैं, लेकिन राज्यों की इयत्ता को नष्ट करने पर तुले हैं। स्तालिन ने किसी भी कीमत पर सीएए लागू नहीं करने का ऐलान करते हुए यकीन जताया कि केंद्र में ‘इंडिया’ की सरकार बनेगी और संघीय परिवेश में तमिलनाडु का भला होगा।
( डॉ. सुधीर सक्सेना देश की बहुचर्चित मासिक पत्रिका “दुनिया इन दिनों” के सम्पादक, देश के विख्यात पत्रकार और हिन्दी के लोकप्रिय कवि- साहित्यकार हैं। )
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