दाग धो देती है जनता, दागियों से घिरे नेताओं को देती है नकार

न्यूज एक्शन। चुनाव का दौर शुरू होते ही सरकार बनाने की जोड़तोड़ शुरू हो जाती है। हर कोई सत्ता में अपनी मजबूत दखल रखना चाहता है। इसके लिए चुनाव के दौरान खूब तिकड़म होता है। माफियानुमा लोग किसी बड़े राजनीतिक दल में अपने समर्थित व्यक्ति को टिकट दिलाने 10 से 12 करोड़ खर्च देते हैं। फिर जीतकर माफियाओं का समर्थितनुमा नेता पांच सालों तक उन्हें खूब रबड़ी खिलाता है। यही वजह है कि राजनीतिक दलों में बिना कद के नेताओं को कद वाले नेताओं पर तरजीह देते हुए टिकट दे दिया जाता है। वहीं चुनाव के समय असामजिक एवं दागी लोग भी सत्ताधारी दल में घुसकर अपनी पैठ जमाने की कोशिश करते हैं। दल बदलने में माहिर ऐसे दागी नेता सत्ता दल के पास गुड़ में चींटी की तरह खींचे चले आते हैं। यह सिलसिला ऐसा शुरू होता है कि बेदाग छवि वाला नेता ऐसे दागी और असामाजिक तत्वों से घिर जाता है। जिसके बाद जनता की नजरों में भी वह गिरता चला जाता है। चुनाव में ऐसे नेता को जनता नकारती रही है। कोरबा जिला में इसके उदाहरण अनेक हैं। एक विधायक के साथ कुछ दागी लोग उनकी सवारी में सवार हो गए थे। अखबारों में यह तस्वीर प्रमुखता से प्रकाशित हुई। जिसका अंजाम यह हुआ कि उस साल के चुनाव में उक्त विधायक को जनता का समर्थन नहीं मिला और वे हार गए। हार के बाद शायद उन्हें अपनी इस गलती का अहसास हो गया। ऐसे दागियों से किनारा कर वे एक बार फिर जन मुद्दों को लेकर मुखर हो गए। जनता ने भी उन पर विश्वास जताते हुए इस विधानसभा चुनाव में फिर विधायक की कुर्सी दिला दी। उक्त विधायक की तरह ही ऐसे दागदार छवि वाले लोगों का ग्रहण एक और विधायक को और गत विधानसभा चुनाव के एक प्रमुख दल के प्रत्याशी को लग चुका है। जब ऐसे दागदार लोगों से विधायक दूर थे तो जनता ने उन्हें अपना भरपूर समर्थन दिया। निकाय चुनाव की गद्दी से लेकर एक राजनीतिक दल का गढ़ माने जाने वाले विधानसभा का किला फतह करने में जनता ने उनका बखूबी साथ दिया, लेकिन विधायकी के दौरान दागी लोगों की फौज उनके आसपास मंडराने लगी। खुद को उनसे जोड़ लिया। जिसका परिणाम इस विधानसभा चुनाव में सबके सामने है। इसी तरह कोरबा विधानसभा सीट से चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशी को भी जनता ने नकार दिया। अब ऐसी ही परिस्थिति एक बार फिर कोरबा की राजनीति में शुरू हो चुकी है। सत्ताधारी दल से जुडऩे ऐसे दागी नेता बेताब हैं। एक ऐसा ही नेता जिससे पंच, सरपंच परेशान हैं। जिसके गुंडागर्दी के कई किस्से हैं। कई थानों मेंं उसके खिलाफ एफआईआर भी है। वह भी सत्तारूढ़ दल से जुडऩे हाथ पैर मार रहा है। ऐसे दागी नेताओं से बेदाग छवि वाले नेता की गद्दी ही जाती है। सत्ता दल की आड़ में दागी नेता तो अपनी राजनीति चमका लेते हैं, लेकिन जनहितैषी नेताओं की छवि ऐसे दागियों के कारण धूमिल हो जाती है। सत्तारूढ़ दल इस इतिहास से सबक लेती है या फिर ऐसे दागियों को अपने साथ करती है, यह तो पार्टी और उसके पदाधिकारियों के विवेक पर निर्भर है।

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