दीयों से भाग्योदय की आशा कुम्हारों को

कोरबा 21 अक्टूबर। लोकल फॉर वोकल का नारा भारत सरकार की ओर से पिछले वर्षों में मजबूती के साथ दिया गया और इसे अखिल भारतीय स्तर पर प्रचारित प्रसारित किया गया। इसका व्यापक प्रभाव लोगों की मानसिकता पर पड़ा। इसी का परिणाम है कि दीपावली पर मिट्टी के दीपकों की मांग और उनकी उपयोगिता बड़ी है। स्थानीय स्तर पर मिट्टी के दीयों का निर्माण करने में जुटे प्रजापति समुदाय को इस बात की पूरी आशा है कि दीपावली का पर्व उनके भाग्य उदय का आधार बनेगा।

परंपरागत रूप से दीपोत्सव पर मिट्टी के दिए प्रचलित करने का विधान है जो सनातन काल से चला रहा है। त्रेता युग में आसुरी शक्ति के प्रतीक रावण का वध करने के बाद भगवान श्री रामचंद्र की अयोध्या वापसी हुई थी। प्रजा ने उनका स्वागत मिट्टी के दीए जलाकर किया था। मान्यता है कि तब से यह पर्व शुरू हो गया और समाज के बीच स्थापित हो गया। जबकि एक मान्यता यह भी है कि धन-और सुख समृद्धि से देवी देवताओं की अनुकंपा प्राप्त करने के लिए इस अवसर पर विशेष पूजा की जाती है इसलिए अभी दीपावली की परंपरा जारी है। बीते कुछ समय में इस पर्व पर आधुनिक सोच रखने वाले लोगों की ओर से चाइनीस झालर और दियों को बढ़ावा दिया गया। इससे कई प्रकार की चुनौतियां सर्वहारा वर्ग के बीच उत्पन्न हुई।

पिछले दो पंचवर्षीय से भारत का नेतृत्व कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा स्थानीय उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए प्रयासकिए गए। इसने लोगों की सोच में परिवर्तन किया और खास तौर पर छोटे उद्यम करने वाले वर्ग को आगे बढ़ाने में सहायता की। कोरबा नगर और आसपास के क्षेत्र में दीपावली पर्व के लिए लाखों की संख्या में मिट्टी के दिए कुम्हार समुदाय तैयार करने में लगा हुआ है। उन्होंने पुश्तैनी रूप से इस काम को जारी रखा है। करवा चौथ के साथ उनका व्यवसाय आगे बढ़ रहा है। तरुण छत्तीसगढ़ से बातचीत में ऐसे कुछ लोगों ने बताया की परंपरा और संस्कृति की जड़ों की तरफ जन सामान्य लौट रहा है और मजबूती से जुड़ रहा है। हमें पूरी आशा है कि इस प्रकार का परिवर्तन काफी अच्छा है और यह हमें आर्थिक रूप से मजबूत करने का एक माध्यम बनेगा।

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