कही-सुनी @ रवि भोई
कही-सुनी (26NOV-23): रवि भोई
छत्तीसगढ़ में कयासों का बाजार गर्म
विधानसभा चुनाव नतीजों को लेकर छत्तीसगढ़ में कयासों का बाजार गर्म है। कोई कह रहा है राज्य में कांग्रेस सरकार बना लेगी, तो किसी का मत भाजपा के पक्ष में हैं। भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने स्तर पर चुनाव नतीजों की समीक्षा में लगे हैं। जमीनी हकीकत को लेकर प्रत्याशियों से फीड बैक भी ले रहे हैं और उनकी शिकवा-शिकायत भी सुन रहे हैं। शिकायतों के आधार पर कांग्रेस ने कुछ नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी से निकाल भी दिया। सरकार बनाने को लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल ताल ठोंक रहे हैं, पर संख्या बल को लेकर दोनों दल सशंकित बताए जाते हैं। बागियों और अधिकृत प्रत्याशियों के लिए काम न करने को लेकर दोनों दलों में एक जैसा सुर ही है। कहते हैं एक विधानसभा में भाजपा के चुनाव संचालक ने खर्चे के लिए राशि नहीं मिलने पर चुनाव दफ्तर ही बंद कर चले गए। पैसे आने के बाद ही दफ्तर खोला। खबर है कि कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेता और मंत्री भी शिकवा-शिकायत के लिए प्रभारी महासचिव सैलजा के पास पहुंच गए। इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि कांग्रेस के दिग्गजों की हालत भी पतली है, ऐसा न होता तो शिकवा-शिकायत की नौबत ही नहीं आती। पिक्चर तो तीन दिसंबर को ही साफ़ होगी।
इस्टीमेट देख भाजपा प्रत्याशी के उड़े होश
कहते हैं रायपुर संभाग के एक भाजपा प्रत्याशी को चुनाव संचालक और विधानसभा के संयोजक ने साढ़े बारह करोड़ का इस्टीमेट थमा दिया। चर्चा है कि दोनों पदाधिकारियों ने प्रत्याशी के सामने शर्त रख दी कि साढ़े बारह करोड़ उनके पास जमा करेंगे तो ही वे काम कर पाएंगे। पदाधिकारियों ने कहा इस सीट में 10 करोड़ खर्च होता ही है। प्रत्याशी ने उनकी शर्त सुनकर हाथ जोड़ लिए और राशि देने में असमर्थता जताई। इस पर दोनों पदाधिकारी नाराज हो गए और यहाँ तक कह दिया कि जब पैसा नहीं था तो पार्टी की टिकट क्यों ली?प्रत्याशी ने पदाधिकारियों को पैसे देने की जगह अपनी टीम बना ली और जैसे-तैसे चुनाव प्रबंधन किया । इस प्रत्याशी को किस्मत का धनी माना जा रहा है। सालों बाद प्रत्याशी की किस्मत चमकी और पार्टी की टिकट मिल गई। अब सबको नतीजे का इंतजार है।
चुनावी दंगल में फंसे हैं पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे
कहते हैं पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल के बेटे अमितेश शुक्ल और पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा के बेटे अरुण वोरा इस बार चुनावी दंगल में फंस गए हैं। दोनों के ख़िलाफ भाजपा ने नए चेहरे मैदान में उतारे हैं। चर्चा है कि एंटी इंकम्बैंसी फैक्टर और भितरघातियों के फेर में दोनों उलझ गए हैं। 2018 में अमितेश शुक्ल राजिम से ही 58 हजार से अधिक वोटों से जीते थे। अरुण वोरा ने भी दुर्ग से अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 21 हजार से अधिक मतों से हराया था। गौरतलब है कि दोनों के पिता संयुक्त मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री थे। छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पुत्र अमित जोगी भी पाटन से चुनाव लड़ रहे हैं। दो धाकड़ लोगों की लड़ाई में अमित जोगी कितना वोट हासिल कर सकते हैं, इसी की चर्चा है।
राजेंद्र कटारा को क्लीन चिट ?
बीजापुर कलेक्टर राजेंद्र कटारा को लेकर भाजपा लगातार शिकायत कर रही है। भाजपा उन पर पक्षपात का आरोप लगा रही है। कहते हैं भाजपा की शिकायत पर चुनाव आयोग ने करीब पखवाड़ेभर पहले जांच रिपोर्ट बुलवाई थी। कहा जा रहा है जांच रिपोर्ट में राजेंद्र कटारा के खिलाफ शिकायत सही नहीं पाई गई। भाजपा की टीम शुक्रवार को फिर राजेंद्र कटारा की शिकायत लेकर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी दफ्तर गई और उन्हें मतगणना कार्य से दूर रखने की मांग की। खबर है कि भाजपा की टीम को सीईओ ने बीजापुर कलेक्टर के खिलाफ शिकायत सही नहीं पाए जाने की जानकारी दे दी। बीजापुर में पूर्व मंत्री महेश गागड़ा भाजपा प्रत्याशी हैं, उनका मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम मंडावी से है। विक्रम मंडावी अभी विधायक हैं। बीजापुर विधानसभा में सात नवंबर को मतदान हुआ था।
पोस्टिंग के इंतजार में अफसर
2001 बैच की आईएएस अफसर शहला निगार और 2005 बैच की आईएएस अफसर आर. शंगीता छुट्टी से लौट आईं हैं और अब पोस्टिंग के इंतजार में हैं। 2011 बैच के आईएएस अफसर संजीव कुमार झा और 2012 बैच के आईएएस अफसर तारण प्रकाश सिन्हा की पोस्टिंग भी अभी तक किसी विभाग में नहीं हुई है। इन दोनों अफसरों को अक्टूबर में चुनाव आयोग के निर्देश पर राज्य सरकार ने कलेक्टर की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया था। संजीव झा बिलासपुर के और तारण सिन्हा रायगढ़ के कलेक्टर थे। कहते हैं विधानसभा चुनाव के कारण सरकार में रुटीन फाइल भी नहीं चल रही है, इस कारण आईएएस अफसरों की पोस्टिंग भी अटकी है।
कांग्रेस नेता की धर्मगुरु से डील की चर्चा
कहते हैं एक कांग्रेस नेता को अपनी जीत के लिए एक धर्मगुरु से लंबी डील करनी पड़ी। कहा जा रहा है कि कांग्रेस नेता को अपनी हार का अहसास होने के बाद धर्मगुरु की शरण में जाना पड़ा। कांग्रेस नेता कई बार से चुनाव जीत रहे हैं। कांग्रेस नेता जिस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, वहां एक विशेष धर्म के वोटर काफी संख्या में हैं और वही हार -जीत का फैसला करते हैं। खबर है कि धर्मगुरु से डील के बाद समाज में प्रभाव रखने वाले करीब 40-50 लोग कांग्रेस नेता के समर्थन में उतरे। बताते हैं प्रारंभिक चरण में कांग्रेस नेता के खिलाफ बदलाव की हवा चल पड़ी थी। धर्मगुरु की कृपा से माहौल बदला।
हार-जीत का अंतर कम रहने के कयास
इस बार के विधानसभा चुनाव में कयास लगाया जा रहा है कि हार-जीत का अंतर काफी कम रहने वाला है। विश्लेषक और राजनीतिज्ञ मानकर चल रहे हैं कि सभी सीटों में मुकाबला कांटे का रहा। इस कारण प्रत्याशियों की जीत -हार काफी कम वोटों से होगी। जानकारों को किसी भी सीट में एकतरफा मुकाबला नजर नहीं आ रहा है। 2018 में मोहम्मद अकबर कवर्धा से 59 हजार से अधिक मतों से जीते थे। माना जा रहा है कि इस बार किसी भी प्रत्याशी के जीत का अंतर इतना बड़ा नहीं होगा।
‘आप’ चर्चा से गायब
विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी (आप) बड़ी चर्चा में थी, लेकिन चुनाव के दौरान वह सुर्ख़ियों में नहीं रही। मतदान के बाद भी लोग ‘आप’ को याद नहीं कर रहे हैं। बसपा और जोगी कांग्रेस के कुछ सीटों पर जीत की बात हो रही है, लेकिन आप की जीत की बात कोई नहीं कर रहा है। नतीजों के बाद कांग्रेस और भाजपा को बहुमत नहीं मिलने पर बसपा और जोगी कांग्रेस की भूमिका की भी बात हो रही है।
(लेखक पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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