कही-सुनी @ रवि भोई
*कुलपति ने बदला रंग ?*
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खास कहे जाने वाले एक कुलपति द्वारा अपने विश्वविद्यालय से जुड़े एक भवन के लोकार्पण कार्यक्रम में स्वास्थ्य मंत्री टी. एस. सिंहदेव को मुख्य अतिथि बनाये जाने पर राजनीतिक गलियारों में नए समीकरण की चर्चा होने लगी है। लोग कहने लगे हैं कि क्या ढाई-ढाई साल के फार्मूले का अंदाज लगाकर कुछ लोग गिरगिट की तरह रंग बदलने लगे हैं। बीते शनिवार को रायपुर से सरगुजा इलाके में विश्वविद्यालय के अधीन एक संस्था के भवन का ऑनलाइन लोकार्पण करवाया गया। लोकार्पण कार्यक्रम का आयोजन विश्वविद्यालय ने किया था। मुख्यमंत्री के काफी करीबी कुलपति द्वारा आनलाइन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री को न बनाकर टी. एस. सिंहदेव को बनाये जाने से लोगों के कान खड़े हो गए हैं। कार्यक्रम में सरगुजा जिले के नौ नेताओं को विशिष्ठ अतिथि बनाया गया है। मंत्री अमरजीत भगत और उमेश पटेल का नाम कार्यक्रम में अध्यक्षता करने वालों में है। कहते हैं मंत्रियों को लोकार्पण के दिन ही सूचना दी गई और व्हाट्सअप संदेश भेजकर अल्प समय पर सूचना देने के लिए माफ़ी भी मांगी गई है। शिक्षा मंत्री के नाते उमेश पटेल से कार्यक्रम के बारे में राय भी नहीं ली गई। अब देखते हैं कई आरोपों से घिरे कुलपति महोदय पर मुख्यमंत्री की दया बनी रहती है या फिर कोई उलटफेर होता है।
*बिहार चुनाव में भूपेश को मिलेगी बड़ी जिम्मेदारी ?*
चर्चा है बिहार विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। मुख्यमंत्री को कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी के बुलावे को इसी नजरिये से देखा जा रहा है। लोकसभा चुनाव के वक्त मुख्यमत्री भूपेश बघेल को उत्तरप्रदेश और कुछ अन्य राज्यों में प्रचार की जिम्मेदारी मिली थी। श्रीमती गाँधी से मिलने के लिए शुक्रवार को मुख्यमंत्री दिल्ली गए थे। देश में अभी चार राज्यों राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ और पांडिचेरी में कांग्रेस की सरकार है। बिहार चुनाव में कांग्रेस अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करना चाहती है, इस कारण अपनी ताकत झोंकेगी। इसमें कांग्रेस अपने मुख्यमंत्रियों को जिम्मेदारी दे सकती है। भारत निर्वाचन आयोग के संकेत से लग रहा है कि अक्टूबर- नवंबर में मरवाही विधानसभा उपचुनाव हो सकता है। ऐसे में मुख्यमंत्री की मरवाही उपचुनाव के लिए श्रीमती गाँधी से प्रत्याशी के नाम पर भी चर्चा की उम्मीद की जा रही है। कहा जा रहा है मरवाही उपचुनाव के बाद ही अब शेष बचे निगम-मंडलों में नियुक्ति होगी।
*नेता खुद भूल गए अपना ज्ञान*
छत्तीसगढ़ में मार्च महीने में एक-दो केस में ही अलर्ट आसमान को छू गया था , लेकिन सितंबर आते-आते सतर्कता शून्य पर जा पहुंचा। क्याआम, क्या खास सभी कोरोना की चपेट में आने लगे हैं। मौतों का आंकड़ा भी लगातार बढ़ रहा है। राजभवन, मुख्यमंत्री निवास, मंत्रालय से लेकर कई सरकारी दफ्तर कोरोना की जद में आ गए हैं ।कुछ आयोजनों में कांग्रेस और युवक कांग्रेस के नेता अपनी राजनीति चमकाने में इतने मशगूल थे कि न तो उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रहा और न ही कोरोना की चपेट में आने की चिंता रही। जबकि नेता ही लोगों को सामजिक दूरी बनाये रखने का ज्ञान लोगों को दे रहे थे। कहते हैं कांग्रेस के एक युवा नेता मुख्यमंत्री के जन्मदिन के दिन मुख्यमंत्री निवास पर देर तक लोगों से मिलते रहे और दूसरे दिन कोरोना संक्रमित मिले। आयोजनों को लेकर अब सवाल भी उठने लगे हैं और विपक्ष को सरकार के खिलाफ मुद्दा मिल गया है । एक बात तो साफ़ है कि उत्साही नेता राजनीति चमकाने के चक्कर में कोरोना को भूल गए। कोरोना की चपेट में आने के बाद भले उन्हें अपने भूल का अहसास हो रहा हो, पर कहते हैं न -“अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।”
*पीएचई विभाग सुर्ख़ियों में*
छत्तीसगढ़ का लोकस्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग याने पीएचई विभाग इन दिनों एक आला अफसर को जीरो से हीरो बनाने और अफसर टैक्स वसूली की खबरों से चर्चा में है। पीएचई विभाग के मंत्री रुद्रकुमार गुरु ने एक चीफ इंजीनियर को टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी के आरोप में फ़रवरी 2019 में निलंबित कर दिया था, लेकिन अगस्त 2019 में बहाल कर मई 2020 में ऊँची कुर्सी दे दी । सालभर पहले मंत्री की नजरों में ख़राब व्यक्ति अचानक पाक-साफ़ होकर ऊँची कुर्सी पर कैसे विराजमान हो गया, लोग इस रहस्य को तलाशने में लगे हैं। पीएचई विभाग को आने वाले तीन वर्षों में राज्य के हर गांव के हर घर में नल से पानी पहुँचाना है। यह करीब 15 हजार करोड़ का प्रोजेक्ट है, जिसमें 45 फीसदी राशि भारत सरकार देगी और 45 फीसद हिस्सेदारी राज्य की होगी। दस फीसदी राशि पंचायतों को देनी होगी। कहते हैं इतने बड़े काम के आगाज के बीच पीएचई विभाग के मुख्यालय में तैनात एक अफसर ने हर बिल में पांच से दस हजार रुपये एक्स्ट्रा जोड़ने का मौखिक फरमान जिलों को दे दिया है। अतिरिक्त वसूली की राशि किस मद में खर्च होगा, यह तो पता नहीं है, पर इस फरमान से जमीनी अफसरों को सांप सूंघ गया है कि अतिरिक्त वसूली के लिए कौन सा रास्ता अख्तियार किया जाय ।
*पूर्व सीएम के ओएसडी का कांग्रेस राज में भी जलवा*
सत्ता बदलने के साथ तस्वीर तो बदलती है, लेकिन कुछ चेहरे यथावत रहते हैं और मलाई पर हाथ मारते रहते हैं। ऐसा ही कुछ भाजपा शासन में मुख्यमंत्री के ओएसडी रहे एक भाग्यशाली व्यक्ति हैं। कहते हैं मुख्यमंत्री के ओएसडी रहते उनकी एक बड़े साहब से बहुत अच्छी दोस्ती हो गई और दोनों की केमेस्ट्री भी मिल गई। बड़े साहब ने एक विभाग के मुखिया रहते उन्हें अच्छा खासा काम भी दिला दिया। ओएसडी साहब सरकारी अधिकारी नहीं थे , इस कारण दूसरे कामों में भी हाथ-पांव मार लिया करते थे। भूपेश बघेल की सरकार में बड़े साहब पावरफुल अफसर कहे जाते हैं , इस कारण ओएसडी रहे व्यक्ति की चांदी हो गई। कहते हैं कांग्रेस राज में पूर्व ओएसडी को कई बड़े काम मिल गए हैं और उन्होंने कुछ टेंट वालों के साथ मिलकर सिंडिकेट भी बना लिया है। पूर्व ओएसडी राजधानी के पड़ोस के जिले के रहने वाले हैं और उनके रिश्तेदार राजनीति में भी हैं। पूर्व ओएसडी और बड़े साहब के बीच रिश्ते की चर्चा राजनीतिक गलियारों और सोशल मीडिया में हो रही है।
*मंत्री ने बांटे पुत्रों को विभाग*
कहते हैं राज्य के एक वरिष्ठ मंत्री ने अपने पुत्रों को विभाग का कामकाज बाँट दिया है। मंत्री जी के पास तीन विभाग हैं और उनके तीन बेटे हैं। तीनों को एक-एक विभाग बाँट दिया है। अब मंत्री के बेटे विभाग चलाएंगे, तो फिर उस विभाग का भगवान ही मालिक है। कहते हैं मंत्री पुत्र विभागों को लेकर झगड़ रहे थे, इस कारण एक-एक विभाग बाँट दिया गया। वैसे भी मंत्री जी के जिम्मे वाले विभाग के अफसर बैठकों में मंत्री जी की बातों से परेशान हो जाते हैं। मंत्री जी के ज्ञानवर्धक प्रवचन से ऊबकर एक अफसर ने तो लंबी छुट्टी ले ली। कहते हैं मंत्री जी का सामान्य ज्ञान तो माशा अल्लाह। भाषणों में ऐसा कुछ कह जाते हैं कि सरकार की जग हंसाई हो जाती है।
(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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