देश में कोयला संकट और एसईसीएल की खदानों में औसतन हर पांचवें दिन भू-विस्थापितों का काम बंद आंदोलन
कोरबा 12 सितंबर। देश में कोयला संकट के बीच साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड एसईसीएल आंदोलन की मार झेल रही है। पिछले पांच माह के अंदर हुए आंदोलनों पर नजर दौड़ाई जाएं तो गेवरा, दीपका व कुसमुंडा तीनों मेगा परियोजनाओं में औसतन पांच दिन में काम बंद हड़ताल हो रही। इस दौरान करीब 60 घंटे कोयला उत्पादन व मिट्टी निकासी का काम प्रभावित रहा। हड़ताल की इस अवधि में करीब 2.25 लाख टन कोयला व लदान प्रभावित हुआ। यही वजह है कि एसईसीएल लगातार दूसरे वर्ष भी कोयला उत्पादन के क्षेत्र में लक्ष्?य से करीब 140 लाख टन पीछे चल रही है।
कोल इंडिया से संबद्ध सात कोयला उत्पादक कंपनियों में एसईसीएल सबसे बड़ी कंपनी मानी जाती है। बीते वित्तीय वर्ष 2021-22 को यदि छोड़ दिया जाए, इससे पहले लगातार कई वर्षो तक एसईसीएल उत्पादन व परिवहन के क्षेत्र में नंबर वन कंपनी रही। बीते वर्ष लगभग 210 लाख टन कोयला उत्पादन से कंपनी पीछे रही। कोयला मंत्री से लेकर सचिव तक यहां दौरा कर चुके हैं। केंद्र की उम्मीद एसईसीएल की इन्हीं तीनों मेगा प्रोजेक्ट पर बनी हुई है। देश में कोयले की मांग को पूरा करने के लिए खदानों में उत्पादन बढ़ाने की कवायद चल रही। अभी कुछ दिन पहले ही कोयला मंत्रालय की संयुक्त सचिव विस्मिता तेज तीनों मेगा प्रोजेक्टों का दौरा की और उत्पादन की स्थिति देखी। एसईसीएल के पिछडऩे के कारण जमीन व संसाधन की कमी हो सकती है, पर सबसे बड़ी वजह से भू-विस्थापितों का आंदोलन उभर कर सामने आ रही। इस बात से ही सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि औसतन हर पांचवें दिन भू.विस्थापितों से जुड़ा एक संगठन किसी न किसी एक खदान में उतर कामकाज ठप कर देता है। कई बार तो ऐसा भी होता है कि एक ही दिन तीनों प्रोजेक्ट में अलग अलग संगठन उत्पादन प्रभावित कर देते हैं। अधिकारियों को आंदोलनकारियों से निपटने में ज्यादा मशक्कत करनी पड़ रही। इसका सीधा असर कोयला उत्पादन में पड़ रहा। यही स्थिति रही तो इस वित्तीय वर्ष में भी एसईसीएल अपना 1820 लाख टन का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाएगी।
वर्षा की वजह से खदानों में कोयला उत्पादन का लक्ष्य कम कर दिया जाता है। इसके बावजूद खदान अपने निर्धारित लक्ष्य को हासिल नहीं कर पा रही। माह अगस्त के उत्पादन पर नजर डाली जाए, तो एसईसीएल को 116.3 लाख टन कोयला उत्पादन करने का लक्ष्य मिला था, पर कंपनी 94.6 लाख टन कोयला ही उत्पादन सकी। वहीं लदान भी 127.1 के मुकाबले 114ण्1 लाख टन हो सका। उत्पादन कम होने का असर राज्य शासन को मिलने वाले राजस्व पर भी पड़ रहा है। एसईसीएल से खनिज विभाग को सर्वाधिक राजस्व मिलता है, पर उत्पादन कम होने से राजस्व में भी गिरावट आ रही है।
एसईसीएल के सीएमडी डा प्रेमसागर मिश्रा ने अधिकारी-कर्मचारी व श्रमिक संगठन की संयुक्त अधिवेशन में अबकी बार 200 के पार का नारा दिया था। यानी चालू वित्तीय वर्ष में 200 मिलियन टन 2000 लाख टन उत्पादन करना है, पर एसईसीएल की मेगा परियोजनाओं में लगातार हो रहे आंदोलन की वजह से स्थिति यह हो गई है कि 2000 तो दूर कंपनी के लिए निर्धारित 1820 लाख टन उत्पादन करना मुश्किल हो जाएगा। हालांकि एसईसीएल के समक्ष अभी 200 दिन शेष हैं और सीएमडी समेत सभी आला अफसर निचले क्रम के अधिकारी व कर्मचारियों को प्रोत्साहित कर रहे हैं, ताकि उत्पादन बढ़ा कर लक्ष्य हासिल किया जा सके।