मिर्ची @ गेंदलाल शुक्ल
दुश्मन न करे, दोस्त ने वो काम किया है
दुश्मन न करे, दोस्त ने वो काम किया है। यह फिल्मी गीत इन दिनों कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं पर बिल्कुल फीट बैठ रहा है। इसकी बानगी पिछले दिनों कांग्रेस के नव संकल्प शिविर में देखने को मिला। एक पार्षद की पीड़ा थी, कि अपनी ही सरकार में नोट छापने का मौका नहीं मिल रहा है। भाजपा सरकार में जो लोग टकसाल लगाये बैठे थे, वे अभी भी टकसालों पर काबिज हैं? एक अन्य नेता ने कहा- इससे तो अच्छी भाजपा की सरकार थी। उस समय हमारे सभी काम हो जाते थे। अपनी सरकार में तो कोई काम ही नहीं हो रहा है? जिले के एक फायर ब्राण्ड नेता का वक्तव्य सबसे दर्दनाक था, वो बोले- पार्टी ने जब भी कोई जिम्मेदारी, दी उसे पूरा करने की भरपूर कोशिश की। इसके बाद भी अपनी ही सरकार में प्रताडि़त हो रहे हैं। जिला बदर तक कर दिया गया। उनकी आवाज रूंध गई थी और आंखों में आंसू डबडबा आये थे। शिविर से बाहर आकर एक नेता ने कहा- पार्टी की बात करने से क्या होता है? ठप्पा
तो व्यक्ति विशेष का लगवा रखे हैं। पार्टी निष्ठा पर व्यक्ति निष्ठा भारी हो तो पार्टी को दोष नहीं देना चाहिए। वैसे बीते तीन साल से कोरबा के कांग्रेस अपनी ही सरकार में अपनी प्रताडऩा की शिकायत करते आ रहे हैं, लेकिन उनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है।
आदिवासी विकास विभाग और नगर निगम में टेण्डर-टेण्डर
आदिवासी विकास विभाग और नगर निगम कोरबा में लम्बे समय से टेण्डर- टेण्डर का खेल खेला जा रहा है। अधिकारी बदलते हैं, तो उम्मीद की जाती है, कि अब इस खेल पर विराम लग जायेगा। लेकिन चंद दिनों बाद ही पता चल जाता है, कि- यह खेल तो शास्वत है। बल्कि पुराने से नये वाले कुछ ज्यादा ही चतुर सियान हैं। आदिवासी विकास विभाग में 28 करोड़ रूपयों के 18 कार्यों का टेण्डर बुलाया गया। अपने चहेतों को टेण्डर देने के लिए निविदा की शर्तों में एक नयी शर्ते जोड़ दी गयी, अनुभव की। इस शर्त को हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी। होईकोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली। सामान्यत: न्यायालय में मामला जाने के बाद न्याय पालिका के सम्मान में विवादास्पद मामलों में आगे की प्रक्रिया नहीं की जाती है। लेकिन आदिवासी विकास विभाग के अधिकारी का हौसला इतना बुलंद है कि उन्होंने कार्यादेश जारी कर दिया। इसी तरह नगर निगम के करीब 25 करोड़ रूपयों के कार्य में नई शर्त जोड़ दी गई है। नगर निगम कान्ट्रेक्टर एसोसियेशन ने चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए शर्त जोडऩे का आरोप लगाया है। सोमवार को कान्ट्रेक्टर एसोसियेशन ने नगर निगम आयुक्त प्रभाकर पाण्डेय से भेंट कर ज्ञापन सौंपा। उन्होंने मामले में संज्ञान लेने का आश्वासन दिया है। मामला नहीं सुलझता तो कान्ट्रेक्टर एसोसियेशन हाईकोर्ट जायेेगा।
डी. एम. एफ. में क्या राज है जो छुपा रहे हो
डी. एम. एफ. यानि जिला खनिज संस्थान न्यास अब तिलस्मी हो गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस योजना को लागू किया था, तब इसमें पूरी पाददर्शिता रखने का निर्देश दिया था। प्रदेश की भाजपा सरकार के कार्यकाल में इसका पालन भी किया गया। लेकिन सरकार बदलते ही पारदर्शिता को तिलांजलि दे दी गयी। पहले डी. एम. एफ. की वेबसाइड में सभी स्वीकृत कार्यों की सूची प्रदर्शित होती थी। लेकिन बीते तीन वर्ष से यह साइड लाक कर दी गयी। अब न तो स्वीकृत कार्यों की सूची नजर आती है और ना ही पूर्ण किये गये कार्यों की। इसकी वजह पूछने पर चुप्पी साध ली जाती है अथवा धीरे से कहा जाता है ऊपर का आदेश है। अब ऊपर कौन है? इसमें बड़ा सस्पेंस है। इसके तह तक पहुंचना बड़ा कठिन है। क्योंकि बाबू के ऊपर साहब है। साहब के ऊपर साहब और साहब, साहब है। साहब के ऊपर मंत्री है। मंत्री के ऊपर मुख्यमंत्री है। मुख्यमंत्री के ऊपर राज्यपाल है। राज्यपाल के ऊपर राष्ट्रपति है। सबसे ऊपर आसमानी ताकत है। हद तो यह है कि कोरबा में सूचना का अधिकार भी निष्प्रभावी है। डी. एम. एफ. की जानकारी सूचना का अधिकार में भी नहीं दी जाती। कहा तो यह भी जाता है कि निर्माण और सप्लाई के नाम पर कागजों में ही करोड़ों रूपये खर्च कर निजी तिजौरियां भर ली गई हैं ? बहरहाल सच्चाई
जो हो, लोग पूछ रहे हैं-क्या राज है, जो छुपा रहे हो?
मिर्ची @ गेंदलाल शुक्ल, सम्पर्क- 098271 96048