कारवां @ अनिरुद्ध दुबे
कारवां
अनिरुद्ध दुबे
मीडिया के माध्यम से पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का बयान सामने आया है कि “छत्तीसगढ़ में भाजपा की हालत ठीक नहीं। यदि छत्तीसगढ़ में वापस सरकार बनाना है तो 51 प्रतिशत वोट जुटाने होंगे। पिछले 3 बार सरकार इसलिए बनती रही थी कि अन्य दलों की मौजूदगी के कारण वोटों के बंटवारे होते रहे थे। 2023 के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर होना है।“ राजनीतिक जगत में डॉ. रमन सिंह की इन बातों के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। 2018 के चुनाव में भाजपा के विपक्ष में आने के बाद से विभिन्न मुद्दों को लेकर उसके बड़े नेताओं के बीच जो जमकर खींचतान शुरु हुई, वह आज तक बरक़रार है। चाहे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद पर किसी को बिठाए जाने का मामला हो या फिर विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष के चयन का मामला। यही नहीं रायपुर समेत अन्य जिलों के जिला अध्यक्ष पद को लेकर भी ख़ूब उठापटक चलती रही। एक तरफ डॉ. रमन सिंह, धरमलाल कौशिक एवं विष्णुदेव साय नज़र आते हैं तो दूसरी तरफ बाक़ी अन्य बड़े नेता। इसके अलावा भूपेश सरकार अपनी अलग कार्य शैली के कारण जैसा कि छत्तीसगढ़ के मतदाताओं के अंतर्मन में गहरे तक उतर चुकी है, उससे भाजपा के दिग्गज अच्छी तरह समझ पा रहे हैं कि आगे मुक़ाबला आसान नहीं है। फिर मन में यह भी डर बैठा हुआ है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में भी नतीजा उल्टा पड़ गया तो कहीं ठीकरा अपने सिर पर जाकर मत फूटे। जब कहीं ऐसी आशंका बनी रहे तो बचाव के लिए बड़े नेताओं की ज़ुबान पर कभी कोई अनोखी बात आ ही जाती है। फिर यह भी माना जा रहा है कि पूर्व के तीन तो नहीं लेकिन बाद वाले दो विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिस अदृश्य ताकत ने साथ देकर सरकार बनाने में मदद पहुंचाई थी वह भी तो अब मौजूद नहीं है।
क्या चुनाव से पहले शिफ्ट
हो पाएंगे नया रायपुर?
क्या दिसंबर 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री समेत अन्य मंत्रीगण एवं आला अफ़सर नया रायपुर में अपने बंगलों में शिफ्ट हो पाएंगे, यह सवाल अक्सर उभरकर सामने आते रहता है। ख़बर तो यही है कि नया रायपुर के सेक्टर 24 में मुख्यमंत्री समेत अन्य मंत्रियों के बंगलों का निर्माण 60 से 70 प्रतिशत तक पूरा हो चुका है। फिर इसी साल मार्च महीने में प्रदेश सरकार के बजट पेश होने के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि नये रायपुर में बसाहट लाने पहले तो मंत्रियों व अफ़सरों को वहां शिफ्ट होना होगा। इससे लगता तो यही है कि चुनाव से पहले मंत्रीगण व बड़े अफ़सर वहां शिफ्ट हो सकते हैं। सीएम हाउस एवं अन्य मंत्रियों के बंगले बन जाना सरकार के इस कार्यकाल में तो संभव है लेकिन नई विधानसभा एवं नया राज भवन अगली सरकार आने के बाद ही बन पाएगा यह साफ़ नज़र आ रहा है। राज भवन का काम अभी 25 से 30 प्रतिशत तक ही पूरा हुआ है। वहीं नये विधानसभा भवन के शिलान्यास को कुछ ही समय हुआ था कि 2021 का कोरोना लॉकडाउन सामने आ गया। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत की दिली तमन्ना रही थी कि उनके अध्यक्ष रहते हुए में विधानसभा का एक सत्र नये विधानसभा भवन में हो जाता, लेकिन निर्माण का काम ही पीछे हो गया।
ड्रग्स में भी छत्तीसगढ़ आगे
ड्रग्स के मामले में पंजाब बदनाम रहा है। इस पर ‘उड़ता पंजाब’ नाम से फ़िल्म भी बनी थी। जब यह फ़िल्म आई थी तो बहुत से लोग ‘डोलता छत्तीसगढ़’ शब्द का इस्तेमाल करने से पीछे नहीं रहे थे। वज़ह थी शराब। शराब के मामले में छत्तीसगढ़ पड़ोसी राज्यों मध्यप्रदेश, ओड़िशा, झारखंड एवं तेलंगाना को पहले ही पीछे छोड़ चुका है। अब तो ड्रग्स के मामले में भी छत्तीसगढ़ आगे निकला जा रहा है। राजधानी रायपुर के नालंदा परिसर के पास छात्रों को ब्राउन शुगर उपलब्ध कराते 3 युवक गिरफ्तार हुए। नालंदा परिसर पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय के पास स्थित है। साइंस, इंजीनियरिंग, आयुर्वेदिक एवं संस्कृत ये सभी कॉलेज नालंदा परिसर के आसपास हैं। नालंदा परिसर के आसपास छात्र-छात्राओं के लिए सरकारी हॉस्टल तो हैं, साथ ही बहुत से प्राईवेट हॉस्टल भी हैं। नालंदा परिसर के आसपास की सारी कॉलोनियां छात्र-छात्राओं से भरी पड़ी हैं। ऐसे इलाके में जब आसानी से ड्रग्स पहुंच रहा हो तो कल्पना की जा सकती है कि रायपुर शहर कहां पहुंच रहा है या पहुंच चुका है। ड्रग्स सप्लाई में 3 लोगों की गिरफ्तारी को कुछ ही घंटे हुए थे कि तेजी से एक वीडियो वायरल हुआ, जो कि राजधानी रायपुर का ही है। हाल ही में बनाए गए इस वीडियो में नज़र आ रहा है कि देर रात युवक युवतियां सिगरेट, बियर एवं शराब पीते हुए पूरी मस्ती में झूम रहे हैं।
नेटवर्क प्राब्लम ‘भूलन’ में ही
नहीं बल्कि हकीक़त में भी
हिन्दी-छत्तीसगढ़ी मिक्स फ़िल्म ‘भूलन द मेज़’ का हाल ही में सिनेमाघरों में प्रदर्शन हुआ है। डायरेक्टर मनोज वर्मा व्दारा निर्देशित इस फ़िल्म को आंचलिक भाषा की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। फ़िल्म के एक सीन में दिखाया गया है कि छत्तीसगढ़ के महुआभाठा गांव में जिला प्रशासन का एक बड़ा अफ़सर पहुंचा होता है। उसके मोबाइल पर कॉल आता है, लेकिन नेटवर्क के प्रॉब्लम के कारण बातचीत में बाधा होती है। तब गांव का मुखिया उस अफ़सर को बताता है कि नेटवर्क पाने के लिए दीवाल पर लगी लकड़ी की उस सीढ़ी में चढ़कर बात करनी होगी। फ़िल्म में इस सीन को एक करारे व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है, लेकिन आज भी छत्तीसगढ़ के कई गांवों की यही हकीक़त है। आदिवासी बहुल सरगुजा संभाग के कई ऐसे गांव हैं जो मोबाइल नेटवर्क नहीं होने की समस्या से आज भी जूझ रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या वहां के उदयपुर ब्लाक में आने वाले गांवों में है। कहीं पर ग्रामीण ऊंचे पेड़ पर चढ़कर बात करते दिख रहे होते हैं तो कभी पहाड़ों पर चढ़कर बात करना होता है। कोरोना लॉकडाउन के समय जब स्कूलें बंद थीं तो छात्रों को ऑन लाइन पढ़ाई के लिए पहाड़ों पर जाकर बैठना पड़ता था।
सिब्बल के कांग्रेस छोड़ने से
खुश हैं छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी
देश के जाने-माने वकील कपिल सिब्बल के कांग्रेस से इस्तीफ़ा देने की चर्चा छत्तीसगढ़ में भी जोरों पर रही। राजधानी रायपुर के अधिकांश पुराने कांग्रेसी कहते नज़र आए कि सिब्बल का कांग्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी की तरफ देखना कोई बड़ा नुकसान नहीं बल्कि हमारे लिए फ़ायदेमंद है। इसलिए कि सिब्बल कभी राम को काल्पनिक चरित्र कह दिया करते थे तो कभी राम सेतु के अस्तित्व को नकार दिया करते थे। राम थे या नहीं थे, या फिर राम सेतु था या नहीं यह अलग बात है, लेकिन सिब्बल ऐसे गंभीर मुद्दों पर जो विवादास्पद प्रतिक्रियाएं देते रहे उससे कहीं न कहीं पार्टी के लिए मुश्किलें ही खड़ी करते रहे थे।
कारवां @ अनिरुद्ध दुबे, सम्पर्क- 094255 06660