पिता की अंतिम इच्छा पूरी करने बेटियों ने दी चिता को मुखाग्नि
कोरबा 29 मई। आमतौर पर समाज में यह रूढ़िवादी परंपरा आज भी व्याप्त है कि पिता के चिता को बेटा ही मुखाग्नि देगा। इस पुरातन पंथी विचार धारा के बंधन को तोड़ते हुए तीन में से दो बहनों ने बेटा बन कर अपने दिवंगत पिता का अंतिम संस्कार किया। हिम्मतवाली बेटियों को फर्ज निभाते देख मुक्तिधाम पहुंचे लोगों की आंखे नम हो गई।
सीतामढ़ी निवासी गुजराती पाटीदार समाज के जितेंद्र रामजी भाई पटेल लंबे समय से अस्वस्थ थे। इलाज के दौरान शुक्रवार को रायपुर के निजी अस्पताल में उनका देहांत हो गया। जब उनका पार्थिव शरीर घर लाया गया तब लोगों में यह कौतूहल बना हुआ था कि आखिर दिवंगन पटेल की चिता को मुखाग्नि कौन देगा। दरअसल जितेंद्र सीतामढ़ी में निवासरत थे। जहां उनका छोटा सा व्यवसाय है। जितेंद्र काफी समय से बीमार थे जितेंद्र की तीन बेटियां हैं। बड़ी बेटी अंजली की शादी रायपुर में हो चुकी है। दूसरी बेटी गुंजन महाविद्यालय द्वितीय वर्ष की छात्रा है। सबसे छोटी बेटी हरसिद्धि सातवीं कक्षा में अध्ययनरत है। अंजलि ने बताया कि हमारे पिता अक्सर कहते थे बेटियां बेटों के ही समान है। मुझे कुछ हुआ तो मेरी बेटियां ही बेटों का फर्ज अदा करेंगी। जितेंद्र के बड़े भाई ने बताया कि छोटे भाई का कोई पुत्र नहीं है, लेकिन उन्होने इसकी कमी कभी महसूस नहीं की। बेटा-बेटी एक सामान की मान्यता के अनुसार वे हमेशा तीनों बेटियों को ही अपना बेटा मानते थे। उनकी इच्छा के अनुसार बेटियों ने चिता को मुखाग्नि दी है। परिवार ने मिलकर यह निर्णय लिया है। यही नहीं घर से मोती सागर पारा तक निकली अंतिम यात्रा में बहनों ने पिता की अर्थी को कांधा देकर बेटों जैसा फर्ज निभाया।