भगवान कृष्ण और सुदामा के जैसी होनी चाहिए दोस्ती : प्रेमा शुक्ला

श्रीमद्भागवत गीता ज्ञान सप्ताह का हुआ समापन

कोरबा श्रीमद् भागवत ज्ञान सप्ताह का आयोजन के अंतिम दिन महामृत्युंजय महादेव मंदिर निगम कॉलोनी निहारिका में भागवताचार्य डॉक्टर प्रेमा शुक्ला के द्वारा भागवत में भगवान कृष्ण और सुदामा की दोस्ती के बारे में विस्तार से बताया । भागवताचार्य डॉ प्रेमा शुक्ला ने कृष्ण भगवान और सुदामा के दोस्ती के बारे में बताते हुए कहा कि सुदामा बहुत ही गरीब थे वो अपनी पत्नी और 5 बच्चे के साथ रहते थे। और भीख मांग कर अपना गुजारा कर रहे थे वो सिर्फ 5 घर मे भिक्षा मांगते थे। सुदामा की पत्नी सुशीला को किसी ने बताया कि भगवान द्वारकाधीश कृष्ण और सुदामा की बहुत अच्छी दोस्ती थी, दोनों एक साथ गुरुकुल में पढ़ाई किए हैं। द्वारकाधीश महाराजा कृष्ण सभी ब्राह्मणों को अधिक से अधिक दान करते हैं। उसके बाद घर में आकर सुशीला सुदामा को कहते हैं कि आप अपने दोस्त से सहयोग ले लो क्योंकि हमारी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है और वह कृष्ण आपके सखा आपकी मदद करेंगे।

सुदामा पैदल द्वारका पूरी के लिये निकल जाते हैं चलते चलते उनके पैर में कांटा चुभ गया फिर एक जगह पेड़ के नीचे बैठ गए। तभी उनका कांटा एक ग्वाला पैर से निकाला और उसके बाद सुदामा को राहत महसूस हुई और उसके बाद पेड़ के नीचे सो गए। सुबह उठे तो वह द्वारकापुरी पहुंच गए थे। फिर सुदामा द्वारकाधीश के महल में जाकर द्वारपालों से कहते हैं कि मुझे कृष्ण से मिलना है। तो द्वारपाल मना करते हुए कहते हैं यहां कोई कृष्ण नहीं रहता यहाँ द्वारकाधीश जी रहते हैं। सुदामा कहते हैं कृपया एक बार उनसे ही मिला दो। बहुत निवेदन करने के बाद द्वारपाल जाकर द्वारकाधीश भगवान को सुदामा के बारे में बताते हैं और जैसे सुदामा का नाम भगवान कृष्ण सुनते हैं। वे दौड़े चले आते हैं,और सुदामा को गले लगा लेते हैं। उसके पश्चात अपने महल ले आते हैं और अपने सिहांसन में बैठाते हैं और रोते हुए अपने आंसुओं से उनके पैर को धुलाते हैं । फिर 56 प्रकार के भोजन कराते है।

सुदामा को भोजन करने मे कोई स्वाद नहीं आ रहा था । वे अपने भुखे बच्चों को याद कर रहे थे। भोजन के बाद भगवान कृष्ण सुदामा से कहते है कि भाभीजी क्या भेजी है कह कर उनका पोटली हाथ से छीन कर दो मुट्ठी चावल खाते हैं और पूरा सुदामा नगरी दे देते हैं। भगवान कृष्ण को रुकमणी मना करती है । उसके बाद सुदामा को विदाई देते हैं । सुदामा वापस जाते जाते सोचते हैं कितने बड़े द्वारकाधीश और मुझे कुछ भी नहीं दिया हैं । मैं सुशीला को क्या बताऊंगा। सुदामा जाते जाते थक जाते हैं, पेड़ के नीचे सोते हैं। भगवान कृष्ण की लीला के कारण उठते हैं तो अपने घर के पास पहुंच जाते हैं। और उसके बाद सभी से पूछते हैं यहां पर मेरा घर था वो कहां चला गया। तो सभी लोग बताते हैं यह सुदामा की नगरी है यह आप ही की नगरी हैं। उसके बाद आकर अपनी पत्नी सुशीला और बच्चों से मिलते हैं जिनके पास सोना चांदी हीरे मोती आ जाते हैं। जो छोटा सा झोपड़ी वह महल बन जाता है । तो हमेशा कृष्ण सुदामा जैसी दोस्ती होनी चाहिए।

इस अवसर पर अखिलेश शुक्ला, पी के झा, संजय तिवारी, अंकित पाठक, संदीप शर्मा, राघव कुमार, शिव निषाद, देव कुमार, आदित्य तिवारी, श्रीमती मनीषा गिरी गोस्वामी, श्रीमती किरण तिवारी, श्रीमती आकांक्षा शुक्ला , श्रीमती मंजू सोनी, श्रीमती सरिता शांडिल्य, श्रीमती कामिनी वर्मा , श्रीमती पूनम सतपति एवं महामृत्युंजय महिला मंडल नगर निगम कॉलोनी निहारिका कि सभी कार्यकर्तायें उपस्थित थे।

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