मिर्ची @ गेंदलाल शुक्ल

हर बुधवार

पत्थरबाज नेता और ननकीराम कंवर

नेता किसी भी पार्टी का हो, पद पर आने के बाद उसे पत्थरबाजी का शौक चढ़ ही जाता हैै। पिछले सात वर्षों से शहर के एक कांग्रेसी को पत्थरबाजी का शौक चढ़ा हुआ है। उनका यह शौक नगर निगम कोरबा को भारी पड़ रहा है। नेता जी खाना-पीना छोड़कर पत्थरबाजी के लिए दौड़ लगा रहे हैं। निगम क्षेत्र का कोई भी कोना- उनके नाम के पत्थर से वंचित नहीं रह गया है। कदम-कदम पर पत्थर। चारों ओर पत्थर ही पत्थर। सूबे के मुख्यमंत्री के नाम पर उतना पत्थर छत्तीसगढ़ में नहीं मिलेगा, जितना पत्थर इस कांग्रेस नेता के नाम का कोरबा नगर निगम क्षेत्र में शोभायमान हो रहे हैं। काम हुआ तो पत्थर, नहीं हुआ तो पत्थर। जहां जाओ पत्थर दिखना चाहिये। पत्थर नहीं दिखने पर बेचैनी छा जाती है। तुरन्त पत्थरबाजी का शौक पूरा करने फरमान जारी हो जाता है। नेताजी पत्थरों में ही अमर हो जाना चाहते हैं। इससे पहले भाजपा नेताओं ने भी अपनी पत्थरबाजी का शौक पूरा किया। लेकिन उनमें कांग्रेस नेता जितना जज्बा और जुनून नहीं था।

उधर कोरबा जिले में एक और नेता हैं- ननकीराम कंवर। ये महीने के तीसों दिन गांव-गांव भटकते रहते हैं। आये दिन कहीं भूमि पूजन तो कहीं लोकार्पण करते रहते हैं। लेकिन उन्हें पत्थरबाजी का जरा भी शौक नहीं है। न कभी भूमि पूजन में पत्थरबाजी करते हैं और ना ही लोकार्पण में। उनके सिवा स्व. प्यारेलाल कंवर और बोधराम कंवर भी जिले के बड़े नेता रहे हैं। डॉ. चरणदास महंत अविभाजित मध्य-प्रदेश के साथ ही केन्द्रीय मंत्री भी रहे हैं। लेकिन उन्होंने पत्थरबाजी का शौक कभी नहीं पाला। इन सबके नाम के पत्थर गिने-चुने ही मिलेंगे। न तो ये कभी शासन के खजाने पर बोझ बने और ना ही साडा कोरबा अथवा नगर निगम कोरबा पर।

गरीबी रेखा से नीचे के करोड़पति

कोरबा जिला ऊर्जा के लिए ही नहीं, अजूबों के लिए भी जाना जाता है। समय-समय पर तरह -तरह के अजूबे नमूदार होते हैं। आम-जनता चन्द रोज चटखारे लेकर चर्चा करती है फिर भूल जाती है। लोगों की इस आदत को सब समझने लगे हैं। शायद इसीलिए लोग, पूरी दबंगई के साथ अजीबो-गरीब कारनामों का अंजाम देने से नहीं चुकते। अब कलेक्टर रानू साहू को ऐसे ही अजूबों से रूबरू होना पड़ गया है। जिले के गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों ने करोड़ों का जमीन खरीद ली है। कलेक्टर ने जिनका नाम गरीबी रेखा सूची में अंकित पाया और जिन्हें बी. पी. एल. राशन कार्ड बनाकर दिया, उन लोगों ने जिले में करोड़ों रूपयों की जमीनें खरीद ली। कलेक्टर ने अधिक मुआवजा के लिए अंजामदिये गये इस कारनामें की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करायी है। देखना है कब तक, क्या कार्रवाई होती है? लेकिन तब तक इनका बीपीएल राशन कार्ड वैधानिक रहेगा और ये शासन का राशन मुफ्त में हासिल नहीं करते रहेंगे। राशन कार्ड निरस्त हो जायेगा, तो बेचारे गरीब करोड़ पतियों का परिवार भूखों नहीं मर जायेगा? वैसे शहर सहित जिले में चर्चा तो यह है, कि इन गरीबों के नाम पर राज्य सरकार के एक दबंग सिपहसालार ने अपना कालाधन खपाया है?

मिर्ची @ गेंदलाल शुक्ल, सम्पर्क- 098271 96048

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