कांग्रेस में बवाल: पहली बार सोनिया गांधी के नेतृत्व पर शुरू हुए सवाल

नईदिल्ली 30 सितम्बर I पंजाब में मचे घमासान से कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी की मुसीबत बढ़नी शुरू हो गई है। पहली बार उनके नेतृत्व पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं। कांग्रेस के ही कई दिग्गज नेताओं ने अपनी पार्टी में मचे घमासान के लिए नेतृत्व को कठघरे में ला खड़ा किया है। सवाल कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी के कामकाज की शैली पर भी है। हालांकि कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि इसमें कुछ भी पार्टी विरोधी नहीं है और यह कांग्रेस को ही मजबूत बनाने की पहल है। पार्टी के एक पूर्व महासचिव कहते हैं कि अब यह जरूरी हो गया है कि कुछ ठोस कदम उठाए जाएं नहीं तो पार्टी के अस्तित्व को बचाना मुश्किल हो जाएगा।

फिर मुखर हुए सिब्बल, आजाद, मनीष तिवारी और कैप्टन अमरिंदर सिंह

कपिल सिब्बल पिछले कुछ समय के दौरान लगातार कई बार मुखर हो चुके हैं। राजस्थान में सचिन पायलट की नाराजगी के बाद उन्होंने कहा था कि सभी काले घोड़े चले जाएंगे तो पार्टी कैसे चलेगी। कपिल सिब्बल लगातार कांग्रेस की मजबूती और इसके अंदरुनी मामलों को लेकर सक्रिय हैं। अब कपिल सिब्बल ने कहा है कि हमारे लोग हमको छोड़कर जा रहे हैं। करीबी भी छोड़कर चले गए। कपिल सिब्बल ने साफ कहा कि आखिर कौन फैसले ले रहा है? उन्होंने सधे शब्दों में बिना नाम लिए राहुल गांधी पर निशाना साधा। यह निशाना प्रियंका गांधी वाड्रा पर भी था और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को उन्होंने कठघरे में खड़ा कर दिया। सिब्बल ने दो बड़ी मांग की। पहली तो यह कि कांग्रेस कार्य समिति की जल्द बैठक बुलाई जाए। दूसरे, पार्टी में चुना हुआ अध्यक्ष हो। उन्होंने कहा कि वह पार्टी का नुकसान होते हुए नहीं देख सकते और न ही वह जी हुजूरी वाले नेता हैं।

गुलाम नबी आजाद ने भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर जल्द कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाने की मांग की है। आजाद भी आहत हैं। कई अवसरों पर उनका दर्द छलका है। आजाद भी उन 23 नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा था और पार्टी में सुधार की बात की थी। आजाद के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद मनीष तिवारी भी पिछले कुछ समय से लगातार मुखर हैं। मनीष तिवारी को पंजाब में जिस तरह से घटनाक्रम चले हैं और चल रहे हैं, बिल्कुल गले के नीचे नहीं उतर रहा है। वह लगातार अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं।

इस पूरे मामले में कैप्टन अमरिंदर सिंह की भूमिका भी कम नहीं है। इस्तीफा देने के बाद से कैप्टन अमरिंदर सिंह लगातार कांग्रेस और खासकर राहुल-प्रियंका पर खुला हमला बोल रहे हैं। कैप्टन ने बुधवार को गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करके नए संकेत देकर कांग्रेस को और बेचैन कर दिया है। कैप्टन के तौर तरीके से कयास है कि यदि पार्टी ने ऑपरेशन डैमेज कंट्रोल नहीं किया तो वह पंजाब में बड़ा झटका दे सकते हैं।

कांग्रेस को खल रही है अहमद पटेल की कमी

पार्टी के पूर्व महासचिव कहते हैं कि ये दु:खद है कि जब पार्टी को अहमद पटेल जैसे नेता की जरूरत है तो वह आज हमारे बीच नहीं हैं। वह कटाक्ष करते हैं कि अभी पार्टी जिस दौर से गुजर रही है, उसे केसी वेणुगोपाल, भक्त चरण दास जैसे नेताओं के सहारे नहीं संभाला जा सकता। बेंगलुरु से पार्टी के एक राष्ट्रीय नेता कहते हैं कि कुछ तो करना पड़ेगा। पिछले कुछ महीनों में जिस तरह के निर्णय हुए वह वास्तव में किसी विडंबना से कम नहीं हैं। इनमें पंजाब का मामला सबसे प्रमुख है। सभी मानते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती खड़ी है। किसी को उनके नेतृत्व से एतराज नहीं है, लेकिन जिस तरह से चीजें चल रही हैं, वह पार्टी के हित में नहीं हैं।

अपनी कार्यशैली से निशाने पर राहुल-प्रियंका
पार्टी के अंदरुनी मंच पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी पर हमले बढ़ सकते हैं। उनके कुछ फैसले और हस्तक्षेप को लेकर पार्टी के नेताओं में भारी नाराजगी है। एक वरिष्ठ नेता बिना नाम लिए कहते हैं कि प्रियंका गांधी ने राजस्थान में हस्तक्षेप किया। उन्होंने ही पंजाब में भी हस्तक्षेप किया और नतीजा सामने है। पार्टी के भीतर यह एक बड़ा सवाल है कि आखिर फैसले कौन ले रहा है? किस आधार पर और किसकी इजाजत से तथा किस हैसियत से ले रहा है? एक पूर्व केंद्रीय मंत्री कहते हैं कि कांग्रेस को संगठन का चुनाव अब नहीं टालना चाहिए। इसकी जरूरत भी है और यही सही समय भी है।

क्या है सोनिया गांधी की मुश्किल?

2019 में लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेकर राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद सोनिया गांधी ने पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली है। लेकिन अध्यक्ष न होते हुए भी पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पहले की तरह ही पार्टी के कामकाज, निर्णय में हस्तक्षेप कर रहे हैं। आज भी पार्टी के नेताओं के बीच में उनका रुतबा उसी तरह बना है और उनसे मुलाकात का समय मिलना काफी मुश्किल माना जाता है। पार्टी के भीतर और बाहर आम धरणा है कि कांग्रेस अध्यक्ष अपना उत्तराधिकार केवल राहुल गांधी को सौंपना चाहती हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष की दूसरी सबसे कमजोर कड़ी अब बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा साबित हो रही हैं। प्रियंका कांग्रेस महासचिव और उ.प्र. की प्रभारी हैं। पिछले पांच साल से वह उ.प्र. और राज्य के बाहर भी सक्रिय हैं, लेकिन उ.प्र. में कांग्रेस के अभियान को दावेदारी के स्तर तक लाने में सफलता नहीं मिल पाई है। अपने निजी परफार्मेंस के अलावा प्रियंका गांधी पार्टी के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करती हैं, असंतुष्टों को मनाती हैं और लोगों की भागीदारी तय करने में भूमिका निभाती हैं।

एक पूर्व केंद्रीय मंत्री का कहना है कि आखिर वह पार्टी की इकलौती इस तरह की महासचिव क्यों हैं? वह भी तब जब पार्टी में कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष भी नहीं है। दरसल, कांग्रेस अध्यक्ष के सामने सबसे बड़ी दुविधा यह है कि पार्टी में जहां बड़े जनाधार वाले नेता नहीं रह गए, वहीं अब पार्टी में कामकाज के निर्णय और इसको लेकर नेताओं के हमले का रुख अब परिवार के सदस्यों की तरफ मुड़ने लगा है।

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