कंकालक वृक्षों को पहुंचा रहा क्षति, टीआरएफआई ले रहा जायजा

कोरबा 28 सितंबर। अलग-अलग कारणों से पेड़ पौधों में कई प्रकार से कीट प्रकोप होता है और उन्हें काफी नुकसान बर्दाश्त करना होता है । लगातार इस तरह की समस्याएं विभिन्न क्षेत्रों में सामने आ रही हैं। कोरबा के नर्सरी और अन्य फॉरेस्ट एरिया में सागौन की बड़ी मात्रा कनकालक रोग की चपेट में है। जबलपुर से आए विशेषज्ञ इसका उन्मूलन करने में जुटे हुए हैं। उनका मानना है कि ऐसे प्रयोग से समस्या का समाधान हो सकता है।

इमारती लकडिय़ों में सौगान का काफी महत्व है। अनेक कार्यों में इसका उपयोग किया जाता है। इसीलिए छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र सहित अनेक राज्यों में इस प्रजाति के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। खबर के अनुसार अलग-अलग कारणों से इन वृक्षों में कीट प्रकोप हो रहा है। जिसके चलते इनकी बढ़ोतरी रुक जाती है और पत्तों से लेकर तने और टहनियों में काफी क्षति होती है। कोरबा वन मंडल के अंतर्गत बड़े हिस्से में इस तरह की परेशानी पिछले कुछ दिनों से बनी हुई है। इसे लेकर स्थानीय अमला समस्या में उलझा हुआ है। उसके द्वारा उच्च अधिकारियों को इसकी जानकारी दी गई। जिस पर जबलपुर स्थित टॉपिकल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट से एक टीम यहां पर पहुंची है। टीम ने प्रभावित क्षेत्र का जायजा लेने के साथ स्थिति को देखा। वैज्ञानिक शालिनी धोते ने बताया कि वृक्षों में होने वाले कीट प्रकोप को लेकर लगातार काम किया जा रहा है । कंकालक के नाम से भी से पहचाना जाता है। यह अपनी और प्रकृति के अंतर्गत कुल मिलाकर वृक्षों को नुकसान पहुंचाता है।

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