शिखा यानी चोटी रखने के कारण और ये हे वैज्ञानिक महत्त्व
चोटी या शिखा की परिभाषा, शिखा का अर्थ
मुंडन के समय सिर के बीचो बीच छोड़ा हुआ एक बालों का गुच्छा जिसे फिर कभी नहीं कटाया जाता है, उसे शिखा कहा जाता है। यह शिखा हिंदुओं का एक प्रतीक चिन्ह भी है जिसे चोटी, चुटिया आदि भी कहा जाता है। शिखा शब्द की उत्पत्ति शिखी शब्द से हुयी है जिसका एक अर्थ अग्नि है वही दूसरा अर्थ ज्ञान है और शिखा रखने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।
शिखा क्या है और कहा होती है
शिखा बालों का एक गुच्छा है जो मनुष्य के सिर में उस स्थान पर होता है जहां उस का अधिपति मर्म क्षेत्र होता है। यह अधिपति मर्म क्षेत्र वह स्थान है जहां पर व्यक्ति की समस्त नाड़ियों का मेल होता है और यह अधिपति मर्म स्थान ही शरीर को संतुलित करता है।
शिखा का आकार
धर्मं ग्रंथो और शास्त्रों के अनुसार शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के समान होना चाहिए, न उससे अधिक और न ही उससे कम। कहा जाता है कि शिखा का आकर इससे कम या ज्यादा होने पर वह ठीक से काम नहीं कर पाती है।
शिखा क्यो बांधी जाती है / शिखा बंधन क्यों
शिखा को जीवन का आधार माना गया है, मस्तिष्क के भीतर जहां पर बालों का आवर्त या भंवर होता है उस स्थान पर नाड़ियों का मेल होता है, जिसे अधिपति मर्म कहा जाता है। यह स्थान बहुत ही नाजुक होता है जिस पर चोट लगने पर व्यक्ति की तुरंत मृत्यु हो सकती है। शिखा में गांठ लगाने पर वह इस स्थान पर कवच के जैसे कार्य करती है, यह तीव्र सर्दी और गर्मी से इस स्थान को सुरक्षित रखने के साथ ही चोट लगने से भी बचाव करती है। शिखा बंधन मस्तिष्क की उर्जा तरंगों की रक्षा कर व्यक्ति की आत्मशक्ति बढ़ाता है।
पूजा पाठ के समय शिखा में गांठ लगाकर रखने से मस्तिष्क में संकलित ऊर्जा तरंगे बाहर नहीं निकल पाती है और वह अंतर्मुखी हो जाती है। इनके अंतर्मुखी हो जाने से मानसिक शक्तियों को पोषण, सद्बुद्धि, सद्विचार आदि की प्राप्ति वहीं वासना की कमी, आत्मशक्ति में बढ़ोतरी, शारीरिक शक्ति का संचार, अनिष्टकर प्रभाव से रक्षा, सुरक्षित नेत्र ज्योति, कार्यों में सफलता जैसे अनेक लाभ मिलते हैं।
शिखा कब बांधनी चाहिए
शास्त्रों के अनुसार संध्या विधि में संध्या से पूर्व गायत्री मंत्र के साथ शिखा बंधन का विधान है। किसी भी प्रकार की साधना से पूर्व शिखा बंधन गायत्री मंत्र के साथ होता है जो कि एक सनातन परंपरा है।
स्नान, दान, जप, होम, संध्या और देव पूजन के समय सीखा में गांठ अवश्य लगानी चाहिए।
मंत्र उच्चारण और अनुष्ठान करने के समय भी सीखा में गांठ मारने का विधान है, इसका कारण यह है कि गांठ मारने से मंत्र स्पंदन द्वारा उत्पन्न होने वाली समस्त ऊर्जा शरीर में ही एकत्र होती है!
शिखा बंधन मंत्र
वेसे तो गायत्री मंत्र के साथ शिखा बांधी जाती है लेकिन इस मंत्र के साथ भी शिखा बंधन किया जाता है
चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुव मे ।।
यानी कि जो चित्रस्वरूपी महामाया है, जो दिव्य तेजोमयी है, वह महामाया शिखा के मध्य में निवास करें और तेज में वृद्धि करें।
इस समय खोल देनी चाहिए या इस समय शिखा नही बंधी होनी चाहिए
धर्म ग्रंथों के अनुसार व्यक्ति को लघुशंका, दीर्घशंका, मैथुन एवं किसी शव यात्रा को कंधा देते वक्त शिखा को खोल देना चाहिए।
शिखा रखने के महत्व
शिखा ज्ञान प्राप्त करने का और अपनी देह को स्वस्थ रखने का उत्तम माध्यम है। सुश्रुत संहिता के अनुसार मस्तक के ऊपर सिर पर जहां भी बालों का भंवर होता है, वहां संपूर्ण नाड़ियों व संधियों का मेल होता है, जिससे इस स्थान को अधिपतिमर्म कहा जाता है।
मन बुद्धि और शरीर को नियंत्रण करने में भी सहायक
शरीर के पांच चक्रों में सहस्त्रार चक्र इसी स्थान पर होता है जहा शिखा रखी जाती है। शिखा रखने से सहस्त्रार चक्र को जागृत करने और शरीर बुद्धि व मन को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है।
जिस स्थान पर चोटी या शिखा होती है वह स्थान अन्य जगहों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होता है वहीं पर सुषुम्ना नाड़ी भी होती है। इसी स्थान के कारण वातावरण से उस्मा व अन्य ब्रह्मांड की विद्युत चुंबकीय तरंगे मस्तिक से सरलता से आदान प्रदान कर लेती है। इस स्थान पर शिखा रखने से मस्तिष्क के यथोचित उपयोग के लिए नियंत्रित ताप प्राप्त होता है।
शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक
शिखा या चौटी का हल्का का दबाव पड़ने से रक्त प्रवाह भी तेज रहता है, जो मस्तिष्क को बहुत ही फायदा पहुंचाता है। शिखा रखने से व्यक्ति प्राणायाम अष्टांग योग आदि योगिक क्रियाओं को ठीक प्रकार से कर सकता है। शिखा रखने से व्यक्ति की नेत्र ज्योति सुरक्षित रहती है, वही यह रखने से व्यक्ति स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु रहता है।
शिखा कुंडली पर भी प्रभाव डालती है जिससे जिस किसी भी व्यक्ति की कुंडली में राहु खराब या निम्न स्तर पर हो कर खराब असर दे रहा होता है तो उसे माथे पर तिलक और सिर पर चोटी रखने की सलाह दी जाती है।
शिखा रखने पर देवता भी करते है मनुष्य की रक्षा।
सर पर चोटी रखने के वैज्ञानिक महत्व
विज्ञान के अनुसार शिखा रखे जाने का स्थान मस्तिष्क का केंद्र होता है। इसी स्थान से बुद्धि, मन और शरीर के अंगों को नियंत्रित किया जाता है इसी कारण स्थान पर शिखा या चोटी रखने से मस्तिष्क का संतुलन बना रहता है। शिखा रखने से इस स्थान पर होने वाले सहस्त्रार चक्र को जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है।
वेद ही नही विज्ञान ने भी बताया है *
शिखा का महत्व
शिखा रखने के महत्व को न केवल वेद ने बल्कि विज्ञान ने भी अनेक अवसरों पर प्रमाणित किया है। शिखा सुषुम्ना की रक्षा करती है एवं इससे स्मरण शक्ति का भी विकास होता है साथ ही यह मानसिक रोगों से भी बचाव करती है। शिखा के कसकर बंधने से मस्तिष्क पर दबाव बनता है जिससे रक्त का संचार सही तरीके से होता है। शिखा रखने के स्थान पर पिट्यूटरी ग्रंथि होती है जिससे उस रस का निर्माण होता है जो पूरे शरीर और बुद्धि को तेज, संपन्न, स्वस्थ और चिरंजीवी बनाता है। शिखा रहने से वह स्थान स्वस्थ रहता है।
शिखा या चोटी रखने के कारण
- परंपरा के मुताबिक हिंदू ब्राह्मण के बच्चे को जब दीक्षा देते हैं या संस्कारित करते हैं तो उनके सिर के बाकी के बाल उतरवाकर एक शिखा छोड़ देते हैं। ब्राह्मण के बच्चे साधना से पहले अपनी चोटी को पकड़कर उसे घुमाते, मोड़ते और खींचते हैं और सिर की चोटी को बांधने से पहले वह उस बिंदु पर पर्याप्त जोर डालते हैं।
- पहले के समय सभी ब्राह्मण हर दिन अपनी शिखा के बाल पकड़कर खींचते थे, रोजाना साधना से पहले वह शिखा को खींचकर कसकर बांध देते थे। माना जाता है कि ऐसा करने से साधना बेहतर होती थी और परमात्मा के प्रति गहरी भावना उत्पन्न होती थी।
- ब्राह्मण पुरुषों के सिर पर चोटी रखने का सबसे बड़ा कारण सुषुम्ना नाड़ी को बताया जाता है। कहा जाता है कि शिखा के ठीक नीचे यह नाड़ी होती है जो कपाल तंत्र की दूसरी खुली जगहों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील भी होती है।
- सिर पर शिखा रखकर आसानी से तापमान को नियंत्रित किया जा सकता हैयही बड़ी वजह है कि प्राचीन काल से ही सिर पर चोटी रखने का प्रचलन है। पहले के समय जो शिखा नहीं रखते थे वह व्यक्ति अपने सिर पर पगड़ी बांध कर रखते थे।
- प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में पांच चक्र होते हैं, जिसमें से सहस्त्रार चक्र इसी स्थान पर होता है इस जगह पर चोटी रखने से यह चक्र जागृत होता है जिससे मन और बुद्धि नियंत्रित रहती है।
- शरीर के जिस भाग पर चोटी रखी जाती है वह स्थान बौद्धिक क्षमता, बुद्धिमता और शरीर के विभिन्न अंगों को नियंत्रित करता है साथ ही मस्तिष्क की कार्य प्रणाली को सुचारू रूप से रखने में भी सहायता करता है।
- सिर पर शिखा को कसकर बांधने की वजह से मस्तिष्क पर दबाव बनता है और रक्त का संचार सही तरीके से होता है।
- सिर पर शिखा रखने से व्यक्ति योगासनों को भी सही तरीके से कर पाता है एवं इसकी सहायता से आंखों की रोशनी भी सही रहती है और वह शारीरिक रूप से स्वस्थ एवं सक्रिय रहता है।