भारत: रामप्पा मंदिर विश्व धरोहर में शामिल, जानें मंदिर से जुड़े सभी महत्वपूर्ण तथ्य
नईदिल्ली 11 सितम्बर। यूनेस्को ने तेलंगाना में स्थित 13 वीं सदी के काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर को विश्व धरोहर स्थल की मान्यता दे दी है।13वीं सदी में बना यह मंदिर आज भी मजबूती के साथ खड़ा है। जबकि इसके बाद में बने मंदिर खंडहर हो चुके है। वहीं इस मंदिर को विश्व धरोहर में शामिल करने के लिए सरकार द्वारा वर्ष 2019 के लिए यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में एकमात्र नामांकन के लिए प्रस्तावित किया गया था। सावन के पावन महीने में इस शिव मंदिर को विश्व धरोहर में शामिल किए जाने का स्वागत किया जा रहा है।
उप-राष्ट्रपति और पीएम मोदी ने दी बधाई
उप-राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तेलंगाना सहित समस्त देशवासियों को बधाई देते हुए मंदिर परिसर में जाकर इसकी भव्यता का प्रत्यक्ष अनुभव लेने का आग्रह किया।
उप- राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने ट्वीट कर कहा कि गौरव का विषय है कि तेलंगाना के पालमपेट स्थित, 13वीं सदी के काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर को यूनेस्को ने वैश्विक धरोहर के रूप में स्वीकार किया है। यह तेलंगाना की प्राचीन संस्कृति की समृद्धि का प्रमाण है। तेलंगाना के निवासियों की सृजनात्मकता का अभिनंदन करता हूं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंदिर की तस्वीरें साझा करते हुए ट्वीट किया, “उत्कृष्ट! सभी को बधाई, खासकर तेलंगाना की जनता को। प्रतिष्ठित रामप्पा मंदिर महान काकतीय वंश के उत्कृष्ट शिल्प कौशल को प्रदर्शित करता है। मैं आप सभी से इस राजसी मंदिर की यात्रा करने और इसकी भव्यता का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने का आग्रह करता हूं।”
मंदिर से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
रामप्पा मंदिर, 13वीं शताब्दी का अभियांत्रिकी चमत्कार है
आंध्र प्रदेश के काकतिया वंश के महाराजा गणपति देव सन 1213 में मंदिर निर्माण का आदेश दिया।
राजा गणपति देव के एक सेनापति रेचारला रुद्र ने मंदिर का निर्माण कराया था
मंदिर का निर्माण शिल्पकार रामप्पा ने किया।
यहां के स्थापित देवता रामलिंगेश्वर स्वामी हैं।
40 वर्षों तक मंदिर निर्माण करने वाले एक मूर्तिकार के नाम पर इसे रामप्पा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।
“ रामप्पा मंदिर” यह शायद विश्व का एक मात्र मंदिर है, जिसका नाम भगवान के नाम ना होकर उसके शिल्पी के नाम पर है।
मंदिर छह फुट ऊंचे तारे जैसे मंच पर खड़ा है, जिसमें दीवारों, स्तंभों और छतों पर जटिल नक्काशी से सजावट की गई है, जो काकतीय मूर्तिकारों के अद्वितीय कौशल को प्रमाणित करती है।
समय अनुरूप विशिष्ट मूर्तिकला व सजावट और काकतीय साम्राज्य का एक उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य है।
मंदिर परिसरों से लेकर प्रवेश द्वारों तक काकतीयों की विशिष्ट शैली, जो इस क्षेत्र के लिए अद्वितीय है।
दक्षिण भारत में मंदिर और शहर के प्रवेश द्वारों में सौंदर्यशास्त्र के अत्यधिक विकसित स्वरूप की पुष्टि करती है।
यूरोपीय व्यापारी और यात्री मंदिर की सुंदरता से मंत्रमुग्ध थे और ऐसे ही एक यात्री ने उल्लेख किया था कि मंदिर “दक्कन के मध्ययुगीन मंदिरों की आकाशगंगा में सबसे चमकीला तारा” था।
पुरातत्व वैज्ञानिकों ने भी मंदिर कि जांच में पाया है कि मंदिर अपनी उम्र के हिसाब से बहुत मजबूत है।
विशेषज्ञों ने अपनी जांच में पाया कि मंदिर के पत्थर का वजन बहुत हल्का है, उन्होंने पत्थर के उस टुकड़े को पानी में डाला तो वह टुकड़ा पानी में तैरने लगा।
रामप्पा मंदिर के पत्थरों में तो वजन बहुत कम है इस वजह से मंदिर टूटता नहीं।
भारत में धरोहर
1983 में पहली बार भारत के चार ऐतिहासिक स्थलों को यूनेस्को ने ‘विश्व धरोहर स्थल’ में शामिल किया था। ये चार स्थल थे – ताज महल, आगरा किला, अजंता और एलोरा गुफाएं, लेकिन आज पूरे भारत में कई विश्व विरासत स्थल हैं, जो विभिन्न राज्यों में स्थित हैं। यूनेस्को ने भारत के कई ऐतिहासिक स्थलों को विश्व विरासत सूची में शामिल किया है। वर्तमान में, भारत की कुल 39 साइटें विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं, जिनमें से 28 को सांस्कृतिक श्रेणी में, 7 प्राकृतिक और मिश्रित श्रेणी में 1 स्थान दिया गया है। भारत दुनिया की धरोहरों में छठे स्थान पर है।