छोड़ी धान की खेती, अब सामुदायिक बाड़ी में उगा रहे सब्जी
सरकार की योजना काम आई, हर महीने 80 हजार रूपए की कमाई
कोरबा 10 सितंबर। यदि सरकारी योजनाओं की सफलता का पैमाना उनका फायदा लेकर हितग्राहियों और उनके परिवार के जीवन स्तर में सुधार ही है, तो कोरबा जिले के लगभग 200 वनवासी इसके प्रत्यक्ष उदाहरण बन गए हैं। जिले में वन अधिकार मान्यता पत्रों से वनवासियों को उनकी लंबे समय से काबिज वनभूमि का मालिकाना हक देने की प्रक्रिया जारी है। इसी के तहत इस साल सुदुरवनांचलों में रहने वाले लगभग 200 वनवासियों को भी वनभूमि पर अधिकार मिला है। परंपरागत रूप से यह वनवासी पिछले कई सालों से इस भूमि पर काबिज होकर धान की खेती करते आए हैं। सिंचाई की सुविधा नहीं होने और पूरी तरह से मानसून पर आधारित धान की फसल का उत्पादन भी कभी इनके मन माफिक नहीं हुआ। अब जब जमीन का मालिकाना हक मिला तो शासन की अन्य योजनाओं का लाभ लेने का भी रास्ता खुल गया। कोरबा जिले के लगभग 200 हितग्राहियों ने अपनी ऐसी वनभूमियों पर अब धान की खेती करना बंद कर दिया है। विभिन्न योजनाओं के अभिसरण से वे सामुदायिक सब्जी बाड़ी के कॉन्सेप्ट पर खेती कर रहे हैं। इस कॉन्सेप्ट पर जिले में 280 एकड़ रकबे में 56 सामुदायिक सब्जी बाड़ियां विकसित की गई है। कोरबा विकासखण्ड में छह, करतला में 13, कटघोरा में 10, पोड़ी-उपरोड़ा में 14 और पाली विकासखण्ड में ऐसी 13 सामुदायिक बाड़ियों में किसान सब्जी उगा रहे हैं और 70 से 80 हजार रूपए महीने कमा रहे हैं।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के धान के बदले अन्य फसल लगाने पर भी शासकीय सहायता देने की योजना शुरू करने के बाद इन किसानों ने 189 एकड़ क्षेत्र में फलदार पौधों का भी रोपण कर लिया है। पौधों के बीच अंतरवर्ती फसल के रूप में सब्जी की खेती जारी है और खेतों से रोज सब्जी निकल रही है। उद्यान विभाग द्वारा तैयार की गई सामुदायिक बाड़ी विकास कार्ययोजना को मूर्तरूप देने के लिए खनिज न्यास मद, राष्ट्रीय बागवानी मिशन, कृषि विभाग, क्रेडा और मनरेगा का अभिसरण किया गया है। इन योजनाओं के अभिसरण से किसानों को सामुदायिक बाड़ी के फेंसिंग, नलकूप खनन कर सोलर पंप की स्थापना, ड्रिप, पावर ट्रिलर, पावर स्प्रेयर, मल्चिंग, वर्मी खाद, सब्जी और मसाला बीज आदि शासकीय मदद पर दिए गए हैं। शासकीय सहायता पाकर किसानों ने अपनी बाड़ियों में करेला, बैंगन, बरबट्टी, मिर्च, हल्दी की फसलें लगाई है। कृषि विभाग के अधिकारियों ने कुछ किसानों को इन सामुदायिक बाड़ियों में मूंगफली और उन्नत किस्म के धान की भी खेती का मार्गदर्शन दिया है। समूहों को अपनी फसल उत्पादन को भण्डारित करने के लिए सामुदायिक बाड़ियों में गोदाम भी बनाए गए हैं। हर रोज इन बाड़ियों से सात से आठ हजार रूपए की सब्जी निकल रही है। सब्जी के थोक खरीददार सीधे खेतों से ही ताजी सब्जियां हर दिन उठा रहे हैं। ऐसी ही बाड़ी लगाने वाले चिचोली गांव के दस किसानों ने पिछले एक महीने में सब्जियां बेचकर लगभग 80 हजार रूपए शुद्ध मुनाफा कमा लिया है।
शासन की विभिन्न योजनाओं के अभिसरण से हितग्राहियों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने और उनके तथा उनके परिवार के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने का यह मॉडल कोरबा जिले में सफल होता दिख रहा है। सामुदायिक बाड़ियों में आगे भी सरकारी योजनाओं से किसानों को लाभान्वित करते हुए बारहमासी रोजगार के प्रयास तेजी से किए जा रहे हैं। सब्जी की खेती के साथ फलोद्यान और फिर मुर्गी पालन, मछली पालन के लिए भी शासकीय मदद देने की योजना है। विभिन्न विभागों की योजनाओं को एक साथ एकीकृत रूप से क्रियान्वित करने से निश्चित ही दूरस्थ वनांचलों में रहने वाले वनवासियों और गरीब छोटे लघुसीमांत किसानों को तेजी से लाभ मिलेगा।