खमरछठ का पर्व पूरी आस्था और उत्साह से मनाया गया

रायपुर 29 अगस्त। महिलाओं का एक विशेष त्यौहार जो सावन के कुछ दिनों के बाद एवं जन्माष्टमी के दो दिन पहले आता है खमरछठ है। शनिवार को छत्तीसगढ़ में खमरछठ का पर्व पूरी आस्था और उत्साह से मनाया गया।

इस त्यौहार के पीछे पौराणिक मान्यता है कि इस दिन जो शादीशुदा महिला निर्जला उपवास रखती हैं उन्हें संतान की प्राप्ति होती है और जिनके संतान हैं वे उनके दीर्धायु की कामना को लेकर यह उपवास करती हैं। ऐसी मान्यता है कि नि: संतान विवाहित स्त्री अगर इस दिन व्रत रखें तो उनकी गोद भर जाती है।

इसी क्रम में छत्तीसगढ़ के गांवों से लेकर शहरों तक में अनेक जगहों, मोहल्लों, गलियों में महिलाओं ने खमरछठ का व्रत रखकर भगवान बलराम की पूजा अर्चना की। महिलाओं एवं बच्चों में खमरछठ के दिन खासा उत्साह देखा गया।

छत्तीसगढ़ की महिलाओं द्वारा वर्षा ऋतु में रखा जाने वाला व्रत (उपवास) को खमरछठ कहा जाता है। इस दिन महिलाएं सुबह के समय महुआ की लकड़ी की दातुन बनाकर दांत साफ करती हैं और महुआ की खरी से ही स्नान करती हैं। वे इस दिन हल (नांगर) से जुते हुए मार्ग पर नहीं चलती है।

उपवास की सामग्री में महुआ के पत्ते की थाली (पतरी), महुआ की लकड़ी का चम्मच, महुआ का तेल (टोरी तेल) उपयोग में लाया जाता है। लाई, धान, महुआ के सूखे फल, बटर, गेहूं, चना का भी विशेष महत्व होना बताया। परम्परा के अनुसार गांव में किसी के घर सगरी (कुंड) खोदा जाता है। वहां पर फिर बगीचा रुपी कुछ घास और पौधे लगाते हैं। उनमें कासी (घास की प्रजाति), अपामार्ग (चिड़चिड़ा), बेर, आम, चिरईया को किनारे में लगाया जाता है। फिर उत्साह के साथ पूजा की जाती है और खमरछठ की कथा सुनी जाती है।

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