कोरबा को मिला छत्तीसगढ़िया पुलिस अधीक्षक
कोरबा 1 जुलाई। जिला पुलिस अधीक्षक के पद पर राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ के मूल निवासी आई.पी.एस. भोजराम पटेल की पदस्थापना की है। छत्तीसगढ़ की ऊ र्जा की राजधानी कोरबा को अपनी स्थापना के दो दशक मेंं दूसरी बार छत्तीसगढ़िया पुलिस अधीक्षक मिला है। इससे पहले प्रथम पुलिस अधीक्षक के रूप में छत्तीसगढ़ के ही राजीव श्रीवास्तव पदस्थ किये गये थे। उनके बाद भोजराम पटेल जिले के दूसरे छत्तीसगढ़िया पुलिस अधीक्षक हैं। भोजराम पटेल के पदस्थ होने से जिले के छत्तीसगढ़िया नागरिकों में त्वरित न्याय मिलने की उम्मीद जगी है।
उल्लेखनीय है कि भोजराम पटेल कोरबा के नए एसपी के रूप में पदस्थ हुए हैं। गरीबी से निकलने वाले लोग चाहे जितनी भी ऊंचाइयों पर चले जाएँ वह ज़मीन से जुड़कर ही रहते हैं। उन्हें ना बहुत ज़्यादा ख़ुशी ना हीं बहुत ज़्यादा गम अपने रास्ते से हिला सकता है। क्योंकि वह हर परिस्थितियों को बहुत ही करीब से देख कर पले बढ़े होते हैं। ऐसे ही ग़रीबी से निकल कर एक आईपीएस अफसर बनने वाले की कहानी है।
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के तारापुर गाँव के रहने वाले एक युवा आईपीएस ऑफिसर भोजराम पटेल जिन्होंने हर चुनौतियों को स्वीकार करते हुए अपने माता-पिता के मेहनत को साकार किया। भोजराम पटेल के पिता जिन्होंने सिफ़र् प्रारंभिक कक्षा तक की पढ़ाई की है और उनकी माता अनपढ़ हैं। लेकिन फिर भी उन्होंने शिक्षा के ज़रूरत को समझा और अपने बेटे को पढ़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। उनके पास परिवार चलाने के लिए 2 बीघा ज़मीन के अलावा कुछ नहीं था। भोजराम ने अपने घर की स्थिति को देखते हुए पढ़ाई में मेहनत करनी शुरू की। आगे एक संविदा शिक्षक बने। वह शिक्षक तो बन गए लेकिन उनका सपना तो था एक ऑफिसर बनना। वह बताते हैं कि बचपन में जब उनके घर में अनाज या फिर कुछ भी खाने को नहीं होता था तब उनकी माँ खाने में अधिक मिर्च डाल देती थी, जिससे भूख कम लगे और कम खाने में ही भूख शांत हो जाए।
गांव के जिस सरकारी स्कूल से उन्होंने अपनी शिक्षा प्राप्त की, शिक्षक बनने के बाद भोजराम उसी स्कूल के बच्चों को शिक्षा देनी शुरू की। ताकि वह बच्चे भी आगे चलकर अपने जीवन में कुछ अच्छा करें। बचपन में पढ़ाई के दौरान भोजराम अपने माता-पिता के साथ खेतों में हाथ भी बटाया करते थे। भोजराम पटेल ने जब अपने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की उसके बाद उनका चयन शिक्षा कर्मी वर्ग 2 के पद पर हुआ तब शिक्षक बनकर उन्होंने मिडिल स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। स्कूल में छुट्टी होने के बाद वह घर आकर सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी पर पूरी तरह से अपना फोकस करते। उनके माता-पिता के हौसले के और इसी मेहनत का नतीजा है कि उन्हें यह सफलता हासिल हो सकी। एक ऑफिसर बनने के बाद भी वह आज भी ज़मीन से जुड़े हुए हैं और अपने इतने व्यस्त होने के बाद भी स्कूल में जाकर बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं। वह स्कूल के प्रति इसे अपना कज़र् मानते हैं और अपने गाँव के युवाओं को हमेशा करियर में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। उनकी आत्मकथा से युवा वर्ग काफ़ी प्रेरित हो रहे हैं।