आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश कर रहे ट्रांसजेंडर
वैसे तो ट्रांसजेंडरों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कई प्रयास हो रहे हैं, लेकिन तमिलनाडु में ट्रांसजेंडरों ने आत्म निर्भरता की नई कहानी लिखी है, जहां उन्होंने एक विशेष दुग्ध फार्म शुरू किया है, जिसके जरिए सभी आत्मनिर्भर बन रहे हैं।
रोजगार के साथ मिली छत
दरअसल तमिलनाडु के तूत्तुक्कुडि जिले में किन्नरों के लिए विकसित रोजगार और आवास क्षेत्र, समाज में हाशिये पर खड़े किन्नरों के उत्थान के लिए दुनिया भर में एक उदाहरण बन गया है। जिले में भारत की एक ऐसी दुग्ध डेयरी पंजीकृत है, जिसका पूरी तरह से संचालन किन्नर करते हैं। लगभग दो एकड़ की जमीन पर डेयरी फार्म के साथ ही विशेष कॉलोनी भी बनाई गई है, जो कि किन्नरों की आजीविका का साधन है।
इस विशेष कॉलोनियों के निवासियों को रोजगार के साथ-साथ घर की सभी सुख-सुविधाएं मुहैया हैं। ये लोग बहुत खुश हैं क्योंकि अब उनके पास घर, पैसा और सम्मान भी है। ये सब संबभ हुआ है उनके दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत के कारण।
प्रत्येक किन्रर के पास 2 गाय
ट्रांस एक्टिविस्ट ग्रेस बानू कहती हैं कि सभी प्रत्येक किन्रर के पास 2 गाय हैं और हर दिन हमें 300 लीटर तक दूध मिल जाता है, जो कि सप्लाई की जाती है। ट्रांस एक्टिविस्ट ग्रेस बानू बताती हैं कि तूत्तुक्कुडि में किन्नर वर्ग के उत्थान के लिए आवासीय कालोनियों से कहीं दूर जाना चाहती थी। वो ये सुनुश्चित करना चाहती थीं कि आवास के आवंटन के अलावा ट्रांस क्लास के जीवन स्तर में सुधार के लिए एक आजीविका योजना भी शामिल हो। उन्होंने भोजन, आश्रय और शांतिपूर्ण जीवन और आजीविका के साधन के रूप से एक पंजीकृत संस्थान बनाने के लिए जिला प्रशासन की सहायता ली।
सात विभागों के सहयोग से हुआ साकार
किन्नरों के जीवन में इंद्रधनुषी रंग भरने में सात विभागों का सहयोग महत्वपूर्ण हैं। ये विभाग जुलाई 2019 से इस सपने को साकार करने में कड़ी मेहनत कर रहे थे और 1.77 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना को साकार करने में हर कदम उठाया।
जिला अधिकारी संदीप नंदूरी कहते हैं कि समस्या सिर्फ उनके घरों के निर्माण के साथ खत्म नहीं हुई बल्कि उनके लिए एक सुरक्षित आजीविका का इंतजाम करना भी जरूरी था। इसके लिए हमने राजस्व, जिला ग्रामीण विकास, लोक निर्माण, सहकारिता, कौशल विकास विभाग, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, भूविज्ञान और खनन विभाग से संबंधित सात विभागों से पैसे लेने की योजना बनाई।
राज्य के स्वामित्व वाली संस्था को सप्लाई होता है दूध
दो एकड़ की जमीन पर एक विशेष कॉलोनी और एक दुग्ध फर्म का निर्माण किया गया। यहां हर दिन पर्याप्त मात्रा में दूध का उत्पादन होता है। ये मंथिथोप्पु ट्रांसजेंडर मिल्क प्रोड्यूसर्स सोसाइटी राज्य के स्वामित्व वाली संस्था ओवेन को लगभग 250- 280 लीटर दूध की आपूर्ति रोजाना कर रही है। सभी के लिए एक छत हो ये बहुत जरूरी है, लेकिन जब तक एक सुरक्षित आजीविका का साधन न हो तब तक सशक्तिकरण की बात बेमानी है और इसलिए किन्नरों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का काम सरकार के साथ कई संस्थाएं भी कर रही हैं। खुद किन्नर भी आगे आ रहे हैं और स्वरोजगार को अपना रहे हैं।