कोरोना ने याद दिलाया प्राचीन भारतीय शास्त्रों में स्वच्छता के सूत्र

कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए स्वच्छता को प्रथम उपचार माना जा रहा है। बार बार हाथ धोने से लेकर सेनेटाइजर का उपयोग करने और मास्क पहनने पर खासा जोर दिया जा रहा है। पूरी दुनिया इन दिनों इन उपायों पर अमल कर रही है। लेकिन हमारे लिए यह कोई नई सीख नहीं है। एक शताब्दी पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हमें अस्पृश्यता निवारण और स्वच्छता की सीख दे चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बीते सात वर्षों से देश में स्वच्छता अभियान चला रहे हैं।

इससे भी हजारों साल पहले हमारे देश में स्वच्छता का महत्व समझ जा चुका था। हमारे पूर्वज अत्यंत दूरदर्शी थे। उन्होंने हजारों वर्षों पूर्व वेदों और पुराणों में महामारी की रोकथाम के लिए परिपूर्ण स्वच्छता रखने के लिए स्पष्ट निर्देश दे रखें हैं। आइये कुछ सूत्र वाक्यों पर गौर करते हैं-

  1. लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च। लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत् ।।
    • धर्मसिन्धू 3 पू. आह्निक

नमक, घी, तेल, चावल एवं अन्य खाद्य पदार्थ हाथों से नही परोसना चाहिए।

  1. अनातुरः स्वानि खानि न
    स्पृशेदनिमित्ततः ।।
    • मनुस्मृति 4/144
    अपने शरीर के अंगों जैसे आँख, नाक, कान आदि को बिना किसी कारण के छूना नही चाहिए।
  2. अपमृज्यान्न च स्न्नातो
    गात्राण्यम्बरपाणिभिः ।।
    • मार्कण्डेय पुराण 34/52

एक बार पहने हुए वस्त्र धोने के बाद ही पहनना चाहिए। स्नान के बाद अपने शरीर को शीघ्र सुखाना चाहिए।

  1. हस्तपादे मुखे चैव पञ्चाद्रे भोजनं चरेत् ।। पद्म०सृष्टि.51/88 नाप्रक्षालितपाणिपादो भुञ्जीत ।।
    • सुश्रुतसंहिता चिकित्सा
      24/98

अपने हाथ, मुहँ व पैर स्वच्छ करने के बाद ही भोजन करना चाहिए।

  1. स्न्नानाचारविहीनस्य सर्वाः
    स्युः निष्फलाः क्रियाः ।।
  • वाघलस्मृति 69

बिना स्नान व शुद्धि के यदि कोई कर्म किये जाते है तो वो निष्फल रहते हैं।

  1. न धारयेत् परस्यैवं स्न्नानवस्त्रं कदाचन ।I
    • पद्म० सृष्टि.51/86

स्नान के बाद अपना शरीर पोंछने के लिए किसी अन्य द्वारा उपयोग किया गया वस्त्र (टॉवेल) उपयोग में नही लाना चाहिये।

  1. अन्यदेव भवद्वासः शयनीये नरोत्तम । अन्यद् रथ्यासु देवानाम अर्चायाम् अन्यदेव हि ।।
    • महाभारत अनु 104/86

पूजन, शयन एवं घर के बाहर जाते समय अलग- अलग वस्त्रों का उपयोग करना चाहिए।

  1. तथा न अन्यधृतं (वस्त्रं
    धार्यम् ।।
  • महाभारत अनु 104/86

दूसरे द्वारा पहने गए वस्त्रों को नही पहनना चाहिए।

  1. न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयाद् ।।
    • विष्णुस्मृति 64

एक बार पहने हुए वस्त्रों को स्वच्छ करने के बाद ही दूसरी बार पहनना चाहिए।

  1. न आद्रं परिदधीत ।।
    • गोभिसगृह्यसूत्र 3/5/24

गीले वस्त्र न पहनें।

सनातन धर्म ग्रंथो के माध्यम से ये सभी सावधानियां समस्त भारतवासियों को हजारों वर्षों पूर्व से सिखाई जाती रही है।
इस पद्धति से हमें अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता को बनाये रखने के लिए सावधानियां बरतने के निर्देश तब दिए गए थे, जब आज के जमाने के माइक्रोस्कोप नही थे। लेकिन हमारे पूर्वजों ने वैदिक ज्ञान का उपयोग कर धार्मिकता व सदाचरण का अभ्यास दैनिक जीवन में स्थापित किया था।

आज कोरोना काल में भी ये सावधानियां अत्यन्त प्रासंगिक है। इस कोरोना काल में यदि हमें ये उपयोगी लगती हो तो इनका पालन कर सकते हैं।

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