@ विजय सिंह
हँसने के लिए वे समय नहीं देखते
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हँसने के लिए
वे समय नहीं देखते हँसते हैं ,खूब हँसते हैं
उघड़े बदन हँसते हैं
हँसते हैं ,पत्थर फोड़ते हैं
सड़क बनाते हैं और हँसते हैं
वे हँसने के लिए छांव नहीं ढूँढते
हँसते हैं ,खिलखिलाकर हँसते हैं
धूप हो या बारिश
लू चले या ओले गिरे
हँसते हैं ,खूब हँसते हैं
काम करते हैं
सड़क बनाते हैं
और शहर को पूरी दुनिया से जोड़ते हैं
काम के खाली समय में
पेज के साथ नमक
लाल मिरी की चटनी खाकर
एक तूंबा पानी पीते हैं
और लेकियों के साथ
हँसी – ठिठोली करते हैं ,और हँसते हैं
वे हँसना जानते हैं
उनकी हँसी में
उनके माथे में खिलता है
पसीने का फूल
उनकी हँसी में गाँव की पंगडंडियों में खिल रहे
बारहोमासी जंगली फूल की चमक है
देखो ,
उनकी हँसी में
खिल रहा है
यह बेसुरा समय