नगर निगम कोरबा: जेब भरने का अवसर नहीं मिलने से करप्ट तबका हुआ परेशान, ईमानदार आयुक्त का तबादला कराने चला रहे हस्ताक्षर अभियान

कोरबा 4 दिसम्बर। भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात पूर्व विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा) कोरबा और वर्तमान नगर पालिक निगम कोरबा का भ्रष्ट तबका इन दिनों खासा परेशान हैं। नगर निगम के आई ए एस आयुक्त एस जयवर्धन को हटाने के लिए पार्षदों के बीच हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है। चर्चा है कि पूर्व की तरह भ्रष्टाचार और फर्जीबाड़ा का अवसर नहीं मिलने के कारण असंतुष्ट तत्वों ने जिले के दबंग नेता की सरपरस्ती में यह अभियान छेड़ा है।

समय के साथ राजनीति की परिभाषा भी बदल गयी है। कभी जनसेवा का साधन रही राजनीति अब ताकत, इज्जत, शोहरत और इससे भी पहले सड़कपति से अरबपति बनने का आसान माध्यम बन गयी है। खासकर अर्थ पिशाचों ने इसे नोट छापने की मशीन की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। कोरबा में तो सबसे आसान और फायदेमंद धंधा ही अब राजनीति है। तमाम तरह के अपराध कर, विशेष रूप से आर्थिक अपराध कर उस पर पर्दा डालने और कानून के शिकंजे में फंसने से बचने के लिए लोगों ने राजनीति को हमेशा ढाल की तरह उपयोग किया है। कोरबा में राजनीति के घोड़े पर सवार होकर लोगों को मुंशी को मुंसिफ बनते भी देखा गया है। कोरबा के इतिहास पर नजर डालें तो कोरबा अंचल के प्रतिष्ठित नागरिक और समृद्ध परिवार तो अपने संस्कारों के कारण एक ही स्थान पर स्थिर रह गए, किसी भी क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पाए, लेकिन चतुर धंधेबाजों ने सभी क्षेत्रों में झंडा फहराने में कामयाबी हासिल कर ली।

पूर्व साडा कोरबा और अब नगर निगम कोरबा में भी लंबे समय से राजनीति का व्यवसायीकरण हो गया है। भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात इस संस्था में ईमानदारी के कमीशन की कमाई ही कम से कम दस करोड़ रुपये सालाना बताया जाता है और राजनीतिक संरक्षण में फर्जीबाड़ा हो तो पचास करोड़ भी हो सकता है। यहां कुछ भ्रष्ट अफसर भर्ती से लेकर अब तक पदस्थ हैं और रिटायर होने के करीब हैं। इनकी काबिलियत देखें कि ये भाजपा नेताओं के भी आंखों के तारे रहे और अब कांग्रेस नेताओं के भी कृपापात्र हैं। सन 2003 से पहले भी ये सब कांग्रेस नेताओं के गुडबुक में थे। इसका कारण यह है कि ये अधिकारी भ्रष्टाचार के सभी तौर तरीकों से बेहतर ढंग से परिचित मने जाते हैं और कमीशन इकट्ठा कर आकाओं तक पहुंचाने में माहिर हैं।भ्रष्टाचार के नए आयाम स्थापित करने का काम भी बेखौफ करते हैं। यह कहना गलत न होगा कि नेताओं और अफसरों के इसी गठजोड़ की कमाई की राह में नगर निगम कोरबा के आई ए एस आयुक्त एस जयवर्धन अवरोध बने हुए हैं। जन चर्चा है कि लाखों खर्च कर कुर्सी हासिल करने वाले कथित समाज सेवक अब ब्याज सहित अपनी लागत वसूल करने के लिए बेताब हैं। उधर रोज रिश्वत गिनने के आदी हो चुके भ्रष्ट तत्व भी छटपटा रहे हैं। मगर निगम आयुक्त ईमानदार हैं। वे भ्रष्टाचार में शामिल होने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे में यह गठजोड़ साम, दाम, दंड, भेद किसी भी तरीके से उन पर काबू पाना चाहता है। इसी वजह से एक दबंग नेता के मार्गदर्शन और संरक्षण में आयुक्त के खिलाफ पार्षदों के बीच हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है। इस पूरी कवायद का इकलौता मकसद निगम आयुक्त एस जयवर्धन से अपने मनमाफिक काम कराना अथवा उनका तबादला कराना बताया जा रहा है। देखना होगा कि चंद लोगों का यह षडयंत्र कितना कामयाब होता है। हालांकि एक कांग्रेस पार्षद का कहना है कि यह अभियान शहर के हित में चलाया जा रहा है। आयुक्त के कारण शहर का विकास ठप्प हो गया है। बहरहाल सच्चाई जो हो आयुक्त विरोधी अभियान जोरों पर है।

यहां उल्लेखनीय है कि जिले में राजनीति की आड़ में रंगदारी वसूली पर कार्रवाई के मामले में भी ऐसा ही अभियान ईमानदार आई पी एस अधिकारी उदय किरण के खिलाफ कांग्रेस नेताओं ने कथित रूप से चलाया था। तब भी दबंग नेता की सरपरस्ती की चर्चा सुनने में आई थी। महापौर राजकिशोर प्रसाद को फ्रंट में खड़ा किया गया था, जिसके कारण उनकी शहर के आम लोगों में भारी चर्चा हुई थी और जनमन में आक्रोश अनुभव किया गया था। उदय किरण तो तबादले पर चले गए, लेकिन कइयों को बेनकाब भी कर गए। अब शहरवासियों ने जन सेवकों के कथनी और करनी का अंतर देख लिया और महसूस कर लिया है। इधर एक बार फिर जन सेवकों की सच्चाई सामने आ रही है। क्योंकि शासन अगर आम नागरिकों से जनमत संग्रह करता है तो बहुसंख्यक नागरिक निगम आयुक्त के पक्ष में मिलेंगे। हकीकत तो यह है कि शहरवासी आयुक्त की सख्त और ईमानदार कार्यशैली से खुश हैं।

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