फसल बेचने के बाद ग्रामीण फिर से करने लगे पलायन
कोरबा 07 जनवरी। जिले के ग्रामीण क्षेत्रों से धान की फसल समेटने के बाद पलायन करने लगे हैं। यही नहीं, एजेंट तो गांव-गांव वाहन भी भेज रहे हैं। सबसे अधिक लोग ईंट बनाने उत्तर प्रदेश और जम्मू कश्मीर जाते हैं। इसके अलावा बोरवेल्स में काम करने वनांचल क्षेत्र के युवा पलायन करते हैं। शासन ने पलायन करने वालों की जानकारी लेने पंचायत में ही पलायन पंजी रखती है। इसके लिए दूसरे जिलों से एजेंट मजदूरों को एडवांस रकम देते हैं। इसके साथ ही आने-जाने का खर्च भी उपलब्ध कराते हैं। ये सभी ग्रामीण प्रवासी मजदूर माने जाते हैं।
करतला ब्लॉक के नवापारा के निरंजन प्रसाद का कहना है कि वह हर साल उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जाता है। वहां पर ईंट बनाने का काम होता है। मजदूरी भी 200 से 300 रुपए तक अधिक मिलती है। इसके अलावा रिश्तेदारी के कारण समय गंवाना नहीं पड़ता। गांव में भी काम मिलती है, लेकिन मजदूरी कम है। सुरेंद्र कुमार का कहना है कि हर साल फसल काटने के बाद काम पर निकल जाते हैं। बारिश के समय जून में वापसी होती है। करतला ब्लॉक के अमलडीहा, नवापारा, सुखरीकला के साथ ही आसपास गांव के लोग भी काम करने जाते हैं। कई बार ग्रामीण ठगी का शिकार भी हो जाते हैं। पाली ब्लॉक के वनांचल क्षेत्रों से भी बोरवेल में काम करने महाराष्ट्र और कर्नाटक जाते हैं। गन्ना कटाई के लिए मजदूरों की मांग महाराष्ट्र में अधिक है। बाहर जाने वाले लोग ग्राम पंचायत में सूचना नहीं देते काम करने बाहर जाने वाले अधिकांश ग्रामीण ग्राम पंचायतों को भी सूचना नहीं देते। इसके कारण ही आगे कोई समस्या होने पर उन्हें ही परेशानी होती है।
कई एजेंट ऐसे हैं, जो बिना लाइसेंस के ही श्रमिकों को भेजते हैं।पांच से अधिक मजदूर जाने पर अधिनियम लागू किसी भी गांव से 5 या 5 से अधिक श्रमिक अगर बाहर जाते हैं तो उन्हें अंतर राज्य कर्मकार प्रवासी अधिनियम का लाभ मिलता है। इसके तहत मजदूरों को गवर्नमेंट रेट पर मजदूरी देने का प्रावधान है। अगर काम बंद है तो भी पूरा मजदूरी दी जाती है। इसके अलावा जो भी एडवांस है, उसे नहीं काट सकते। आने-जाने के लिए टिकट भी देना होता है। आयुक्त राजेश आदिले ने बताया कि प्रवासी मजदूरों की जानकारी पंचायत रखती है। इसके लिए पलायन पंजी होता है। बिना लाइसेंस के मजदूरों को बाहर नहीं भेजा जा सकता। शिकायत मिलने पर कार्रवाई करते हैं।