राहुल-सोनिया: विशेषाधिकार न मिलने की छटपटाहट को समझें
सुरेंद्र किशोर
नेहरू-गांधी परिवार की समस्या यह है कि वह अपने को अदालतों और कानून से ऊपर मानता है
लाख कोशिशों के बावजूद गांधी परिवार अपनी कानूनी परेशानियों से बाहर निकल नहीं पा रहा है। सन, 2014 के बाद से ही उसके लिए यह स्थिति पैदा हुई है। उसे अदालतों से छुटकारा नहीं मिल पा रहा है। आजादी के तत्काल बाद से ही नेहरू-गांधी परिवार कानून से ऊपर माना जाता रहा। तरह -तरह की कानूनी परेशानियों से भी यह परिवार साफ बच निकलता रहा, पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्थिति को बदल कर रख दिया है।
इसी कारण गांधी परिवार नेशनल हेराल्ड मामले की गिरफ्त में है। नतीजतन गांधी परिवार में अजीब तरह की बेचैनी है। उसका असर राहुल गांधी की देह-भाषा पर है और उनकी जुबान पर भी।
राहुल गांधी और उनके लोग कभी चुनाव आयोग तो कभी अदालत के खिलाफ बोलते हैं और कभी संसद के पीठासीन पदाधिकारियों को अपमानित करते हैं। इससे उन्हें कोई राजनीतिक या चुनावी लाभ नहीं मिल रहा है,लेकिन वे समझने को तैयार नहीं।
राहुल गांधी यह समझते हैं कि मोदी तथा संवैधानिक संस्थाओं पर भी तरह -तरह के झूठे आरोप लगाकर उन्हें भी अपने स्तर पर नीचे खींच लाएंगे। ताकि आम लोग मोदी को उनसे बेहतर न माने। पर ऐसा तब होगा जब प्रधान मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई प्रमाण हाथ लगे। राहुल गांधी को हवा में तीर चलाने से अब तक तो कोई लाभ नहीं मिला।
उल्टे विपक्षी गठबंधन के अधिकतर दलों ने उन्हें एक विफल नेता मानकर उनसे किनारा करना शुरू कर दिया है। नेहरू गांधी परिवार में 2014 तक यह धारणा बनी हुई थी कि यह परिवार किसी भी कानून से ऊपर है।भारत उसकी मिल्कियत है।उसे ही इस देश पर शासन करने का नैसर्गिक अधिकार है।
मोदी के सत्तासीन हो जाने के बाद परिवार का यह विशेषाधिकार समाप्त हो गया है।नेहरू -गांधी परिवार कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत वाली व्यावहारिक स्थिति को स्वीकार करने को तैयार नहीं हो पा रहा है। सोनिया-राहुल की छटपटाहट का सबसे बड़ा कारण यही है।
इससे पहले इस परिवार को इतनी छूट रही कि एक गैर कांग्रेसी प्रधान मंत्री कहा करते थे कि ‘‘प्रथम परिवार को छूना तक नहीं है।’’
ऐसे अघोषित विशेषाधिकार प्राप्त परिवार के सामने जब कानूनी गिरफ्त से बचने का कोई तरीका नजर न आए तो उसकी मनोदशा कैसी होगी,इसकी कल्पना कर लीजिए।
इस तनाव और छटपटाहट के कारण ही राहुल गांधी लोक सभा में प्रतिपक्ष के नेता की भूमिका भी गरिमापूर्ण ढंग से निभाने में विफल हैं।
यदि प्रतिपक्ष का नेता विवेकपूर्ण ढंग से ठोस तथ्यों पर आधारित अपनी बातें रखे तो जनता के बीच उसकी लोकप्रियता बढ़े,छवि बेहतर हो ,पर राहुल गांधी ने अपनी असंगत बोली तथा असामान्य देह भाषा के जरिए सदन की गरिमा गिराने की जितनी कोशिश की ,वह अभूतपूर्व है।
अपने परिवार के इतिहास के गर्व में पल रहे राहुल गांधी ने पूर्वजों के इतिहास के किस्से सुन रखे होंगे।
संभवतः अपने प्रति उसी तरह के व्यवहार की उम्मीद वह मौजूदा सरकार से भी कर रहे होंगे।अब यह संभव नहीं। गांधी परिवार पर पहला कानूनी संकट नेहरू के प्रधान मंत्री बनने के बाद ही आया था।
1949 में लंदन में भारतीय उच्चायुक्त वी के कृष्ण मेनन पर जीप घोटाले का गंभीर आरोप लगा। कांग्रेसी नेता अनंत शयनम अयंगार की जांच कमेटी ने उन्हें सरसरी तौर पर दोषी माना और विस्तृत न्यायिक जांच की सिफारिश की। न्यायिक जांच के परिणामस्वरूप सरकार के खिलाफ कुछ असुविधाजनक जानकारियां सामने आने का खतरा दिखा। इसलिए तत्कालीन गृह मंत्री ने 30 सितंबर 1955 को लोक सभा में यह घोषणा कर दी कि जीप घोटाले के इस मामले को बंद कर दिया गया है।
1975 में जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के लोक सभा चुनाव को रद कर दिया था तो यह आरोप साबित हो गया था कि चुनाव में उन्होंने सरकारी साधनों का दुरुपयोग किया है। कोई अन्य उपाय न देखते हुए इंदिरा ने 1975 में इमर्जेंसी लगा दी और चुनाव कानून बदल दिया। इस तरह उनकी सदस्यता और गद्दी दोनों बच गई।
एक अन्य तरह के जीप घोटाले के सिलसिले में तीन अक्तूबर, 1977 को सी.बी.आई.ने इंदिरा गांधी को गिरफ्तार कर अगले दिन दिल्ली के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया।मजिस्ट्रेट ने सुबूत मांगा तो सी.बी.आई.के वकील ने कहा कि जांच हो रही है। मजिस्ट्रेट ने श्रीमती गांधी को रिहा करने का आदेश दे दिया।
1979 में जनता पार्टी में आंतरिक कलह के कारण मोरारजी देसाई सरकार गिर गई। कांग्रेस ने बाहर से समर्थन देकर चौधरी चरण सिंह को प्रधान मंत्री बनाया।
इंदिरा गांधी ने चौधरी चरण सिंह को संदेश भेजा कि आप संजय गांधी के खिलाफ जारी मुकदमे को वापस ले लें। चौधरी चरण सिंह ने इनकार किया तो उनकी सरकार गिरा दी गई। सन 1980 में चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी सत्ता में लौटीं। फिर कौन मुकदमा और कैसी जांच ? सब कुछ समाप्त हो गया।
जब 1990 में कांग्रेस के बाहरी समर्थन से चंद्र शेखर प्रधान मंत्री बने तो राजीव गांधी ने उन्हें संदेश भेजा कि बोफोर्स केस वापस कर लीजिए।
ऐसा करने से मना करते हुए चंद्र शेखर ने इस्तीफा दे दिया। बीते दिनों यह खबर आई कि बोफोर्स मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो सकती है।
ज्ञात हो कि सन 2004 में बोफोर्स मामले में राजीव गंाधी और संबंधित दलाल को दिल्ली हाईकोर्ट से राहत मिल गई थी। हाईकोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए सी. बी. आई. को अनुमति नहीं दी गई थी,जबकि एजेंसी के लाॅ अफसर ने अपील के लिए इसे एक मजबूत मामला बताया था।नेहरू-गांधी परिवार की समस्या यह है कि सरकार और संवैधानिक संस्थानों पर ओछे आरोपों और टिप्पणियों के बावजूद प्रधान मंत्री मोदी इस परिवार को कानून से ऊपर नहीं मान रहे हैं। इसी कारण यह परिवार उन पर अनावश्यक रूप से हमलावर रहता है।
(पुनश्चः
इस लेख में उन मामलों का जिक्र स्थानाभाव के कारण नहीं किया जा सका गांधी परिवार के जो मामले विदेश में थे। उन मामलों में भी यहां की कांग्रेसी और गैर कांग्रेसी केंद्र सरकारों ने बारी बारी से नाजायज तरीकों से इस परिवार को मदद देकर इन्हें राहत पहुंचाई थी।) साभार