दादर के उपभोक्ता शक्कर को तरसे, संचालक ने दिखाया उठाव

कोरबा 5 मार्च। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से लोगों को चांवल, शक्कर, मिट्टीतेल, चना, नमक प्रदाय किए जाने की व्यवस्था की गई है। सामान्य दरों पर इन सामाग्रियों की निश्चित मात्रा उपभोक्ताओं को उपलब्ध करायी जा रही है। कई क्षेत्रों से इस बारे में शिकायतें लगातार प्राप्त हो रही है। फ रवरी में कोरबा नगर के दादरखुर्द क्षेत्र के 600 से ज्यादा उपभोक्ताओं को शक्कर नहीं मिली, जबकि अंतिम तारीख पर विभाग के पोर्टल में इस समिति ने उठाव करना दर्शाया। विभाग इस बारे में बोलने से बच रहा है।

इमलीडुग्गू क्षेत्र में संचालित हो रहे उपभोक्ता भंडार को दादर क्षेत्र की जिम्मेदारी कुछ समय से दी गई है। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में लोगों को सरकारी राशन के लिए यहां-वहां न भटकना पड़े, इसके लिए व्यवस्था को विकेन्द्रीकृत किया गया है। लोगों को इससे सहुलियत हुई है। लेकिन इसी के साथ संचालकों की मनमानी हो गई है और वे जमकर कमाई करने में लगे हुए हैं। खबर के अनुसार दादरखुर्द क्षेत्र में खाद्य विभाग ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के काम से गोलू नामक व्यक्ति को जिम्मा दिया गया है। काफ ी समय से यहां पर अनियमितताओं की भरमार है। लोगों की ओर से इस बारे में नाराजगी जाहिर किए जाने के बाद भी खाद्य विभाग मौन है। इसी का नाजायज फ ायदा संचालक उठा रहे है। दादर क्षेत्र में अनेक उपभोक्ताओं का कहना है कि फ रवरी महीने में कई चक्कर लगाने के बावजूद उन्हें राशन से वंचित होना पड़ा। इसके पीछे कई तरह से बने बहानेबाजी की गई। इन सबसे अलग फ रवरी के अंतिम दिन 28 तारीख को विभाग का पोर्टल चेक करने पर उसमे दर्शित हुआ कि शक्कर का उठाव हो गया है। इलाके के जागरूक उपभोक्ताओं को जब इसकी जानकारी हुई तो वे भौचक रह गए। इस संबंध में संचालक से चर्चा की गई तो बताया गया कि 600 लोगों को शक्कर देना बचा है। मार्च में दो महीने की मात्रा का वितरण एक साथ किया जाएगा। इस बारे में और कई तथ्यों को लेकर स्पष्ट जवाब प्राप्त नहीं हुआ, लेकिन यह भी बताया गया कि संबंधित निरीक्षक को अवगत करा दिया गया है।

अनुसार अनेक सोसायटियों के एक नहीं बल्कि दो संचालक हैं। सोच समझकर इस तरह का काम किया गया है। ताकि हर महीने की व्यवस्था बेहतर हो सके। जानकारों का कहना है कि हर महीने किसी न किसी तरह से राशन को अपने लिए सुरक्षित करने का जुगाड़ खोज लिया जाता है। दूसरे महीने चेहरा बदलने पर उपभोक्ता थोड़ी देर किचकिच करता है और इसके साथ हिसाब बराबर हो जाता है। इस तरह के मामले हर कहीं मौजूद हैं लेकिन किन कारणों से सरकारी तंत्र इनमें अपेक्षित कार्रवाई नहीं करता यह समझ से परे है।

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