लोक अदालत ने पति-पत्नी विवाद को किया समाप्त.. सफल कुटुम्ब के निर्माण में दिया अपना बहुमूल्य योगदान
कोरबा 13 जुलाई. आज के वर्तमान परिवेश में दाम्पत्य जीवन की डोर कमजोर हो चली है। आपसी विवाद घरेलू हिंसा तथा एक दूसरे पर विश्वास की कमी कमजोर दाम्पत्य जीवन का आधार बन रही है। ऐसे ही घटना जिला न्यायालय कोरबा के माननीय न्यायालय श्रीमती प्रतिक्षा अग्रवाल, जे0एम0एफ0सी0 कोरबा में विचाराधीन था। आवेदक एवं अनावेदक का आज से लगभग 16 वर्ष पूर्व दिनांक 23.04.2008 को सामाजिक रिति-रिवाज से हिन्दू विधि के अनुसार विवाह संपन्न हुआ था। दंपति को दांपत्य जीवन के संसर्ग से दो जुडवा बच्चों की प्राप्ति हुई।
मान न्यायालय में दिए गए बयान के अनुसार अनावेदक के द्वारा आवेदिका को लगातार प्रताडित किया जा रहा था कि तू बांझ है, बच्चे पैदा नहीं कर सकती, शादी में तेरे माॅ-बाप दहेज भी बहुत कम दिए हैं, मैं दूसरी शादी करूंगा। अनावेदक आए दिन मारपीट कर घर से निकाल देता था, इतना कम दहेज लाई हो, मायके से 05 लाख रूपए ला बोल कर बलपूर्वक जबरन घर से बाहर निकाल देता था। इसप्रकार अनावेदक, आवेदिका को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं आर्थिक रूप से प्रताडित करता था। तंग आकर माननीय न्यायालय के समक्ष महिलाओं का घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम 2005 एवं अंतरिम भरण-पोषण प्रदाय किए जाने हेतु धारा 23 के अंतर्गत प्रकरण दर्ज कराया गया।
लगातार 08 वर्षों से प्रकरण लंबित रहा। अनावेदक एवं आवेदिका के मध्य समझौता नहीं हो पा रहा था, ऐसे में आज दिनांक 13 जुलाई 2024 को आयोजित हाईब्रीड नेशनल लोक अदालत में मान. खंडपीठ ने आवेदक को समझाईश दी कि अनावेदक अपनी आवेदिका पत्नी एवं नाबालिग जुडवा बच्चों को साथ रखे तथा एक खुशहाल वैवाहिक जीवन व्यतीत करे। आवेदक एवं अनावेदिका ने समझाईश को स्वीकार कर अपने एवं अपने कुटुम्ब के भविष्य हेतु राजीनामा के आधार पर सुखपूर्वक एवं खुशहाल जीवन यापन हेतु बिना डर एवं दबाव के समझौता किया। इस प्रकार नेशनल लोक अदालत ने बेसहारा आवेदिका के प्रकरण में राजीनामा करा कर सफल कुटम्ब निर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान दिया।
बेसहारा परिवार को मिला न्याय, लोक अदालत बना सहारा
घटना दिनांक 19.10.2022 को वृद्ध आवेदक का जवान पुत्र अपने मित्र के साथ सुबह सैर के लिए निकाला था। मार्ग में अनावेदक ने पिकअप वाहन लापरवाही पूर्वक चलाकर आवेदक के जवान पुत्र को ठोकर मारकर दुर्घटना में घायल कर दिया जिसकी मौके पर ही मृत्यु हो गई थी। आवेदक का जवान पुत्र घर का एकलौता कमाने वाला था। जिसकी मृत्यु हो जाने से वृद्ध आवेदक माता-पिता बेसहारा हो गए थे। अब उनका लालन-पालन करने वाला कोई सहारा नहीं रहा। जिस कारण आवेदकगण के द्वारा क्षति रकम प्राप्त करने हेतु, अनावेदक के विरूद्ध मोटर यान अधिनियम 1988 की धारा 166 के अंतर्गत मान. न्यायालय के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया गया था। प्रकरण में आवेदकगण एवं अनावेदक (बीमा कंपनी) ने हाईब्रीड नेशनल लोक अदालत में संयुक्त रूप से समझौता कर आवेदन पत्र प्रस्तुत किया। जिसमें हाइब्रीड नेशनल लोक अदालत का लाभ लेते हुए आवेदकगण ने 13,80,000/- रूपये (तेरह लाख अस्सी हजार रूपये) बिना किसी डर-दबाव के राजीनामा किया जिसे आज दिनांक से 30 दिवस के भीतर अदा किए जाने का निर्देश दिया गया। इस प्रकार बेसहारा परिवारजनों को जीवन जीने का एक सहारा नेशनल लोक अदालत ने प्रदान किया।
वर्षों से चल रहे भूमि विवाद का हुआ निपटारा
अचल संपत्ति को सबसे सुरक्षित निवेश माना जाता है, क्योंकि इसे पैसा या जेवर की तरह चुराया नहीं जा सकता है। लेकिन, जमीन और मकान को लेकर एक खतरा हमेशा बना रहा है और वह है, कब्जे का। ऐसा ही प्रकरण जिला न्यायालय कोरबा में कई वर्षों से लंबित था। आवेदक के द्वारा 0.50 एकड़ भूमि कुदूरमाल में खरीदकर 42 डिसमिल जमीन पर पोहा मिल 2010-11 में स्थापित किया तथा शासकीय नौकरी से सेवा निवृत्ति के बाद उस पोहा मिल से अपनी आजीविका चलाते रहे। परंतु सन् 2017 में आवेदक ने अनावेदकगण को लिखीत इकरारनामा निष्पादित कर पचास लाख रूपए में वाद संपत्ति का विक्रय किए जाने हेतु सौदा किया। आवेदक के द्वारा सबंधित न्यायालय के समक्ष दिए गए बयान के अनुसार अनावेदक के द्वारा कुछ समय बाद धोखे से उक्त मिल में कब्जा कर लिया गया तथा कब्जा छोडने से मना किया गया। जिससे आवेदक ने अनावेदक के विरूद्ध वाद भूमि के संबंध में निष्पादित अनुबंध निरस्त होने के परिणाम रूवरूप, प्रतिवादीगण का कब्जा अवैधानिक होने से आवेदकगण को अनावेदकगण से विहित समयावधि में रिक्त आधिपत्य दिलाए जाने एवं अनावेदकगण से एक लाख रूपए मासिक किराया मार्च 2018 से कब्जा प्राप्ति तक दिलाए जाने हेतु प्रकरण दर्ज किया गया। जिसमें आज दिनांक 13 जुलाई 2024 को हाइब्रीड नेशनल लोक अदालत का लाभ लेते हुए आवेदक को उनके वर्षों से लंबित प्रकरण को उभयपक्षों के आपसी रजामंदी के अनुसार अनावेदकगण के नाम पंजीयन एवं नामांतरण किए जानेे हेतु बिना किसी डर-दबाव के राजीनामा किया जाकर अपना प्रकरण निराकृत किया गया।