प्राइवेट स्कूलों की मनमानी.. शिक्षा को छोड़ दुकानदारी में व्यस्त.. यूनिफार्म से लेकर पुस्तकों तक मचाई लूट

नर्सरी में दाखिल बच्चे के जुते की कीमत 550/- रुपये, सालाना खर्चा 40 हजार

कोरबा 03 जुलाई. आज के समय में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी चरम पर है जिसके कारण साल दर साल स्कूली शिक्षा महंगी होती जा रही है। इसका सबसे ज्यादा दंश मध्यम वर्गीय परिवारों को झेलना पड़ता है। बात चाहे स्कुल यूनिफार्म की हो या पुस्तकों की, प्राइवेट स्कुल अपनी मुर्गी की एक टांग वाले रवैये पर चलते हैं। निजी स्कूलों द्वारा प्राइवेट पब्लिशर की पुस्तकें लगवाना, महंगी पोशाक और हर साल फीस बढ़ोतरी से अभिभावक परेशान है। निजी स्कूलों की इस मनमानी से हर कोई वाकिफ है लेकिन बच्चों के भविष्य को देखते हुए कोई भी अभिभावक कुछ बोलने को तैयार नहीं है। वहीं प्रशासन भी इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। अभिभावकों का कहना है कि इस लूट से बचने के लिए अब लोगों को ही आगे आना होगा।

शिक्षा के व्यवसायीकरण का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं की कॉलोनी में खुली छोटी-छोटी प्राइवेट स्कूलों में भी अगर आप अपने बच्चों का दाखिला करवा रहे हैं तो बच्चों का स्कूल से संबंधित सभी समान आपको स्कूलों से बताए गए दुकानों पर ही मिलेगा मार्केट के अन्य दुकानों में नहीं। हमने जब एक अभिभावक से बात की तो उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उनके बच्चे का नर्सरी में दाखिला कराया गया है जहां स्कूल से मिलने वाले जूते का 550 रुपए लिया गया एवं बच्चों की पूरे साल की पढ़ाई का खर्चा 30 हजार से 40 हजार रुपए बताया गया है।

अभिभावक ने बताया कि स्कूल की ओर से बताई गई पुस्तकें और ड्रेस एक निश्चित दुकान के अलावा शहर की किसी दुकान में नहीं मिलतीं। बच्चों के कॅरिअर की बात है, इसलिए स्कूल को कुछ कह नहीं सकते। अकेले आवाज उठाना मुमकिन नहीं है। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के नाम पर निजी स्कूलों द्वारा अभिभावको को भय के मकड़जाल में फंसाकर खुली लूट मचाई जा रही है।

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