बिखरे हुए समाज को जोडने का माध्यम है मकर संक्रांति
कोरबा 15 जनवरी। सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश करने के साथ-साथ समय की चाल बदलने, नई फसल आने की खुशी से लेकर प्रकृति में नए रंगों के समावेश जैसे अनेक संदर्भों का संदेश मकर संक्रांति पर्व में समाहित है। तिल और गुड़ को लेकर मनाए जाने वाले मकर संक्रांति को हम कह सकते हैं कि यह बिखरे हुए समाज को जोडने का सबसे सशक्त माध्यम है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नगर प्रचारक उमेंदराम साहू ने आज यह बात कही। आरएसएस वर्ष में 6 उत्सव मनाता है जिनमें से एक मकर संक्रांति भी है। समाज के बीच किये जाने वाले इस तरह के आयोजन की अपनी एक अवधारणा है। शारदा विहार में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता ने कहा कि बिखरा हुआ समाज तिल की तरह होता है जिसे एकसूत्र में बांधने की कोशिश गुड़ के माध्यम से होती है। कलयुग में सबसे बड़ी शक्ति अगर कोई है तो वह है संगठन। असंभव कार्यों को संभव करने में संगठन की अपनी भूमिका होती है। समाज में समरसता के साथ लोगों की भागीदारी तय करने और राष्ट्र को क्रमोन्नत करने के लिए निरंतर प्रयास हो रहे हैं। मुख्य वक्ता ने मकर संक्रांति के साथ शामिल वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण को भी स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति और परंपरा का डंका विश्व में न केवल बज रहा है बल्कि लोग चुंबक की तरह इससे प्रभावित हो रहे हैं। कार्यक्रम के प्रारंभ में सुभाषित गीत, अमृत वचन की प्रस्तुति हुई। समापन से पूर्व सभी को मकर संक्रांति के प्रसाद का वितरण करने के साथ शुभाकामना दी गई। इस अवसर पर उपनगर संघ चालक अमृतलाल बत्रा, शाखा कार्यवाहक दीपक मुखर्जी, शाखा पालक नरेशचंद्र पांडेय, सुखीराम यादव सहित स्वयंसेवक उपस्थित थे।