राखड़ ईंट ने महिलाओं के लिए खोली आत्मनिर्भरता की राह
कोरबा 03 जनवरी। लगन सही हो तो आत्मनिर्भरता की राह स्वयं ही खुल जाती है। इस बात को जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर ग्राम चिर्रा की चंद्रमुखी स्व-सहायता समूह की महिलाएं चरितार्थ कर रहीं हैं। वनक्षेत्र में भी रहकर शहर के राखड़ प्रदूषण को कम करने में अपना योगदान देते हुए महिलाएं इससे ईंट का निर्माण कर रही हैं। समूह में शामिल 12 महिलाएं प्रतिदिन 5,000 ईंट तैयार कर रहीं है। इस काम से समूह की प्रत्येक महिलाओं को प्रतिमाह पांच से छह हजार रूपये की आमदनी हो रही है। ईंट निर्माण कार्य ने महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता की राह खोल दी है।
शहर वासियों के लिए भले राखड़ समस्या बनी है, लेकिन दूरस्थ ग्राम चिर्रा की महिलाओं ने इसे आजीविका का साधन बना लिया हैं। राज्य सरकार की ओर से प्रधानमंत्री आवास निर्माण को प्राथमिकता दिए जाने से ग्रामीण क्षेत्रों में ईंट की मांग बढ़ गई है। ईंट निर्माण से जुड़ी चंद्रमुखी महिला स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष ललिता राठिया का कहना है कि राखड़ से ईंट बनाने का काम वे पिछले दो माह से कर रहीं है। दो माह के भीतर वे 1.35 लाख ईंट तैयार कर चुकी हैं। ललिता ने बताया कि निश्शुल्क राखड़ जिला प्रशासन की ओर से पहुंचा कर दी जाती है। इस वजह से उन्हें मिट्टी की जरूरत नहीं। अब तक उन्हें सात हाइवा राखड़ उपलब्ध कराया जा चुका है। राखड़ के साथ सीमेंट का मिश्रण तैयार कर ईंट बनाई जा रही। ललिता ने बताया कि ईंट बनाने के सांचा भी उन्हे राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत प्राप्त हुआ हैं। ईंट बनाने क लिए प्रशासन की ओर से प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया था। सीमेंट की खरीदी का निर्वहन समूह करती है।
बंगला ईंट की तुलना में अधिक गुणवत्तायुक्त तैयार कर ईंट देने से आसपास के गांवों में ईंट की मांग बढ़ी है। ललिता ने बताया कि चिर्रा के अलावा श्यांग, बलसेंधा, सिमकेंदा आदि गांव में ईंट की आपूर्ति कर रहीं है। ललिता का कहना है राखड़ ईंट की खास बात यह है कि इसे पकाने के लिए कोयला या लकड़ी ईंधन की जरूरत नहीं। सीमेंट मिश्रण होने के कारण यह दो से तीन दिन में सूखकर उपयोग के लायक बन जाता है। प्रति ट्रेक्टर ढाई हजार ईंट को आसपास के गांव में पहुंचाकर 6,500 रुपये में उपलब्ध कराया जा रहा है। महिलाओं के लिए स्वरोजगार की राह खुल गई है