हाथी प्रभावित क्षेत्रों में थर्मल ड्रोन कैमरे से रात में भी होगी अब हाथियों की निगरानी
कोरबा 30 दिसंबर। प्रभावित क्षेत्रों में जनवरी माह से थर्मल ड्रोन कैमरे से हाथियों की निगरानी शुरू हो जाएगी। आचार संहिता के कारण कटघोरा वनमंडल कार्यालय से कैमरे की खरीदी की संविदा को निरस्त करनी पड़ी थी। विभाग के पास वर्तमान में एकमात्र सामान्य ड्रोन कैमरा है, थर्मल कैमरा उपलब्ध होने से रात के समय में हाथियों के गतिविधियों पर नजर रखी जा सकेगी। कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हे वन क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं को शासन से अवगत कराया जाएगा।
जिले के कोरबा और कटघोरा वन मंडल के प्रभावित ग्रामीणों व हाथियों की सुरक्षा महज औपचारिक हो रहा है। विभाग में अमलों की कमी होने के कारण अधिकारी अपने दायित्व को पूरा करने में नाकाम हैं। दोनों वन मंडल के रिक्तियों पर गौर करें तो कोरबा में छह व कटघोरा में सात वन परिक्षेत्र हैं। हाथी प्रभावित होने के बाद भी 13 वन परिक्षेत्र में जटगा, चौतमा, लेमरू बालकों अभी तक स्थाई रेंज अफसरों की नियुुक्ति नहीं हुई। चारों वन परिक्षेत्र प्रभार पर चल रहे हैं। उससे विकट स्थिति वन रक्षकों के खाली पदों की है। 112 स्वीकृति पदों में 48 पद खाली हैं। जिले वर्ष भर में सबसे अधिक समय हाथी पसान वन परिक्षेत्र में रहते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से इसे 16 वनक्षेत्र में विभाजित किया गया है। सभी वन क्षेत्रों वन रक्षकों की नितांत आवश्यकता है। यहां सेन्हा, लोकडहा, तिलईडांड़, जलके, कर्री व अड़सरा ऐसे वन क्षेत्र हैं जहां बीते तीन साल से वन रक्षकों के पद खाली हैं। नियुक्ति के अभाव में हाथियों के दल के आवागमन के बारे में सहीं समय में सूचना नहीं मिलती। बताना होगा 50 हाथियों का दल इन दिनों पसान, केंदई व एतमानगर में विचरण कर रहा है। किसानों ने धान की फसल को को काटकर खलिहानों में रख लिया है। ऐसे में हाथी वहीं भी धमक कर फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। गांव के आसपास हाथियों के विचरण से धान मिसाई का काम बंद हो गया है। बताना होगा कि हाथियों से जानमाल की हो रही नुकसान से ग्रामीणों में भय व्याप्त है। जिला प्रशासन की ओर से प्रभावित गांवों में प्रभावितों के लिए आवास और सामुदायिक भवन बनाने की घोषणा तो की गई लेकिन अब तक पहल शुरू नहीं हुई है। हाथियों संख्या लगातार बढ़ रही है, ऐसे में फसल नुकसान का दायरा भी बढ़ रहा है। हाथी संरक्षण को लेकर कारगर कदम नहीं उठाए जाने से किसान परेशान हैं।
धान कटाई का काम पूरा हो चुका है। खरीफ वर्ष 2023 में अब तक हाथियों के दल ने कटघोरा व कोरबा वन मंडल 2,958 हेक्टेयर धान की फसल को रौंदकर नुकसान पहुंचाया है। यह आंकड़ा बीते वर्ष की तुलना में 558 हेक्टेयर अधिक है। प्रभावित किसानों को 1.23 करोड़ का मुआवजा वितरित किया जा चुका है। वन विभाग केवल मुआवजा वितरण तक सीमित है। वन मंडल क्षेत्र में पर्याप्त कर्मियों की नियुक्ति नहीं होने से हाथी- मानव द्वंद्व बढ़ता जा रहा है। आठ साल पहले लेमरू को हाथी अभयारण्य घोषित कर बजट स्वीकृत किया गया पर हाथियों के रहवास के लिए काम शुरू नहीं हो सका है।
हाथियों को रहवासी क्षेत्र की ओर आने से रोकने के लिए सौर फेंसिंग, जंगल में ज्वार की खेती, सायरन आदि में करोड़ों खर्च किए गए लेकिन सभी का परिणाम सिफर ही रहा है। तीन साल पहले हाथियों की संख्या 48 थी, वह अब बढ़कर 82 हो गई है। पूर्व कलेक्टर संजीव झा ने पुटीपखना, गाड़ाघोड़ा, लोकड़हा सहित सात गांवों में सामुदायिक भवन बनवाने की बात कही थी, जिसकी शुरूआत नहीं हुई है। हाथियों की संख्या में वृद्धि से फसल नुकसान का दायरा भी बढ़ रहा है। मौसमी फसल होने के कारण किसान घाटे सहकर खरीफ की खेती तो कर रहे हैं लेकिन रबी फसल दायरा सिमट रहा है।
हाथी मानव द्वंद्व के बीच दोनों की ही जान जा रही है। जनवरी से अब तक हाथियों ने पांच लोगों की जान ले ली है। इसमें एक व्यक्ति की मौत कोरबा वनमंडल में हुई है वहीं शेष चार मरने वाले कटघोरा वन मंडल के हैं। उससे भी हैरत की बात है यह है कि चारों की जान लोनर हाथी ने ली है। इसी तरह तीन हाथी भी वन विभाग की लापरवाही के कारण मौत की भेंट चढ़ गए। इनमें एक वयस्क हाथी की मौत करंट की चपेट में आकर हुई शेष हाथी के बच्चों में एक की नदी में डूबने व दूसरे की कीचड़ में फंसने की वजह से जान चली गई।