कृषि बीमा योजना में कीट व्याधि से होने वाले नुकसान शामिल नहीं, अधिकांश किसानों ने नहीं ली रूचि

कोरबा 07 सितम्बर। जिले के एक लाख 25 हजार किसानों में केवल 24 हजार 139 ने ही फसल बीमा कराया है। प्रधानमंत्री सरकारी कृषि बीमा योजना में प्राकृतिक आपदा से क्षतिपूर्ति को शामिल की गई लेकिन कीट व्याधि से होने वाले नुकसान को शामिल नहीं किया गया है। इस वजह से अधिकांश किसानों ने बीमा योजना में रूचि नहीं दिखाई है। बीमित किसानों में सहकारी बैंक से ऋ ण लेकर खेती करने वाले 18,797 और बिना ऋ ण लिए खेती करने वाले 6,173 किसान शामिल हैं। कीट व्याधि से फसल को क्षति हुई तो किसानों का कर्जदार होना तय है।

किसानों के कर्ज में लदने की स्थिति तभी आती जब उनकी फसल तबाह हो जाती है। कर्ज से बचने के लिए बीमा का विकल्प तो है किंतु इसमें दी गई सुविधाएं किसानों के लिए पर्याप्त नहीं है। बीमा कराने में किसानों ली जाने वाली राशि में शासन का 50 फीसद राशि शामिल है। बीमा योजना में किसानों के शामिल नहीं होने की दूसरी वजह इसके बारे में उन्हे जानकारी नहीं दिया जाना है। आज भी दूरस्थ वनांचल गांवों में ऐसे किसान जिन्हे फसल बीमा के बारे में जानकारी नहीं है। मौसम आधारित फसल बीमा की जिम्मेदारी सहकारी बैंक और कृषि विभाग को दी गई है। जिसमें दोनों विभाग ऋण लेने वाले किसानों को शामिल कर अपने कार्यभार से निजात पा लेते है। जितनी राशि ऋण के तौर पर ली जाती है उसका 50 फीसद राशि से खाद व बीज की खरीदी करना अनिवार्य होता है। यही वजह है कि अब ऋण लेने वाले किसानों की संख्या घटती जा रही है।

किसान बैंक से ऋण लेने के बजाय साहूकारों से ऋण ले रहे हैं। ऋण से दबे किसान बीमा योजना से वंचित हो जाते हैं। फसल नुकसान होने पर अतिरिक्त कर्ज से नहीं उबर पाते। जिले सिंचाई सुविधा नहीं होने की वजह से अधिकांश किसान मौसम आश्रित खेती करते हैंं। ऐसे में जिन किसानों ने अभी तक फसल बीमा नहीं कराया है उन्हे कर्जदार होने पर मजबूर होना पड़ेगा। जिले ज्यादातर किसानों को फसल नुकसान कीट व्याधि से होती है लेकिन इसे बीमा में शामिल नहीं किए जाने किसान योजना का लाभ नहीं ले रहेे। पिछले चार वर्षों के भीतर जिले में खेती के रकबा में 13 हजार हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। धान बेचने वाले किसान 24ए678 से बढ़कर 42ए308 हो गई इसके बाद बीमा कराने वाले किसानों तुलनात्मक बढ़त नहीं हुई है।

कहने को तो गांव-गांव में कृषि विस्तार अधिकारी की नियुक्ति की गई है। किंतु अधिकांश युवा अधिकारी गांव के बजाय शहर में ही रहते हैं। गांव से शहर आने जाने में ही पूरा दिन गुजर जाता है ऐसे में किसानों से उनका संपर्क हो पाना मुश्किल रहता है। यही वजह है कि वास्तव में जिन किसानों को फसल बीमा में जोड़ा जाना चाहिए वे वंचित हो जाते हैं। बीते वर्षों में किसानों को फसल बीमा से जोड़ा जाता तो कर्ज माफ करने की नौबत ही नहीं आती। फसल बीमा के लिए सहकारी बैंक प्रबंधन व जिला कृषि विभाग की ओर से पहल नहीं किए जाने के कारण ग्रामीण क्षेत्र में फर्जी बीमा कंपनियों की सक्रियता बढऩे लगी है। फसल नुकसान की स्थिति में दो गुना तिगुना भुगतान का सब्जबाग दिखाने वाली इंश्योरेंश कंपनियों द्वारा फर्जी एजेंटों के माध्यम से किसानों को ठगी के जाल में फंसाया जाने लगा है। अक्सर ठगे जाने के बाद इस तरह के मामले उजागर होते हैं। ज्यादातर इस तरह की समस्या दूर दराज के किसानों के साथ होती है।

फसल नुकसान से हानि की स्थिति में बीमा नहीं किए जाने के कारण किसान ठगे से रह जाते हैं। ऐसे में किसानों को एक मात्र शासकीय स्तर पर मिलने वाली मुआवजे की आस लगी रहती है। मुआवजे का तय किए मापदंड में वे ही किसान आते हैं जिनकी फसल सूखा अथवा अतिवृष्टि से 50 फीसद तबाह हो जाती है। उस पर भी किसानों को राजस्व अधिकारियों के कार्यालय का चक्कर काटना पडता है।

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