संकट में लालू की पार्टी, चुनाव से पहले 12 MLA-MLC ने थामा नीतीश का हाथ

नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारियां तेज हो गई। इसी बीच 70 दिन में राजद के 12 विधायक और विधान पार्षद पाला बदल चुके हैं। वे नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड में जा चुके हैं। लालू परिवार की स्थिति भी राजद के लिए संकट बढ़ाने वाली है। परिवार के मुखिया लालू जेल में हैं। अब उनसे मुलाकात पर भी प्रशासन ज्यादा सख्त हो गया है। उधर, बड़े बेटे तेजप्रताप के बयान व काम अक्सर पार्टी को मुश्किल में डालने वाले या दल की छवि खराब करने वाले साबित होते हैं। कहा जा रहा है कि तेजप्रताप अपने करीबियों को टिकट दिलवाने की जुगत में अभी से लग गए हैं। उनके ससुर भी अब विरोधी खेमे में हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि उनकी पत्नी ऐश्वर्या (जिनसे तलाक का मामला अभी कोर्ट में लंबित है) भी चुनाव मैदान में उतर सकती हैं। यानि, परिवार की लड़ाई चुनावी अदावत में बदलने के पूरे संकेत हैं।

इसकी मुख्य वजह युवा नेता तेजस्वी यादव से सही तालमेल नहीं बन पाना और टिकट नहीं मिलने की आशंका है। लालू यादव करीब तीन साल से जेल में हैं। पार्टी का कामकाज तेजस्वी यादव ही देख रहे हैं। ऐसे में पुराने नेताओं की उनसे सहज मुलाकात-बात नहीं ही पाती। यही नहीं, लंबे समय से अहमियत पाते रहे पुराने नेताओं का कई बार तेजस्वी से मनभेद भी हो जाता है। रघुवंश प्रसाद सिंह की नाराजगी और उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा इसी का नतीजा रहा।

उम्र और विचारों का फासला भी राजद के पुराने नेताओं को तेजस्वी और पार्टी से दूर कर रहे हैं। तेजस्वी की कार्यशैली भी कई नेताओं को खटकती है। कई बार लंबे वक़्त के लिए तेजस्वी सीन से गायब ही जाते हैं। पार्टी के कई बड़े नेताओं को भी उनका ठिकाना मालूम नहीं रहता है। गठबंधन में तेजस्वी के साथी भी उनसे खुश नहीं रहते हैं।

हाल में एनडीए में गए जीतन राम मांझी ने बताया था कि उन्हें लोग बता रहे थे कि तेजस्वी का कहना था जिसे जहां जाना ही जाए, वो गठबंधन के बड़े पार्टनर हैं तो उनका निर्णय सबको मानना पड़ेगा। मांझी महगठबंधन में समन्वय समिति बनाने की मांग कर रहे थे। कांग्रेस ने इसके लिए मध्यस्थता भी की, लेकिन बात नहीं बनी।

सियासी जोड़तोड़ में माहिर लालू यादव ने 2015 के विधानसभा चुनाव में कई जेडीयू नेताओं को लालटेन सिंबल पर लड़ाया था। लिहाजा, उनका राजद छोड़ना स्वभाविक है। पार्टी छोड़ने वालों में कई ऐसे विधायक शामिल हैं जो मूलत: जेडीयू कैडर के हैं लेकिन पांच साल से लालटेन ढो रहे थे। लालू ने कुछ को पंजे पर भी लड़वाया था और कुछ राजद नेताओं को तीर के निशान पर भी। इसलिए चुनाव से पहले दोनों दलों में मची भगदड़ की एक वजह यह भी है।

सिर्फ गरीबों के नाम की पार्टी

पार्टी के कार्यकर्ता महेश्वर यादव ने बताया कि राजद अब सिर्फ गरीबों के नाम की पार्टी भर रह गई है। यहां सिर्फ पूंजीपतियों का ही बोलबाला है। पार्टी में गरीब, मजदूरों के लिए कोई जगह नहीं है। वहीं कमरे आलम कहते हैं कि उन्हें जब महसूस हुआ कि वह राजद के साथ नहीं चल सकते तो उन्होंने अपनी अलग राह चुन ली। आलम ने कहा कि अनावश्यक विवाद से कोई फायदा नहीं है। इससे इतर एक अन्य कार्यकर्ता जयवर्द्धन यादव कहते हैं कि राजद में राजनैतिक बैकग्राउंड वाले नेताओं को प्रताड़ित किया जा रहा है। पार्टी में अब सिर्फ पैसे वालों की पूछ बढ़ गई है।

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