सात जलाशयों के जीर्णोद्धार के लिए जल संसाधन को मिली 15.40 करोड़ की स्वीकृति


कोरबा 17 अपै्रल। पाली विकासखंड के ग्राम चैतमा में आठ साल पहले ध्वस्त वसुंधरा नाला का जीर्णोद्धार होगा। बांध के कायाकल्प होने से क्षेत्र के 250 हेक्टेयर खेतों में पानी पहुंचेगा। वसुंधरा नाला सहित जिल के सात जलाशयों के जीर्णोद्धार के लिए जल संसाधन को 15.40 करोड़ की स्वीकृति मिली है। लघु सिंचाई योजना के तहत पहले से निर्मित इन जलाशयों के मरम्मत के लिए वर्षों से राशि की मांग की जा रही थी। जिसकी स्वीकृति राज्य सरकार ने दे दी है इससे जिले के कुल कृषि रकबा के 11 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई सुविधा का विस्तार होगा।

पाली विकासखंड के अंतर्गत ग्राम चैतमा मे सिंचाई विभाग ने सन 2006.07 में वसुंधरा नाला बांध का निर्माण कार्य प्रारंभ किया था। 2009.15 में बांध पूर्ण रूप से बनकर तैयार हो गया। जल संसाधन विभाग के अनुसार 250 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकती है। विडंबना यह है कि आठ वर्ष पूर्ण होने के बाद भी इस डेम का लोकार्पण नहीं हो सका है और न ही एक बूंद पानी किसानों को मिल सका है। संबंधित विभाग की ओर से राज्य शासन को कई बार पत्र लिखा जा चुका था। अब जाकर शासन ने सुध ली है। जल संसाधन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार अकेले वसुंधरा नाला बांध के जीर्णोद्धार के लिए 2.50 करोड़ का अनुमानित व्यय तय किया गया है। बताना होगा कि जल संसाधन ने नहर के लिए जमीन का कुछ भाग अधिग्रहण किया है। जिस भाग को अधिग्रहित कर लिया है उसमें भी खुदाई का कार्य आधा अधूरा छोड़ दिया गया है। ऐसे में अतिरिक्त भूमि उपयोगहीन हो चुकी है। ऐसे में किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।

किसानों की माने तो अधिग्रहित भूमि का मुआवजा मिल चुका है। नहर का कार्य पूर्ण होने से राहत मिल सकती है। बांध के उपर एक किलोमीटर तक नाला के दोनों किनारे में दीवार का भी निर्माण किया गया है। तकनीकी त्रुटि के कारण नाले का पानी को को रोकने में यह दीवार नाकाम है। वर्षा जल के तेज प्रवाह से दीवार कई स्थानों से ध्वस्त हो चुका है। बजट में शामिल किए जाने निर्माण की उम्मीद बंध गई है। बांध बनने से क्षेत्र में न केवल धान फसल बल्कि सब्जी की भी खेती की जा सकेगी।

जिले में वृहत सिंचाई के लिए तैयार किए गए बांगो और दर्री बांध किसानों के लिए कारगर नहीं है। ऐसे में लघु सिंचाई के लिए 41 छोटे जलाशयों की खुदाई की गई जो जिले में 98 हजार हेक्टेयर धान कृषि रकबा के लिए पर्याप्त नहीं है। जलाशयों का समय सीमा में मरम्मत नहीं कराया जाता। यही वजह है कि इनका उपयोग खरीफ फसल तक ही सीमित है। वर्षा आश्रित जलाशय होने के कारण यहां से रबी के लिए भी पानी नहीं मिलती। मरम्मत किए जाने से किसानों खरीफ के अलावा रबी के लिए भी पानी मिलेगा। समय पर मानसून का साथ नहीं देने से लघु परियोजना के जलाशय सिंचाई सुविधा के लिए उपयोगी साबित होंगे।

सिंचाई के रकबा को बढ़ाने के लिए जिले में जल संसाधन की ओर से दर्जन भर से भी अधिक लघु सिंचाई परियोजना में काम चल रहा है। इनमें से कई स्थानों में बांध तो बना लिया गया है लेकिन नगर का विस्तार के लिए भू-अधिग्रहण का मामला लंबित है। कटघोरा के आमाखोखरा जलाशय निर्माण का काम छह साल हो चुका है। यहां से 22 गांवों के खेतों में पानी पहुंचाना है लेकिन जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरा नहीं होने नहर का काम अभी भी अधूरा है। यही दशा के कटघोरा ब्लाक के ही रामपुर जलाशय की भी है। अब तो क्षेत्र में लीथियम पाया गया है। ऐसे में जलाशय की उपयोगिता पर सवाल उठने लगा है।

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