हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में कोयला खनन परियोजना पर प्रतिबन्ध लगाने भारतीय वन्य जीव संस्थान अनुशंसा पर तत्काल कार्यवाही करे राज्य सरकार
अडानी कम्पनी के दवाब में परसा कोल ब्लाक के लिए जारी हुई वन स्वीकृति एवं भूमि अधिग्रहण को निरस्त करो
कोरबा 25 नवंबर। हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में स्थित परसा ईस्ट केते बासन कोयला खनन परियोजना की वन स्वीकृति एनजीटी द्वारा वर्ष 2014 में निरस्त की गई थी एनजीटी ने आदेश में यह भी कहा गया था कि हसदेव अरण्य वन क्षेत्र का जैवविविधता अध्यनन कर केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय यह निर्णय ले कि उक्त खदान को पुनः वन स्वीकृति देना है या नही स इस आदेश के तारतम्य में और इसी क्षेत्र में प्रस्तावित परसा कोल ब्लाक की वन स्वीकृति पर निर्णय लेने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आईसीएफआरई इन्डियन काउन्सिल आफ फारेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन और डब्लू एल एल को अध्यनन का दायित्व सौंपा।
पिछले महीने आईसीएफआरई ने छत्तीसगढ़ सरकार को सोंपी अपनी रिपोर्ट में हसदेव अरण्य क्षेत्र के संरक्ष्ण सहित खनन के गंभीर दुष्परिणामों को इंगित करते हुए खनन कम्पनी के दवाब में यह अनुशंसा लिखी-परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक में खनन चल रहा है और परसा की स्वीकृति एडवांस स्टेज में है इसलिए इसे 4 कोल ब्लाक में खनन विशेष शर्तो के साथ नियंत्रित खनन हो सकता है स इस अनुशंसा को आधार बनाकर कर केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय ने राज्य सरकार की सहमती से परसा कोल ब्लाक की अंतिम वन स्वीकृति 22 अक्टूबर को जारी कर दी।
हाल ही में डब्लू एल एल की रिपोर्ट सार्वजनिक हुई जिसमे बहुत ही स्पष्ट रूप से लिखा है कि हसदेव अरण्य समृद्ध जैवविविधता से परिपूर्ण वन क्षेत्र है स इसमें कई विलुप्त प्राय वन्यप्राणी आज भी मौजूद है , वर्तमान संचालित परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक को बहुत ही नियंत्रित तरीके से खनन करते हुए शेष सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को तत्काल नो गो घोषित किया जाये स इस रिपोर्ट में एक चेतवानी भी दी गई है कि यदि इस क्षेत्र में किसी भी खनन परियोजना को स्वीकृति दी गई तो मानव हाथी संघर्स की स्थिति को सम्हालना लगभग न मुमकिन होगा।
भारतीय वन्य जीव संस्थान ने हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में खनन पर प्रतिबन्ध की अनुशंसा की थी वाबजूद इसके विपरीत आईसीएफआरई ने खनन के पक्ष में अनुशंसा लिखी है जो स्पष्ट दिखाता हे कि यह संस्थान खनन कम्पनी के दवाब में कार्य कर रही थी स इस रिपोर्ट पर आपति की बजाए राज्य सरकार ने भी न सिर्फ सहमती जताई बल्कि भारतीय वन्य जीव संस्थान चेतवानी को खनन कम्पनी के मुनाफे के लिए अनदेखा किया।
राज्य सरकार द्वारा खनन हेतु वन स्वीकृति दिलवाने किस प्रकार जल्दबाजी की गई यह इस बात से स्पष्ट है कि आईसीएफआरई की फ़ाइनल रिपोर्ट आने के पूर्व ही ड्राफ्ट रिपोर्ट को अक्टूबर प्रथम सप्ताह में केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय भेजा गया और मीटिंग में राज्य सरकार के नोडल अधिकारी ने इसे फायनल रिपोर्ट बताते हुए परसा की वन स्वीकृति पर सहमति जताई जिसके बाद ही 21 अक्टूबर को वन स्वीकृति जारी हुई थी।
पिछले एक दशक से हसदेव अरण्य क्षेत्र के आदिवासी अपने जल जंगल और जमीन की रक्षा हेतु आन्दोलनरत है। विपक्ष में रहते हुए स्वयं कांग्रेस पार्टी ने उनके आन्दोलन को अपना समर्थन दिया था वाबजूद इसके उन्हें 300 किलोमीटर पैदल चलकर न्याय की गुहार लगाते हुए राजधानी आना पड़ा। मुख्यमंत्री ने उन्हें आश्वस्त किया था की उनकी मांगो पर संज्ञान लेते हुए फर्जी ग्रामसभा की जाँच की जाएगी लेकिन उस पर कोई भी कार्यवाही नही की गई बल्कि परसा कोल ब्लाक को वन संरक्षण अधिनियम की धारा 2 के तहत अंतिम आदेश को जारी करने की कोशिश की जा रही है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन राज्य सरकार से मांग करता है कि डब्लू एल एल के प्रतिवेदन पर कार्यवाही करते हुए तत्काल परसा कोल ब्लॉक को जारी समस्त स्वीकृति निरस्त करे। हसदेव अरण्य क्षेत्र में प्रस्तावित खनन परियोजनाओ को भी निरस्त करते हुए वन संसाधनो के संरक्षण और प्रबंधन की जवाबदेही ग्रामसभाओं को सुपुर्द की जाते ताकि जन वन वन्यप्राणी के सहअस्तित्व को बेहतर और समृद्ध किया जा सके। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन संयोजक मंडल विजय भाई, बेला भाटिया, नंदकुमार कश्यप, शालिनी गेरा, रमाकांत बंजारे आलोक शुक्ला ने यह जानकारी दी है।