*!.विश्व में बुंदेलखंड की धरती, वीरता व पराक्रम के लिए विख्यात,  वीर और साहसी महाराजा छत्रसाल का नाम सुनते ही घबरा जाते थे मुगल सरदार.!*

पंकज पाराशर
छतरपुर 8 नवम्बर। विश्व में बुंदेलखंड की धरती वीरता, पराक्रम व अपनी आन बान शान के लिए प्रसिद्ध रही है क्योंकि यह वह धरती है जो ना किसी के सामने झुकी है और ना ही कभी हारी हैं l जिसके लिए एक प्रसिद्ध कहावत भी कही जाती है l बुंदेलो की सुनो कहानी, बुंदेलो की बानी में l क्योंकि इस धरती पर ऐसे वीर योद्धाओं ने जन्म लिया, जिसकी वीरता की मिसाल पूरे विश्व में पहचानी जाती हैं l रिश्ता की ऐसी मिसाल थे बुंदेलखंड मे जन्मे वीर योद्धा महाराज छत्रसाल जिनको अपनी कुशलता, राजनीतिक क्षमता एवं पराक्रम के दम पर बुंदेलखंड को वीरता वाले राज्य के रूप में स्थापित किया था l उन्हें बुंदेलखंड का शिवाजी भी कहा जाता था क्योंकि उस समय पूरे विश्व में शिवाजी के समकक्ष महाराजा छत्रसाल को ही माना जाता था l बुंदेलखंड की वीरता की पूरे विश्व में पहचानी जाती हैं l महाराज छत्रसाल ने 5 घुड़सवार में एवं 25 सैनिकों के दम पर मुगल सरदार औरंगजेब से अपनी जागीर छीन ली थी l जो उनकी वीरता की सबसे बड़ी मिसाल हैं l छतरपुर जिले के मऊसानिया में धुबेला के नाम पर मशहूर यह इमारत महाराज छत्रसाल का समाधि स्थल हैं l इसका निर्माण खुद बाजीराव पेशवा ने कराया था क्योंकि पेशवा छत्रसाल को अपने पिता की तरह मानते थे l क्योंकि उन्होंने अपना आखिरी वक्त यही बताया था l जहां पहुंचकर हर मानव महाराजा छत्रसाल के परिक्रमा और शौर्य को महसूस कर सकता हैं l कहते हैं जब महाराज छत्रसाल के पिता चंपतराय की मौत हुई थी l उस वक्त बे केबल 12 साल के थे l लिखित इतनी छोटी सी उम्र में भी उनकी तलवार में चमक और इरादे चट्टान से भी मजबूत थे l जिसके दम पर वह किसी से लड़ जाते थे l एक युद्ध में शिवाजी ने जब महाराजा छत्रसाल की वीरता को देखा तो वह उनके मुरीद हो गए l शिवाजी ने उन्हें बुंदेलखंड को स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का आदेश दिया l जिसके बाद बुंदेलखंड में लौटते ही महाराज छत्रसाल ने बड़ी सेना तैयार की और पूरे बुंदेलखंड में मुगलों की विरासत को उखाड़ फेंका l उस वक्त बुंदेलखंड में मुगलों के जितने भी सरदार महाराज छत्रसाल से खौफ खाते थे l

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