सात दिवसीय सहज राजयोग शिविर प्रथम सत्र

कोरबा 20 अक्टूबर। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के सानिध्य में, दिव्य दर्शन भवन एच.आई.जी.-10 आर.पी.नगर फैज-2 निहारिका कोरबा में, सात दिवसीय सहज राजयोग शिविर के प्रथम सत्र में ब्रह्माकुमारी लीना बहन ने बतलाया कि राजयोग ही एकमात्र ऐसा साधन है जिस द्वारा मनुष्य स्थाई एवं आलौकिक शांति, मानसिक विश्रांति तथा ईश्वरीय आनंद प्राप्त कर सकता है। राजयोग मनुष्य के मानसिक आवेगों को नियंत्रित करता है, उसकी मानसिक ग्रंथियों को सुलझाता है और उसे धैर्य तथा निष्पक्ष भाव से निर्णय करने की क्षमता देता है। इससे मनुष्य के मन की एकाग्रता बढ़ती है।

राजयोग के फलस्वरूप एक ऐसे समाज का निर्माण होता है, जिसके सदस्यों में पारस्परिक प्रेम एवं मैत्री हो और व्यवहार में शांति, धर्य तथा संतोष हो; जहां के लोग सुखी, पवित्र एवं स्वस्थ हों और मनुष्य की शरीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक योग्यताओं तथा आत्मिक महानताओं का पूर्ण विकास हुआ हो। भगवान परमपिता शिव परमात्मा कहते है ंकि इन्दियों की गुलामी से बचने के लिये, सबसे बड़ा गीता ज्ञान का सिद्ध मंत्र है ’मनमनाभव‘। जिसका अर्थ है चलते-फिरते, उठते-बेठते, खाते-पीते, सोते-जागते एक भगवान शिव में मन लगाओं। यह मत सोचो कि इंद्रियों की गुुलामी करते हुए मुझे कोई देख नहीं रहा है। अपनी ही अंतरात्मा तो देख रहीं है ना, परमात्मा पिता तो देख रहे हैं ना। अगर किसी दूसरे के देखने पर अपने मन को रोका तो वह कोई ज्ञानयुक्त नियंत्रण नहीं है। इसका अर्थ तो यह हुआ कि अगर कोई दूसरा देखेगा नही ंतो हम पाप करते ही चले जायेंगे। अपने आप को रोकने के लिये अंकुश भी अपने आप ही होना चाहिए, दूसरों का अंकुश कारगर सिद्ध नहीं होता। इसलिये एकांत में बैठकर अपने आपको यह पाठ पढ़ाओं मैं भगवान की संतान हूॅं। मैं इन्द्रियों का मालिक हूॅं, इनका गुलाम नहीं। संसार से सम्मान पाना है तो इंद्रियों को जीतो। इंद्रियजीत ही मायाजीत, प्रकृतिजीत है। वही विश्वजीत बनता है। स्वयं की सम्पूर्ण सम्पन्न देवत्व की स्थिति को प्राप्त करने के लिये और शीघ्र ही आध्यात्मिकता में उन्नति प्राप्त करने के लिये राजयोग के निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता है, अर्थात् चलते-फिरते कार्य-व्यवहार करते हुए भी परमात्मा की स्मृति में स्थित होने की जरूरत है।

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