मरवाही वन मण्डल: प्रभारी डी एफ ओ के हवाले, एक माह में कट गए चार करोड़ के चेक

जंगल विभाग में जंगल राज: चौतरफ़ा लूट खसोट का खेल

गौरेला पेण्ड्रा मरवाही 5 अक्टूबर। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री सहित समूचा मंत्रिमंडल और सत्तारूढ़ दल के विधायक जहां ढाई ढाई साल के दांव पेच में उलझे हुए हैं वहीं दूसरी ओर प्रदेश की नौकरशाही बेलगाम हो गई है। राज्य सरकार के वन विभाग यानी जंगल विभाग में तो पूरी तरह से जंगलराज कायम हो गया है। जिले के मरवाही वन मंडल में इस राजनीतिक संक्रमण काल में लूट का कारोबार बेखौफ चल रहा है। वह भी पूर्णकालिक नहीं बल्कि प्रभारी डीएफओ की अगवाई में।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद वन विभाग में प्रभारी अधिकारियों की नई परंपरा शुरू हो गई है। प्रभारी ई डी एफ ओ यानि एस डी ओ को डी एफ ओ का प्रभार सौंपने का। जंगल विभाग में हो रही चर्चाओं पर यकीन किया जाए तो ई डी एफ ओ नियुक्ति के लिए 50 से 75 लाख रुपयों की कथित रूप से चढ़ोत्तरी का चलन चल पड़ा है। परिणाम स्वरूप वन विभाग में नौकरशाह मनमर्जी का काम कर अपना व्यक्तिगत हित साधने में लगे हुए हैं। इसके अलावा हर महीने की खातिरदारी अलग से। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि जंगल विभाग में वास्तव में जंगल राज कायम हो गया है।

अब जिला गौरेला पेण्ड्रा मरवाही के वन मण्डल मरवाही का उदाहरण ही देख लीजिए। मरवाही वन मंडल के एसडीओ के पद पर रहते हुए 3 वर्ष तक प्रभारी डीएफओ रहे अधिकारी 30 अगस्त को जब रिटायर हुए तो एडवांस में ही अधिकारियों को पटा कर उनके व्यक्तिगत हितों को साध कर कई गंभीर शिकायतें होने के बावजूद भी उसी वन मंडल में प्रभारी डी एफ ओ बना दिया गया। वह भी तब जबकि वहीं एक अन्य वरिष्ठ एसडीओ पदस्थ थे। बावजूद इसके वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने मुख्यमंत्री खेला होवे का पूरा फायदा उठाया और कनिष्ठ अधिकारी को प्रभारी डी एफ ओ बना दिया। हैरानी की बात तो यह है कि पहले इस पद पर एक आई एफ एस अधिकारी का आदेश निकाला गया। उसके बाद आदेश को संशोधित करते हुए घोटालों के लिए सुर्खियों में रहने वाले एस डी ओ को प्रभारी डी एफ ओ बना दिया गया। सूत्रों की मानें तो पहले आई एफ एस का आदेश चढ़ोत्तरी में बढ़ोतरी के लिए जारी किया गया था। जब मामला सेट हो गया तब नया आदेश जारी कर दिया गया। आपको बता दें कि यह चर्चा गौरेला पेंड्रा में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में हो रही है कि एस डी ओ को वन मंडलाधिकारी बनाने के एवज में वन विभाग के एक बड़े अधिकारी ने ₹ 50 लाख लिए हैं। अब इसमें मंत्री का क्या रोल है, क्या रोल नहीं है? यह तो जांच होने पर ही पता लगेगा, किंतु प्रश्न यह उठता है कि जांच कौन करेगा? बिना मंत्री की सहमति के प्रभारी डीएफओ नहीं बनाया जा सकता है।

मजे की बात तो यह भी है कि स्थानीय विधायक और जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष ने भी भ्रष्टाचारी एस डी ओ को प्रभार दिए जाने पर नाराजगी व्यक्त करते हुए मंत्री को पत्र लिखा है। लेकिन इसका भी कोई नतीजा हासिल नहीं आया है। इस मामले को लेकर स्थानीय कांग्रेस नेताओं में रोष व्याप्त है, लेकिन वे अपनी पीड़ा जग जाहिर करने से बच रहे हैं।

इस बीच चर्चा सरगर्म है कि प्रभारी डी एफ ओ ने कुर्सी पर बैठते ही चार करोड़ रुपयों का खेला कर दिया है। इससे भी अधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि इस भुगतान का बिल जिस अधिकारी ने बनाया उसी ने भुगतान के लिए अग्रेसित किया और उसी अधिकारी ने भुगतान स्वीकृत कर चेक पर हस्ताक्षर किए। अब इस कथित चार करोड़ के घोटाले में किस किस के हाथ रंगे हैं? यह तो निष्पक्ष जांच के बाद ही सामने आएगा। लेकिन सवाल यह है कि जांच का आदेश कौन देगा और जांच कौन करेगा?

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