छत्तीसगढ़ की संस्कृति को सहेजे लोगों की हो रही उपेक्षाः प्रधान

कोरबा 7 जुलाई। प्रदेश की सत्ता में जो भी राजनैतिक दल रहा है उसने छत्तीसगढ़ की संस्कृति को सहेजने वाले लोगों की उपेक्षा की है। एक ओर इसे प्रदेश की धरोहर मानते हैं तो दूसरी ओर इनके साथ छलावा करते हैं। राज्य के विभिन्न आयोग के पदों पर इन्हें जगह नहीं मिलती।

शुक्रवार को यह बात तिलक भवन में आयोजित पत्रकार वार्ता में छत्तीसगढ़ महतारी संस्कृति संवर्धन सेवा समिति के प्रदेशाध्यक्ष मोहन सिंह प्रधान ने कही। उन्होंने कहा कि उनकी समिति छत्तीसगढ़ की संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने 17 वर्षों से प्रयासरत हैं। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग का गठन तो कर दिया गया है। लेकिन, छत्तीसगढ़ी भाषा को आज तक ना तो राजभाषा का सम्मान मिला और ना ही उसे पाठ्यक्रम में शामिल किया। प्रदेश का यह दुर्भाग्य ही कहें कि यहां के मूल निवासियों को भी छत्तीसगढ़ी बोलने में झिझक होती है। सभी राजनैतिक दलों के नेताओं ने इसकी उपेक्षा की है। इसे लेकर अनेक बार ज्ञापन भी दिया गया। लेकिन इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया गया। हरेली पर समिति की ओर से होने वाले कार्यक्रम की जानकारी देते हुए कहा कि दर्री रोड स्थित छत्तीसगढ़ महतारी मंदिर में 8 अगस्त दोपहर 12 बजे हरेली पर्व मनाया जाएगा।

समिति के प्रदेशाध्यक्ष प्रधान ने यह भी कहा कि पिछले साल महोत्सव कार्यक्रम में प्रदेश के कई लोक कलाकारों को इसलिए हुनर दिखाने का अवसर नहीं मिला क्योंकि उनके नाम संस्कृति व पर्यटन विभाग की सूची में नहीं था। छत्तीसगढ़ की संस्कृति को बचाने में पूरा जीवन लगा देने वाले मूर्धन्य हस्तियों को कोई सम्मान नहीं मिलता। यहां तक कि राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित छत्तीसगढ़ के कलाकारों की भी छत्तीसगढ़ में उपेक्षा होती है।

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