गर्भवती ने साहस से कोरोना पर पाई जीत, स्वस्थ शिशु को दिया जन्म

कोरबा 8 मई। वर्तमान परिस्थितियां ही कुछ ऐसी हैं कि लोग गले में जरा की खराश आते ही संक्रमण के भय से जूझने लगते हैं। इस डर को मात देकर एक गर्भवती ने वह कर दिखाया, जिसकी अपेक्षा आज हर किसी से है। प्रसव की घड़ी नजदीक आने के ठीक पहले गर्भवती कोरोना संक्रमित हो गई। पर उसने हिम्मत हारने की बजाय डटकर सामना करने का फैसला किया। उसके साहस ने चिकित्सकों का हौसला बढ़ाया और सुरक्षित प्रसव से एक स्वस्थ शिशु ने जन्म लिया।

जानकारी के अनुसार पाली विकासखंड अंतर्गत ग्राम सिरली-बोइदा की निवासी शशि डिक्सेना 24 पति दीपक डिक्सेना नौ माह की गर्भवती थी। प्रसव का समय नजदीक आने पर तबियत कुछ गड़बड़ महसूस होने पर एहतियातन उसकी जांच कराई गई। उसकी टेस्ट रिपोर्ट पाजिटिव निकली और वह कोरोना संक्रमित हो चुकी थी। इसके बाद भी शशि ने अपनी हिम्मत बरकरार रखी। उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पाली में प्रसव के लिए ले जाया गया। सीएचसी में उपस्थित चिकित्सक डा अनिल सराफ ने कोविड संक्रमित महिला का सुरक्षित प्रसव कराने निर्णय लिया। उन्होंने गर्भवती का सफल रूप से जचकी कराई। संक्रमित प्रसूता को विशेष तौर पर तैयार किए गए अलग से लेबर रूम में रखा गया है, जहां जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। पाली सीएचसी में भय को मात देते हुए कोरोना संक्रमित महिला ने स्वस्थ शिशु को जन्म दिया। सीएचसी के चिकित्सकों ने कोरोना पीड़ित गर्भवती का सफल प्रसव कराया और जच्चा.बच्चा दोनों फिलहाल स्वस्थ हैं।

इस विषय पर सफल जचकी कराने वाले यहां के डा अनिल शराफ ने कहा कि बीमारी कोई भी होए एक चिकित्सक का काम हमेशा व हार हाल में लोगों का इलाज करना है। खतरा तो हर बीमारी में होता हैए पर सावधानी रख कर किया गया उपचार हमेशा सफल होता है। हमें इस बात की खुशी है कि प्रसूता ने कोरोना संक्रमित होना जानकर भी हौसला नहीं खोया और घबराई नहीं। उसके परिजनों ने भी उसके साथ.साथ मेडिकल टीम को भी पूरा सहयोग किया। डा सराफ ने कहा कि मौजूदा वक्त इसी तरह से साहस और हौसला बनाए रखने का है। किसी ने सच ही कहा है कि मन हारे हार है और मन के जीते जीत। इस महिला ने कोरोना से चल रही जंग के लिए अपने मन में ही जीत सुनिश्चित कर ली थी और उसके साथ उसके साहसी बच्चे ने भी जीत में बराबरी की भूमिका निभाई है।

शशि को बीते पांच मई को प्रसव पीड़ा उठी। परिजन उसे रात करीब 10 बजे बेहतर सुविधाएं मिलने की उम्मीद पर गांव से जिला मुख्यालय ले आए। उम्मीद के विपरीत यहां किसी भी अस्पताल में उसके लिए जगह नहीं मिल सकी और परिजन उसे उसी हालत में लेकर यहां-वहां भटकते रहे। कोरोना पाजिटिव होने व बेड नहीं मिलने से गर्भवती को लेकर रात-भर विभिन्न अस्पतालों के चक्कर काटते रहे। अंततः थक-हारकर परिजन उसे कोरबा से पुनः पाली की ओर रवाना हो गए और सीधे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पाली पहुंचे। तब तक रात गुजर चुकी थी और सुबह के छह बजे चुके थे। उसकी स्थिति और परिजनों की चिंता देख डा सराफ तुुरंत समझ गए और बिना वक्त गंवाए अपने कर्तव्य को पूरा करने जुट गए।

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