नगर पालिक निगम कोरबा में फर्जी निर्माण कार्यों के जरिए सैकड़ों करोड़ रुपयों के घोटाले की संभावना

कोरबा (editor news action)। नगर पालिक निगम कोरबा में फर्जी स्टीमेट बनाकर टेंडर और वर्क आर्डर का मामला सामने आने के बाद पिछले वर्षों में करोड़ों रुपयों के घोटाले की आशंका पैदा हो गई है। नगर निगम कोरबा में पिछले 5 वर्षों में किए गए सभी निर्माण कार्यों के जांच की आवश्यकता महसूस की जा रही है । निष्पक्ष जांच होने पर सैकड़ों करोड़ रुपयों के घोटाले सामने आने की संभावना है। नगर निगम में कुछ इंजीनियर और ठेकेदारों की बेनामी पार्टनरशिप की भी सरगम चर्चा है। यहां के सभी इंजीनियर कम से कम 20 से लेकर 35 वर्षों से कोरबा में ही पदस्थ हैं। इन अधिकारियों को राजनीतिक संरक्षण भी मिलता रहा है। इनकी सेहत पर सरकारों के आने जाने का कोई असर नहीं पड़ता। ये लगातार कोरबा में ही पदस्थ रहते आए हैं।
नगर निगम कोरबा में फर्जी टेंडर के जरिए करोड़ों रुपयों का लगातार घपला किए जाने की चर्चा हमेशा सुनने में आती रही है, लेकिन प्रमाणिक रूप से हाल ही में घोटाले का पर्दाफ ाश हुआ है। नगर निगम कोरबा के नव पदस्थ युवा कमिश्नर राहुल देव (आई ए एस ) पिछले दिनों निर्माण स्थलों का निरीक्षण करने के लिए वार्ड नंबर 4 में पहुंचे। उन्होंने एक टेंडर के कार्यस्थल का मुआयना किया तो पता चला कि मौके पर किसी भी तरह के कार्य की जरूरत ही नहीं है, जबकि नगर निगम ने 49 लाख रुपयों की लागत से सड़क निर्माण और नाली पर स्लैब लगाने के कार्य का टेंडर आहूत कर वर्क आर्डर भी जारी कर दिया था। निगमायुक्त ने तत्काल सब इंजीनियर और असिस्टेंट इंजीनियर को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया। अधिकारियों का जवाब मिलने के बाद सब इंजीनियर को निलंबित कर दिया गया है। कहना ना होगा कि यदि निगमायुक्त ने मौके का निरीक्षण नहीं किया होता तो आने वाले दिनों में बिना काम कराए ही 49 लाख रुपयों का बिल बना कर भुगतान कर दिया जाता। इस घटनाक्रम के बाद निगमायुक्त ने सभी इंजीनियरों को मौके पर जाकर नियमानुसार कार्य की आवश्यकता की पुष्टि करने के बाद ही जरूरी नाप जोख करके स्टीमेट बनाने का निर्देश जारी किया है।
उल्लेखनीय है कि नगर निगम कोरबा में विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण कोरबा के जमाने से पदस्थ इंजीनियर इतने प्रभावशाली हैं कि उनके सेवाकाल में कई सरकारें आई और गई लेकिन उन्हें कोई टस से मस नहीं कर सका है। इंजीनियर कभी थोड़े समय के लिए स्वयं के प्रयास से किसी अन्य स्थान पर अपनी पदस्थापना करा लेते हैं और फिर दोबारा से कोरबा में पदस्थ हो जाते हैं। कहा तो यह भी जाता है कि यहां पदस्थ इंजीनियर शहर के कुछ खास ठेकेदारों के साथ बेनामी पार्टनरशिप में ठेकेदारी भी करते हैं। यही वजह है कि नगर निगम में प्रतिवर्ष बड़े पैमाने पर फर्जी कार्यों के टेंडर आहूत किए जाते हैं और मामूली लीपापोती के बाद करोड़ों रुपयों का फर्जी बिल बनाकर भुगतान करा लिया जाता है। ठेकेदारों और निगम अधिकारियों का यह गठजोड़ कथित राजनीतिक संरक्षण में काम करता है। यही वजह है कि यहां वर्षों से कुछ खास ठेकेदार एक तरफ ा राज कर रहे हैं। अफसरों की दादागिरी ऐसी है कि नए ठेकेदारों को या तो किसी भी टेंडर में हिस्सा नहीं लेने दिया जाता या फिर उन्हें इतना परेशान किया जाता है और आर्थिक दृष्टि से इतना नुकसान पहुंचाया जाता है कि वह नगर निगम में काम करना ही बंद कर देता है। नगर निगम कोरबा में पदस्थ इंजीनियरों की माली हालत के बारे में आम चर्चा है की कोई भी इंजीनियर 50 करोड़ों रुपयों से कम का आसामी नहीं है। जबकि 100 करोड़ रुपयों से भी अधिक बेनामी संपत्ति के मालिक इंजीनियर भी साडा के जमाने से लेकर अब तक कोरबा में ही जमे हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि पिछले 5 वर्षों में प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार होने और नगर निगम में कांग्रेस का महापौर होने का भरपूर फ ायदा लिया गया और इंजीनियरों ने फर्जी टेंडर के जरिए नगर निगम और शासन को करोड़ों रुपयों का चूना लगाया है। नगर निगम के ही सूत्रों की माने तो यहां ऐसा कोई भी टेंडर का स्टीमेट नहीं बनाया जाता जिसमें 40 से 50 परसेंट एडी यानी एडजस्टमेंट का प्रावधान ना रहता हो।
सूत्रों का कहना है कि नगर निगम के पिछले वर्षों में किए गए कामों और भुगतान को लेकर जांच कराई जाती है तो मौके पर इस फर्जीवाड़ा की पुष्टि हो सकती है। एक ठेकेदार ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि यहां पदस्थ इंजीनियर ठेकेदारों को फर्जी बिल का भुगतान अपने नाम पर लेकर शत प्रतिशत राशि संबंधित इंजीनियर को देने के लिए मजबूर कर देते हैं। जो ठेकेदार इनकी बात नहीं मानता उसे तरह-तरह से हानि पहुंचाकर प्रतोड़ित किया जाता है। जांच के दौरान इस तरह के अनेकों मामले सामने आ सकते हैं। नगर पालिक निगम कोरबा के नव पदस्थ आयुक्त राहुल देव की कार्यशैली को देखकर उम्मीद की जा रही है कि वे वर्तमान में नगर निगम में चल रहे निर्माण कार्यों की बारीकी से जांच करेंगे और घोटालों को पकड़कर शासन को पहुंच रही क्षति पर रोक लगाएंगे। सूत्रों के अनुसार वर्तमान में चल रहे अनेक निर्माण कार्यों में एम बी में फर्जी मेजरमेंट चढ़ाकर बिल बनाया जा रहा था। लेकिन वार्ड नंबर 4 की घटना के बाद इस प्रक्रिया को रोक दिया गया है, किंतु एम बी का परीक्षण करने पर इस तरह के घोटालों का पर्दाफ ाश हो सकता है। बताया तो यह भी जा रहा है कि लाखों रुपयों के फर्जी बिल भी बनाकर निगम आयुक्त से बिल पास कराने और चेक जारी कराने की तैयारी कर ली गई थी। लेकिन अब ऐसे बिल नष्ट किए जा रहे हैं। बहरहाल निगम के मास्टर माइंड इंजीनियरों में भय का वातावरण है, परंतु निगमायुक्त को बहुत संभलकर काम करना होगा। वरना नगर निगम के इंजीनियर उनकी आंखों में धूल झोंकने में कोई गुरेज नहीं करेंगे।
0

Spread the word