प्रस्तुति- संजना तिवारी

“सुनो”

लोकेश को महसूस हुआ कि उसने कुछ कहा है मगर वो सुन न सका लिहाजा साइकिल की स्पीड जरा धीमी करके आस्था के करीब आया और उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश करने लगा।
“क्या हुआ?”

“तुमने कुछ कहा था”

“उफ्..तुम कहाँ खोये रहते हो..”

“बताओ भी”

“मेरी शादी तय हो चुकी है”

“अरे वाह …कौन लपड़झंडूस है जो तुमसे बियाह को तैयार हो गया।”

आस्था ने उसे घूरकर देखा-” क्यों इतनी बुरी हूं”

इस बार लोकेश के चेहरे पर गम्भीरता झलक उठी-” नयी जिंदगी की बधाई हो मैं तो मजाक कर रहा था”

“मुझे तो लगता है तुम अपनी जिंदगी के प्रति ही सीरियस नहीं…कॉलेज में भी हर वक्त मसखरी करते हो”

“चार घंटे कालेज में रहकर ही तो जी पाता हूं अन्यथा…..”

“अन्यथा क्या?”

पहले तुम साइकिल से उतरो तो…यूं हमसे गुफ्तगू नहीं होती”

“उफ् तुम्हारे घटिया डॉयलॉग…तुम जरूर शायर बनोगे”

“जरूर…मगर शायर डॉयलॉग नहीं मारते”

वो इस जवाब पर मुस्कुरायी ।अब दोनो साइकिल से उतरकर पैदल चलने लगे।

“बताया नहीं कुछ…”

“क्या बताऊं….बाप दिनभर दारू पीकर गाली बकता है…दोनों बड़ी बहनें अपनी किस्मत को कोसती हैं…अम्मा कुछ नहीं कहती बस रोती रहती हैं….नरक है जिंदगी…मन करता है चार लातें मारूं…साले पैदा ही क्यों करते हैं?बस कोई नौकरी मिले तो नरक से निकलूं”

” अब तो कुछ ज्यादा ही सीरियस हो गये”

“तुम्हें किसी में भी चैन नहीं” वो झुंझलाया।

“मुझे नहीं पता था”

“चलो अब तो पता चला..”

आस्था ने कंधे उचकाये…जैसे समझने में देर कर दी हो।कुछ देर दोनों के बीच सन्नाटा गूंजता रहा-” मुझे लगा था मेरी शादी की बात पर तुम कुछ पूछोगे”

“मुझे क्या पूछना चाहिए?”

“तुम्हें बुरा नहीं लगा”

“तुम्हें खुश देखकर मुझे क्यों बुरा लगेगा?”
उसने आह भरकर एक लम्बी सांस खींची।

“मुझे लगा था…खैर छोड़ो….कई बार हम सोचते कुछ हैं हकीकत और होती है” वो बुदबुदाई।

“दुनिया हमारे सोचने पर नहीं चलती”

” जानती हूं….”

कुछ देर ठहरकर उसने आगे जोड़ा-“आज से कालेज आना नही होगा..”

“मंजिल पा चुके लोगों को रास्ते पर भटकना भी नहीं चाहिए…”
उसने संजीदगी से कहा फिर अपनी ही बात को हवा में उड़ाकर मुस्कुराते हुए बोला-“कमसकम आज मुंह तो मीठा करा ही देती कंजूस”

“शादी मेरी हो रही है तो तोहफा तुमसे बनता है”

“बहुत खूब…बचने का अच्छा तरीका है…मगर मेरे पास तो कुछ भी नहीं”

“ऐसा मत कहो… आज तो तुम जो भी दोगे जिंदगी भर सहेजकर रखूंगी” उसके होंठ थरथराये आंखों में नमी उतर आयी।

लोकेश कुछ पल सोचता रहा…..”जेब खाली है”।

उसने साइकिल स्टैंड पर लगाई और उसके करीब जाकर खड़ा हो गया ।आंखों में नमी उतर आयी। नज़रें चार हुईं।पढ़ने के लिए बहुत कुछ था मगर लोकेश पढ़ न सका।सांसें सांसों से टकराईं।जेहन में जैसे कोई अंधड़़ सबकुछ तहस नहस करने में लगा था।उसने झटके से आस्था के होंठो को चूमा और बिना रुके साइकिल सहित आगे बढ़ गया।आस्था के हाथ बड़ी देर तक हवा में लहराते रहे।

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