ईशा फाउंडेशन, वाद और सीजेआई

प्रसंगवश

डॉ. सुधीर सक्सेना

सद्गुरू जग्गी वासुदेव वैश्विक शख्सियत हैं और उनके द्वारा स्थापित ईशा फाउंडेशन को लब्धप्रतिष्ठित और पंचसितारा न्यास की संज्ञा दी जा सकती है। फाउंडेशन के कोयंबटूर में स्थित परिसर का वैभव देखते ही बनता है। विश्व के नामचीन और गणमान्य जन आध्यात्मिक शांति और आंतरिक रूपांतरण के लिये वहां आते रहते है। सद्गुरु क्रिया (ऊर्जा), ज्ञान, कर्म और भक्ति में जरिये आंतरिक रूपांतरण की पद्धति के प्रणेता हैं और पर्यावरण के प्रति अपनी चिंता के लिये जाने जाते हैं। संप्रति, सद्गुरु का फाउंडेशन सुर्खियों में है और ये सुर्खियां उपजी है पहले मद्रास हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के फलस्वरूप।
मंगलवार एक अक्टूबर को तब सनसनी फैल गयी, जब करीब डेढ़ सौ पुलिसकर्मियों का दस्ता फाउंडेशन के आश्रम में आ धमका। हुआ यह था कि मद्रास हाईकोर्ट ने 30 सितंबर को अपने फैसले में कहा था कि पुलिस फाउंडेशन से जुड़े सभी फौजदारी मामलों का ब्यौरा पेश करें। इस आदेश के पालन में तमिलनाडु पुलिस ने तत्परता बरती और आश्रम पर धावा बोल दिया। अदालती फैसले की पूर्वपीठिका यह है कि सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस. कामराज ने मद्रास हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी कि आश्रम में उनकी दो बेटियों लता और गीता को बंधक बनाकर रखा गया है। आरोप संगीन था। हाईकोर्ट ने फैसला दिया और सद्गुरु ने उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
3 अक्टूबर, गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने मामले की सुनवाई की और कहा कि पुलिस फाउंडेशन के खिलाफ कोई जांच नहीं करे। उन्होंने यह भी कहा कि आप पुलिस या सेना को ऐसी जगहों पर दाखिल होने की इजाजत नहीं दे सकते। फैसले से पेश्तर उन्होंने दोनों लड़कियों- लता और गीता से अपने चैम्बर में बातचीत की। तमिलनाडु एग्रीकल्चरल यूनीवर्सिटी से रिटायर हुए प्रो. कामराज ने आरोप लगाया था कि उनकी बेटियों को बंधक बनाकर उनका ब्रेनवाश किया गया है, जिससे वे संन्यासिन बन गयी है। कामराज का कहना था कि उन्हें कुछ ऐसा आहार व औषधियां दी जा रही हैं, जिससे उनकी सोचने-समझने की शक्ति चुक गयी है। कालराज का कहना था कि जबसे बेटियों ने उन्हें छोड़ा है, उनका जीवन नर्क हो गया है।
गीता और लता की बात करें तो बड़ी बहन गीता ने इंग्लैंड के संस्थान से एमटेक किया है। उसे सन 2004 में उसी संस्थान में रुपये एक लाख की तनख्वाह पर नौकरी मिली थी। सन 2008 में तलाक के उपरांत उसने फाउंडेशन की योग कक्षाओं में भाग लेना शुरू किया। जल्द ही उसकी सहोदरा छोटी बहन भी वहीं आ गयी। दोनों वहीं रहने लगीं। नाम बदला। पिता ने कोशिश की, किंतु उन्होंने पिता से मिलने से इनकार कर दिया। उनका कहना है कि पिता उन्हें नाहक परेशान कर रहे हैं।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि दोनों लड़कियां सन 2009  में आश्रम में आई थीं। उस वक्त उनकी उम्र क्रमश: 27 और 24 साल थी। वे अपनी मर्जी से वहाँ रह रही हैं। उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिया है कि पुलिस आगे कोई जांच नहीं करे।
इस वाद में अगली सुनवाई अब 18 अक्टूबर को होगी।

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