बिना स्वीकृति के बनाया स्टॉप डेम, अब पुनरीक्षित राशि से लाखों डकारने की तैयारी..?

कोरबा 03 अक्टूबर। जिले के कटघोरा वन मंडल में भ्रष्टाचार की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। दूरस्थ क्षेत्र होने के कारण यहां ना तो निगरानी होती है और ना ही हिसाब-किताब, तो इसका भरपूर फायदा रेंजर, डिप्टी रेंजर,बीटगार्ड से लेकर संबंधित अधिकारी भी बखूबी उठा रहे हैं। तत्कालीन डीएफओ के कार्यकाल में स्टॉप डेम का मामला जिले से लेकर विधानसभा तक गूंजा लेकिन मामले अपने-अपने लाभ के लिए उछाले और दबाए जाते रहे।

परिणाम स्वरूप नतीजा शून्य रहा। एक बार फिर से यह जिन्न बाहर निकल आया है जब 5 से 6 साल पूर्व स्वीकृत स्टाप डैम के लिए पुनरीक्षित दर से राशि की मांग की गई है। इसमें इस बात पर भी आश्चर्य है कि जो स्टाप डेम स्वीकृत हुआ ही नहीं था, उसके लिए भी राशि मांगी गई है। कुल मिलाकर स्टाप डैम का लाभ जंगल के जीव-जंतुओं को मिले या न मिले लेकिन जेब भरने के काम आ रहे हैं। इनके नाम पर लाखों रुपए फिर से गबन कर हड़प करने की तैयारी की जा रही है जिसे मुख्य वन संरक्षक ने संभवतः पकड़ लिया है। स्टाप डेम के नाम पर पिछले 5-6 वर्षों से चल रही भर्राशाही के मामले में अब उन पर थ्प्त् की जरूरत महसूस की जाने लगी है, जिन्होंने इसके नाम पर लाखों रुपए गबन किये हैं। अब यह तो सुशासन वाली सरकार पर निर्भर है कि वह इस मामले को तह तक ले जाती है, या फिर ऊपर ही ऊपर बंटाधार हो जाएगा?

हालिया घटनाक्रम कुछ इस तरह है कि कटघोरा वन मंडल के जंगल क्षेत्र से होकर रेल कॉरिडोर गुजर रहा है। इस कॉरिडोर में वन विभाग की संपत्तियां समाहित हुई है जिनके एवज में रेलवे द्वारा भारी भरकम राशि वन विभाग को प्रदान की गई है और उक्त राशि से स्टाप डेम आदि का निर्माण कराया जा रहा है।

घपलों में चर्चित पसान रेंज
पसान वन परिक्षेत्र जो कि पौधारोपण घोटाला से लेकर स्टाप डेम घोटाला के मामले में काफी सुर्खियों में रहा है और यहां के रेंजरों की कार्यशैली भी अक्सर विवादों में रही है। उक्त पसान वन परिक्षेत्र में ईस्ट-वेस्ट रेल कॉरीडोर परियोजना के तहत स्टॉपडेम निर्माण कार्य कलेवा नाला,चेचही नाला, मनागदीनाला, साड़ामार नाला, गोलवा नाला पर कराया गया है। कैम्पा मद के अंतर्गत वर्ष 2018-19 में इन स्टाप डैम के निर्माण का कार्य स्वीकृत हुआ था। प्रारंभ से लेकर आज तक भी सभी स्टाफ डेम विवादों में घिरे हैं और पूरा होने का नाम ही नहीं ले रहे। 5-6 साल बाद इन स्टाप डैमों के लिए पुनरीक्षित राशि की मांग की गई है जो लाखों रुपए में है। अब सवाल उठता है कि 5-6 साल पहले जिस एस्टीमेट पर स्टॉप डेम की स्वीकृति हुई थी और विभागीय अधिकारी इन सभी कार्यों को पूरा कर लेना बताते रहे हैं, तब इनके लिए फिर से राशि की आवश्यकता क्यों पड़ गई? जो कम आधे-अधूरे पड़े थे, उनमें लीपा पोती करके हाल ही के महीनों में लंबी-चौड़ी रकम निकाली गई है। धरातल पर काम पूरा बताते हुए कागजों में भी सब कुछ ओके दिखाया जाता है लेकिन हकीकत यही है कि योजनाओं के नाम पर जमकर बंदर बांट हो रही है।

अधिकारी ने पकड़ी गड़बड़ी, मांगा जवाब
पुनरीक्षित दर की स्वीकृति मांगे जाने पर इस गड़बड़ी को उच्च अधिकारी मुख्य वन संरक्षक, बिलासपुर वन वृत्त ने पकड़ लिया है। इस संबंध में कटघोरा वन मंडल अधिकारी से विभिन्न बिंदुओं पर सवाल करते हुए इसके जवाब मांगे गए हैं।

मांगे गए इन सवालों के जवाब
तकनीकी स्वीकृति हेतु प्रेषित उक्त स्टॉप डैमों को लेकर डीएफओ से सवाल किया गया है कि-पूर्व प्राक्कलन एवं वर्तमान प्राक्कलन के डिजाईन में क्या अंतर है? पूर्व में व्यय की गई राशि किस कार्य हेतु किया गया है? क्या इसका समयोजन इस प्राक्कलन में किया गया है?

पूर्व में व्यय राशि की वर्तमान में क्या स्थिति है? क्या पूर्व प्राक्कलन में लंबाई अधिक, गहराई कम रखी गई थी? तब इसमें किस प्रकार का संशोधन प्रस्तावित है? दोनों प्राक्कलन के प्रत्येक मद में दर्शित कार्य के माप का तुलनात्मक विवरण एक पृष्ठ में अनिवार्यतः दिया जावे। पूर्व में यदि गलत प्राक्कलन तैयार किया गया था, तो उसके लिये उत्तरदायी कर्मचारी ध् अधिकारी के विरूद्ध प्रस्तावित कार्यवाही का विवरण देवे।

वर्ष 2018-19 के ए.पी.ओ. का अवलोकन करने पर पाया गया कि पसान परिक्षेत्र में गोलवा नाला कक्ष क्रमांक 659 स्वीकृत नहीं है, तब इसे किस आधार पर स्वीकृति हेतु इस कार्यालय को प्रेषित किया गया है, वस्तुस्थिति से अवगत करावें। दोनों प्राक्कलन में क्या वही एस.ओ.आर. दर लगाई गई है या दरों में अंतर है? इन सवालों से स्पष्ट है कि स्टॉप डेम के नाम पर किस तरह से सरकारी धन का दुरुपयोग ध्बंदरबांट किया जा रहा है।

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