कोरबा: पुलिस अधीक्षक की उदासीनता से जा रही बेगुनाहों की जान
कोरबा 24 सितम्बर। जिला पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थ तिवारी की उदासीनता से कोरबा नगर में बेगुनाह नागरिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है। कोरबा नगर में एक माह के भीतर तीन लोगों की जान जा चुकी है और दस से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं।
पहला बड़ा हादसा निहारिका क्षेत्र में हुआ था, जिसमें दो लोगों की जान चली गई थी। इस मामले में सिविल लाइन पुलिस की भूमिका आरोपी पर कार्रवाई को लेकर संदिग्ध थी। दूसरा हादसा राताखार पायपास में हुआ और 18 वर्षीय युवती को अपनी जान गंवानी पड़ी। सी एस ई बी चौक में लायन्स क्लब अध्यक्ष को एक भारी वाहन ने अपनी चपेट में ले लिया था। एक अन्य बड़ी दुर्घटना सोमवार 23 सितम्बर को फिर राताखार मार्ग में हुई, जिसमें तीन लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। इससे पहले शहर के सीतामणी और पावर हाउस रोड में दुर्घटना हुई।
दरअसल शहर में नो एंट्री के दौरान लगातार डीजल पेट्रोल के टैंकर आते जाते हैं। ये टैंकर अनियंत्रित गति से दौड़ते हैं। अग्रसेन तिराहा दर्री रोड में गत दिवस एक बड़ा एक्सीडेंट टल गया, मगर टैंकर ने डिवाडर की क्षतिग्रस्त कर दिया। दरअसल डीजल पेट्रोल के टैंकर को रूमगरा, बालको, रिसदी बायपास मार्ग से आवागमन करना चाहिए। परन्तु चंद रुपयों की बचत कल लालच में उरगा, बरपाली, चाम्पा, सकती, पंतोरा, बलौदा जाने वाले वाहन भी अवैध रूप से कोरबा के मुख्यमार्ग से होते हुए गुजरते हैं, जिसके कारण दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।
शहर में सी एस ई बी चौक से लेकर सीतामणी तक सड़कों पर दुकानदारों का बेजा कब्जा है। कई लोग तो 10 फिट बाहर तक अपने दुकान का सामान सड़क पर निकाल रहे हैं। लेकिन इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। राताखार बायपास में नहर किनारे पंचर वालों ने बेजा कब्जा कर रखा है। चाय नाश्ता की दुकानें भी हैं। यहां भारी वाहन सड़क पर घण्टों खड़े रहते हैं, जो दुर्घटना के कारण बनते हैं। लेकिन इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती।
लगभग तीन माह पूर्व नो एंट्री में डीजल टैंकर के बेलगाम दौड़ने और सड़क पर अतिक्रमण से यातायात बाधित होने की ओर पुलिस अधीक्षक का ध्यान आकृष्ट कराया गया था। किन्तु, वे कार्रवाई को लेकर उदासीन बने हुए हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उनका इस शहर से कोई सरोकार नहीं है और वे शासन ने पद स्थापना कर दी है, इसलिए वक्त गुजार रहे हैं। अगर कप्तान साहब इसी तरह उदासीन बने रहते हैं, तो शहर की सड़कों पर कितने बेगुनाहों का रक्त बहेगा? कहना कठिन है।