सत्ता परिवर्तन का असरः राखड़ कारोबारियों के हौसले हो रहे पस्त

कोरबा 19 दिसम्बर। कई प्रकार के दावे करने के साथ सत्ता पर वापसी करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने जमीन पर इसका प्रदर्शन करना भी शुरू कर दिया है। कई प्रकार के बदलाव देखने को मिलने लगे हैं। औद्योगिक नगर कोरबा में लंबे समय से संयंत्रों से निकलने वाली राख को यहां-वहां डंप करने और मनमानी करने वाला वर्ग धीरे-धीरे पस्त हो रहा है। जहां-तहां राखड़ डम्प करने के साथ लोगों को परेशान करने के मामलों में कमी दर्ज हुई है। लोगों को इससे कुछ तो राहत मिली।

जिले में शहरी क्षेत्र के अंतर्गत एनटीपीसी, बालको और सीएसईबी के पावर प्लांट संचालित हो रहे हैं। बिजली का उत्पादन करने के लिए यहां पर प्रतिदिन कई लाख टन कोयला की खपत होती है। निश्चित प्रक्रिया के साथ ये बिजली घर काफी मात्रा में राखड़ का उत्सर्जन भी करते हैं। इसके सुरक्षित निपटान का मामला अपने-आपमें चुनौती बना हुआ है। एक सीमा तक यह राख फ्लाईऐश ब्रिक्स और सीमेंट उद्योग को निरूशुल्क दी जा रही है। इसी के साथ साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की उन खदानों को पाटने में भी राख का उपयोग किया जा रहा है जो काफी समय पहले कोयला दोहन के बाद बंद हो चुकी है। इन सबके बावजूद राखड़ का निकलना हर दिन का काम है और इसी अनुपात में समस्याएं भी बढ़ रही है। बिजली घरों ने अपनी बला टालने के लिए ट्रांसपोटर्स को ठेका दे रखा है कि वे यहां से राख ले जाए और उसे डम्प करे। ट्रांसपोटर्स भी अपने खर्च बचाने और कम समय में ज्यादा ट्रीप मारने के चक्कर में कहीं भी राख डंप करने का काम करते हैं इसके चलते विवाद की स्थिति निर्मित होती रही। महसूस किया जा रहा है कि कांग्रेस सरकार में राखड़ परिवहन और डंपिंग को लेकर जिस तरीके से ब्लैक स्मिथ समेत कई कंपनियों ने मनमानी की, उस पर काफी हद तक विराम लगा है। लेकिन पूर्व समय में जन स्वास्थ्य को लेकर जो नुकसान लोगों को हुआ, उसकी भरपाई कैसे होगी। यह सवाल अभी भी अपनी जगह पर कायम है। याद रहे पर्यावरण विभाग भारत सरकार ने बिजली घरों से उत्सर्जित राख के व्यवस्थित प्रबंधन के लिए कई नियम बनाए थे। केंद्र ने सुनिश्चित किया कि मौजूदा स्थिति में नवीन बिजली घरों की स्थापना के लिए राखड़ बांध बनाने के लिए जमीन नहीं दी जाएगी। इसके अलावा वर्तमान में जहां से राख निकल रही है उसे हर हाल में डंप करने की व्यवस्था भी खुद करें। 28 जुलाई 2019 की गाइड लाइन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बनाई। इसके पालन और निगरानी के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल और कलेक्टर को दायित्व दिया। 31 दिसंबर 2021 को गजट में यह विषय भी आ गया। सुरक्षित तरीके से राखड़ परिवहन के लिए जो निर्देशिका तय हुई उसके अंतर्गत राखड़ परिवहन का काम केवल कैप्शूल, रेलवे वैगन, बल्कर और कवर्ड ट्रक के जरिए ही हो सकेगी। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में फ्लाईऐश ब्रिक्स बनाने के लिए अधिकतम 10 किमी दूरी तक ट्रैक्टर से ढुलाई की छूट दी गई। इस पर भी ऐसे वाहनों को ढंकने के निर्देश दिए गए। कोरबा में एनटीपीसी और सीएसईबी के अलावा दूसरे संयंत्रों के द्वारा लंबे समय से राख परिवहन का काम निर्देशों से परे खुले रूप में कराया जाता रहा। कुछ मौकों पर जब उपर से कड़ाई हुई तो ऐसे वाहनों के उपर कवर के नाम पर नमूने डाल दिए गए।

सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि लंबे समय तक जिले में राख परिवहन और इससे संबंधित समस्या को जानने के बावजूद सरकारी तंत्र हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा। तमाम तरह से लोगों ने इस बारे में शिकायत की किंतु हुआ कुछ नहीं। लेकिन उस समय भी यह चर्चा जमकर रही कि इस अवैध काम में लगे लोगों को सरकार का वरदहस्त मिला हुआ है इसलिए चाहकर भी कुछ नहीं हो पा रहा है। अब जबकि प्रदेश में नई सरकार आ चुकी है तब इस तरह की बातें हो रही है कि राखड़ के नाम पर मनमानी और आम लोगों के हितों से जो खिलवाड़ हो रहा था उसमें कई स्तर तक काली कमाई का काफी हिस्सा जा रहा था। लेकिन अब की स्थिति में ऐसे लोग या तो नदारद हो गए हैं या फिर वे दूसरे विकल्प की जुगत में लगे हैं। छत्तीसगढ़ के अलावा देश के बड़े हिस्से को बिजली की आपूर्ति करने वाले कोरबा जिले का कोना-कोना राख के टेम्प्रेचर को महसूस कर रहा है। सडक से लेकर सार्वजनिक स्थल और यहां तक कि जंगल भी राखड़ की मार झेल रहे हैं, जहां ट्रांसपोटर्स ने अपनी समस्या को डंप कर रखा है। विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने इस मसले को लेकर कई आरोप लगाए थे। हाल में ही नवनिर्वाचित विधायक लखनलाल देवांगन के द्वारा राखड़ से जुड़ी समस्या और इस पर कठोरता से अंकुश लगाने के लिए कलेक्टर स्तर पर पत्राचार किया गया है। चेताया गया है कि अगर मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया तो नतीजे अच्छे नहीं होंगे।

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