प्रधानमंत्री आवास योजना: बिचौलिए डकार गए राशि, 15 हजार पीएम आवास अधूरे
कोरबा 29 मई। वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2021-22 के बीच 68 हजार 538 प्रधानमंत्री आवासों की स्वीकृति हुई है, इसमें 15 हजार 346 आवास अधूरे हैं। बिचौलिए राशि हजम कर गए और भौतिक सत्यापन के अभाव मेें निर्माण पूरा नहीं हुआ है। कई हितग्राहियों को तीसरी किश्त की राशि नहीं मिली है। गंभीर बात यह है कि प्रशासन ने यह जानने की जहमत भी नहीं उठाई कि आखिर तीसरी किश्त के लिए आवेदन क्यों नहीं आ रहे। यही वजह है कि साल दर साल लंबित आवासों की संख्या बढ़ती जा रही है।
प्रधानमंत्री आवास योजना की दशा अब इंदिरा आवास जैसी होने लगी है। राशि के आवंटन के अभाव में निर्माण संभव नहीं हुआ है। आवास निर्माण को जितना आसान माना जा रहा वास्तव में यह उतना ही जटिल है। प्रथम किश्त की राशि मिलने के बाद आवास निर्माण के लिए प्रेरित किया जाता है। पहले किश्त की राशि से होने वाले काम का भौतिक सत्यापन के बाद ही दूसरी किश्त जारी की जाती है। सत्यापन नहीं होने की स्थिति में कई हितग्राहियों का काम बंद हो चुका है। ऐसे में उन्हे जनपद कार्यालय का चक्कर काटना पड़ रहा है। विडंबना यह है कि आवास निर्माण के लिए वर्ष दर वर्ष लक्ष्य निर्धारित तो किया जाता है किंतु सत्यापन समय पर नहीं की जाती। ऐसे भी हितग्राही हैं जिन्होने अपने आवास को सही समय में निर्माण कराने के लिए सत्यापन के लिए आवेदन भेज दिया है लेकिन उसे केंद्र तक नहीं भेजा गया।
यही वजह है कि साल दर साल लंबित आवासों की तादात बढ़ रही है। कई मामले ऐसे है जिनमें आवास बनाने का सब्जबाग दिखाकर गांव के ही सरपंचए आवास मित्र अथवा अन्य बिचौलियों ने हितग्राहियों की राशि निकाल ली गई हैए और निर्माण अभी तक पूरा नहीं किया। राशि डकार कर सरकारी की योजनाओं की छवि धूमिल की जा रही है। प्रधानंत्री आवास निर्माण नौ वर्ष पहले शुरू हुआ है। इन वर्षों के दौरान 53 हजार 202 आवासों का निर्माण तो हुआ लेकिन 15 हजार 336 अधूरे आवासों ने हितग्राहियों की चिंता बढ़ा दी है। वजह यह है कि हितग्राहियों ने नए आवास बनने की आस में अपने पुराने आवास को तोड़ दिया है। आवास पूरा नहीं होने के कारण उन्हे स्वजनों के घर अथवा अधूरे आवास में ही रहना पड़ रहा है।
आवास निर्माण में बिचौलियों के दखल के कारण ज्यादातर आदिवासी परिवार प्रभावित हैं। पोड़ी उपरोड़ा और विकासखंड के हर एक दस वनांचल गांव में 50 अधूरे आवास मिल जाएंगे। कमीशन खोरी के चलते राशि आवास योजना एक बार पिुर से इंदिरा आवास की तरह दिखावा साबित हो रही है। जिन आवासों को पूर्ण होने का दावा किया जा रहा है उनमे ऐसे कई आवास हैं जिनके छत छप्पर से लेकर सीमेंट के काम अधूरे हैं। आवास के लिए 1.15 लाख निर्धारित है। कमीशन की शर्त पर ही सूची में नाम चढ़ाया जाता है। नए आवास की आस में पुराने को ढहाए जाने के बाद भी आवास निर्माण का सही लाभ वास्तविक हितग्राहियों को नहीं मिल रहा है।
जिला प्रशासन की ओर से प्रति सप्ताह जन चौपाल का आयोजन किया जा रहा है। शिविर का आयोजन नहीं होने से लोगों को लंबी दूरी तय कर शिकायत करने कलेक्ट्रेट आना पड़ रहा। पेंशन में नाम जोडऩे और राशन कार्ड बनवाने के लिए मिल रहे रहे आवेदन के बाद सर्वाधिक शिकायतें अधूरे पीएम आवास की आ रही है। इसमें पेंशन और राशन कार्ड का तो निराकरण हो रहा लेकिन अधूरे आवास के संबंध में सुनवाई नहीं की जा रही है। लंबे समय से अधूरा आवास अब बारिश की मार से जर्जर होने के कगार में है।
जिन हितग्राहियों के नाम पर आवास स्वीकृत है वे निर्माण के दौरान मनरेगा मजदूर के तौर पर काम कर सकते हैं। मैदानी क्षेत्रों में होने वाले काम के लिए मस्टरोल में नाम तो चढ़ा दिया जाता है लेकिन आवास में का काम करने के बाद भी मजदूरी से वंचित हैं। ऐसे भी हितग्राही हैं जिनके पुराने मकान में स्वच्छ भारत मिशन के तहत पहले से शौचालय निर्माण की स्वीकृति हो चुकी थी। पीएम आवास स्वीकृति मिलने के बाद वह टूट चुकी है। शौचालय पहले से बनने की बात कहकर उन्हे चौथी किश्त की राशि नहीं दी जा रही।