डेवू पॉवर को फायदा पहुंचाने का प्रयास तो नहीं हो रहा?

कोरबा 13 अप्रैल। जिले के रिसदी गांव में डेवू पॉवर इण्डिया लिमिटेड के अधिग्रहित जमीन के विवाद को अब आर्बिटेटर को सुलझाना है। लेकिन इस मामले को आर्बिटेशन में देने के लिए राज्य शासन के महाअधिवक्ता द्वारा सहमति देना कई सवालों को जन्म दे रहा है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अंदरखाने डेवू पॉवर को फायदा पहुंचाने का कोई प्रयास तो नहीं किया जा रहा है?

दरअसल 25 वर्ष पहले डेवू पॉवर को 499.68 एकड़ नजूल भूमि 30 करोड़, 01 लाख 93 हजार 600 रूपये प्रब्याजी और 02 करोड़ 25 लाख 14 हजार 526 रूपये वार्षिक भू-भाटक पर आबंटित किया गया था। इसके साथ 260.53 एकड़ निजी भूमि का अर्जन 10 करोड़ 55 लाख 32 हजार 327 रूपये में किया गया था। यानि कुल 760 एकड़ जमीन महज 40 करोड़ 52 लाख रूपये में डेवू को मिल रहा था। लेकिन डेवू दिवालिया हो गया और उसका प्रोजेक्ट ठप्प हो गया। डेवू पॉवर आबंटन की शर्तों को पूरा करने में नाकाम रहा। इसके बाद आबंटन रद्द करने की प्रक्रिया आरंभ की गयी। इस बीच वर्ष 2009 में डेवू की ओर से हाईकोर्ट बिलासपुर में पिटीशन दायर किया गया।

यह प्रकरण करीब एक दशक तक होईकोर्ट में लंबित रहा। मामले में फरवरी-2021 में नया मोड़ उस वक्त आया जब विख्यात अधिवक्ता विवेक कुमार तन्खा ने डेवू पॉवर की ओर से हाईकोर्ट बिलासपुर में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी। हाईकोर्ट में अर्जित-आबंटित भूमि का कब्जा दिलाने के साथ उसके उपयोग में परिवर्तन की अनुमति दिलाने की मांग की गयी। जस्टिस प्रशांत मिश्रा ने 24 फरवरी 2021 को डेवू पॉवर को राज्य शासन के समक्ष अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद कोरबा के राजस्व विभाग के अधिकारी सहसा सक्रिय हो गये और डेवू पॉवर को जमीन का कब्जा दिलाने का प्रयास करने लगे, लेकिन ग्रामीण किसानों के प्रबल विरोध के कारण उन्हें सफलता नहीं मिली। अब डेवू पॉवर और राज्य शासन की आपसी सहमति से इस मसले को सुलझाने का जिम्मा आर्बिटेशन को सौंपा गया है।

गौरतलब है कि डेवू पॉवर को सम्पूर्ण 760 एकड़ जमीन कुल 40 करोड़ 52 लाख रूपये में आबंटित किया गया है। यदि शासकीय भूमि के वार्षिक भू-भाटक की गणना की जाये तो एक सौ साल में 225 करोड़ रूपये का भुगतान डेवू को करना होगा। यानि कुल 265 करोड़ रूपये। इन दिनों रिसदी और गोढ़ी गांव सहित आस- पास के गांवों में दो लाख रूपये डिसमिल की दर से जमीनों की खरीदी बिक्री हो रही है। इस लिहाज से वर्तमान में 760 एकड़ भूमि का मूल्य 1520 करोड़ रूपये हो जाता है। ऐसे में डेवू को भूमि का कब्जा दिया जाता है, तो शासन को 500 एकड़ भूमि आबंटन में एक हजार करोड़ रूपयों की हानि पहुंचेगी।

गत वर्ष से डेवू की भूमि को लेकर चल रही चर्चाओं और गतिविधियों से संदेह उत्पन्न होता है, कि डेवू पॉवर को अंदर खाने लाभ पहुंचाने का प्रयास तो नहीं किया जा रहा है? यह प्रयास कौन कर रहा है, यह स्पष्ट नहीं हो रहा है। डेवू पॉवर की ओर से हाईकोर्ट में पैरवी कर रहे विख्यात अधिवक्ता विवेक कुमार तन्खा कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ नेता है। दूसरी ओर राज्य में कांग्रेस की सरकार है। प्रकरण में विवेक कुमार तन्खा के हाईकोर्ट में उपस्थित होने के बाद ही नया मोड़ आया है। पहले 24 फरवरी 2021 को जस्टिस प्रशांत मिश्रा एक आदेश पारित करते हैं। इस आदेश को तोड़-मरोड़ कर व्याख्या करते हुए तहसीलदार कोरबा डेवू पॉवर को भूमि का कब्जा दिलाने का प्रयास करते हैं, जिसे किसान विफल कर देते हैं। इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है।

अब एक बार फिर मामला गरमा गया है। हाईकोर्ट ने प्रकरण को आर्बिटेशन में भेजा है। यह आदेश डेबू पॉवर के आवेदन पर राज्य शासन की सहमति से पारित हुआ है। हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद खेला होने की संभावना बढ़ जाती है। डेवू को फायदा पहुंचाने के लिए आर्बिटेटर के समक्ष राज्य शासन कैसी भी शर्तों पर सहमति दे सकता है। जबकि मामले में हाईकोर्ट से निर्णय आने पर अनुबंध की शर्तों के प्रकाश में डेवू पॉवर का भू-आबंटन रद्द हो सकता है। डेवू पॉवर इस बात को समझता है, इसीलिए वह मामले का निपटारा कोर्ट से बाहर करना चाहता है। चर्चा है कि विवाद से बचने के लिए डेवू पॉवर निजी भूमि पर दावा छोड़ सकता है और केवल 500 एकड़ शासकीय भूमि का आधिपत्य ले सकता है। यदि मामले में कोई पेंच है, तो यह डेवू को फायदा देने का सबसे आसान रास्ता हो सकता है। इस मामले में आपत्तिजनक यह भी है, कि डेवू ने प्रकरण में रिसदी के किसानों को पक्षकार नहीं बनाया है, जबकि सबसे अधिक किसान ही प्रभावित हैं। इसके अलावे भी कई सवाल हैं, जिनका उत्तर डेवू पॉवर और राज्य शासन को देना है।

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